Tephrosia purpurea ye una especie de planta perteneciente a la familia Fabaceae, que tien una distribución pantropical. En munches partes alcuéntrase baxu cultivu como abonu verde. Alcuéntrase en tola India y Sri Lanka[1] en suelos probes.
Ye una planta añal o perenne de curtia vida, irguida d'hasta 1 m d'altor, cañes pubescentes glabres o escasamente. Fueyes imparipinnaes de 5-10 cm de llargu, pecíolu de 6-10 cm de llargu, foliolos 9-21, de 1.8 a 2.8 cm de llargu, y 6-10 mm d'anchu, elípticu-oblongues, obtuses o truncaes, mucronaes, glabres percima, per debaxo adpresas sedoses; estípules estrechamente triangulares. La inflorescencia ye un recímanu de fueyes opuestes, delles flores nes axiles de les fueyes cimeres. Brácteas de 4 mm de llargu. Pedicelo c. 4 mm de llargu. Pubescentes mota, copa 1.5 mm de llargu, dientes 2-3 mm de llargu. Acoloratáu Coreola de color púrpura o rosa brillosu. Frutes de 4-6 cm de llargu, c. 4-5 mm d'anchu, pubescentes, 6-9 granes.[2]
Utilízase como venenu pa pexes, les fueyes y les granes contienen tephrosin, que paraliza los pexes. Dosis mayores son letales pa los pexes, pero los mamíferos y los anfibios vense afeutaos. Tamién s'utiliza tradicionalmente como medicina popular. Según el Ayurveda, la planta ye antihelmíntica y antipirética; utilizar nel tratamientu de la llepra, úlceres, asma, y tumores, según enfermedaes del fégadu, el bazu, el corazón y el sangre. Una decocción de los raigaños dar na dispepsia, la foria, el reumatismu, asma y trestornos urinarios. El polvu del raigañu ye saludable pal cepilláu de los dientes, onde se diz que sollivia rápido los dolores dentales y detien la hemorraxa. Un estractu, denomináu 'betaphroline' (nun ye un nome sistemáticu) demandar pa promover la lliberación d'endorfines, y atopa el so usu en ciertes preparaciones cosmétiques.[3]
Tephrosia purpurea describióse por (L.) Pers. y espublizóse en Synopsis Plantarum 2(2): 329. 1807.[2]
Tephrosia: nome xenéricu que deriva de les pallabres griegues: τεφρος (tephros), que significa "cenicientu", en referencia a la coloración abuxada dáu a les fueyes polos sos mestos tricomes.[4]
purpurea: epítetu llatín que significa "de color púrpura"[5]
Tephrosia purpurea ye una especie de planta perteneciente a la familia Fabaceae, que tien una distribución pantropical. En munches partes alcuéntrase baxu cultivu como abonu verde. Alcuéntrase en tola India y Sri Lanka en suelos probes.
Detalle de la planta Nel so hábitat Floresही भारतात उगवणारी एक आयुर्वेदिक औषधी वनस्पती आहे.
हिला वेगवेगळ्या भाषांत असे म्हणतात :
मराठीत शरपुंखा हे नाव पडण्याचे मुख्य कारण असे आहे या झाडाचे पान तोडल्यास बाणाच्या शेपटीचा आकार तयार होतो . शर म्हणजे बाण व पुंखा म्हणजे शेपटी यावरून नाव पडले शरपुंखा .
प्लीहा म्हणजे स्प्लीनवर कार्य करणाऱ्या द्रव्यात शरपुंखा प्रमुख समजली जाते. शरपुंखेचे झुडूप असते. फुलाच्या रंगावरून तांबडी शरपुंखा व पांढरी शरपुंखा असे दोन प्रकार पडतात. पांढरी शरपुंखा तांबड्यापेक्षा कमी प्रमाणात सापडते. शरपुंखेला तीन ते चार सें.मी. लांबीच्या थोड्याशा वाकलेल्या शेंगा येतात. शेंगेमध्ये ८-१० बिया असतात.
शर म्हणजे बाण. शरपुंखेचे वैशिष्ट्य असे की, हिच्या पानाचे टोक बोटात धरून तोडले, तर पानाच्या डेखाकडील बाजूस बाणाच्या मागच्या भागाप्रमाणे दोन टोके दिसतात म्हणून शरपुंखेला बाणपुंखा, सायकपुंखा असेही म्हणतात. प्लीहेवर कार्य करणारी असल्यामुळे हिला प्लीहशत्रू, प्लीहारी असेही म्हणतात. हिचे लॅटिन नाव गलेगा पुरपुरिया Galega purpurea असे आहे.
औषधात शरपुंखेचे पंचांग म्हणजे मूळ, साल, पाने, फुले व फळे हे सर्व भाग वापरले जातात.
शरपुंखेचा रस कडू व तुरट असतो. विपाक तिखट असतो व वीर्य शीतल असते. शरपुंखा पित्त व कफदोषाचे शमन करते. शरपुंखेचे मुख्य कार्य यकृत व प्लीहेवर होते. याशिवाय ती ताप, दमा, खोकला, गुल्म वगैरे व्याधीत उपयुक्त असते. व्रण भरून आणण्यास मदत करते. विषद्रव्यांचा नाश करते.
काविळीवर शरपुंखा पंचांगाचे चूर्ण साखरेसह मिसळून कोमट पाण्यासह घेण्याने उपयोग होतो. यकृत किंवा प्लीहा आकाराने वाढली असता शरपुंखेचे मूळ हे एक उत्तम औषध समजले जाते. शरपुंखेचे मूळ वाटून ताकासह सेवन केल्यास वाढलेली प्लीहा निश्चित कमी होते, असे भावप्रकाशात सांगितलेले सापडते.
ही भारतात उगवणारी एक आयुर्वेदिक औषधी वनस्पती आहे.
हिला वेगवेगळ्या भाषांत असे म्हणतात :
मराठी- शरपुंखा, उन्हाळी गुजराती - घोडाकन, झिला, सरपंखो हिंदी - सरफोंका कानडी - एंपली, कोग्गे बंगाली - बननील तामीळ - कोल्लुक्कवकेल्लपि संस्कृत - शरपुङ्खा इंग्रजी - Purple Tephrosia लॅटिन - Tephrosia purpureaमराठीत शरपुंखा हे नाव पडण्याचे मुख्य कारण असे आहे या झाडाचे पान तोडल्यास बाणाच्या शेपटीचा आकार तयार होतो . शर म्हणजे बाण व पुंखा म्हणजे शेपटी यावरून नाव पडले शरपुंखा .
प्लीहा म्हणजे स्प्लीनवर कार्य करणाऱ्या द्रव्यात शरपुंखा प्रमुख समजली जाते. शरपुंखेचे झुडूप असते. फुलाच्या रंगावरून तांबडी शरपुंखा व पांढरी शरपुंखा असे दोन प्रकार पडतात. पांढरी शरपुंखा तांबड्यापेक्षा कमी प्रमाणात सापडते. शरपुंखेला तीन ते चार सें.मी. लांबीच्या थोड्याशा वाकलेल्या शेंगा येतात. शेंगेमध्ये ८-१० बिया असतात.
शर म्हणजे बाण. शरपुंखेचे वैशिष्ट्य असे की, हिच्या पानाचे टोक बोटात धरून तोडले, तर पानाच्या डेखाकडील बाजूस बाणाच्या मागच्या भागाप्रमाणे दोन टोके दिसतात म्हणून शरपुंखेला बाणपुंखा, सायकपुंखा असेही म्हणतात. प्लीहेवर कार्य करणारी असल्यामुळे हिला प्लीहशत्रू, प्लीहारी असेही म्हणतात. हिचे लॅटिन नाव गलेगा पुरपुरिया Galega purpurea असे आहे.
औषधात शरपुंखेचे पंचांग म्हणजे मूळ, साल, पाने, फुले व फळे हे सर्व भाग वापरले जातात.
शरपुंखेचा रस कडू व तुरट असतो. विपाक तिखट असतो व वीर्य शीतल असते. शरपुंखा पित्त व कफदोषाचे शमन करते. शरपुंखेचे मुख्य कार्य यकृत व प्लीहेवर होते. याशिवाय ती ताप, दमा, खोकला, गुल्म वगैरे व्याधीत उपयुक्त असते. व्रण भरून आणण्यास मदत करते. विषद्रव्यांचा नाश करते.
काविळीवर शरपुंखा पंचांगाचे चूर्ण साखरेसह मिसळून कोमट पाण्यासह घेण्याने उपयोग होतो. यकृत किंवा प्लीहा आकाराने वाढली असता शरपुंखेचे मूळ हे एक उत्तम औषध समजले जाते. शरपुंखेचे मूळ वाटून ताकासह सेवन केल्यास वाढलेली प्लीहा निश्चित कमी होते, असे भावप्रकाशात सांगितलेले सापडते.
ଶରପୁଙ୍ଖା ଏକ ଉପକାରୀ ଔଷଧୀୟ ଗଛ । ଏହାର କୁଳ ଶିମ୍ବି ଓ ଉପ କୂଳ ଅପରାଜିତା ।
ଏହାର ବହୁବର୍ଷାୟୁ, ବହୁଶାଖାୟୁକ୍ତ, ଊର୍ଦ୍ଧ୍ୱ-ଉତ୍ଥିତ ୧-୩ ଫୁଟ ବିଶିଷ୍ଟ କ୍ଷ୍ୟୁପ ହୁଏ l ପତ୍ର-୩-୬ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବ ବିଷମପକ୍ଷବତ l ପତ୍ରକ-୧୯-୨୧ସଂଖ୍ୟାରେ ଅଭି-ଭାଲାକାର, ଗୋଳାଗ୍ର, ରୋମଶାଗ୍ର, ୩/୪ -୧ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା, ଉପର ଚିକ୍କଣ ଏବଂ ତଳ ରୋମଶ l ପୁଷ୍ପମଞ୍ଜରୀ -୩-୬ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବ ପତ୍ରାଭିମୁଖ, ୩-୪ ପବ ଯୁକ୍ତ ଯେଉଁଥିରେ ୧/୪ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବ ବାଇଗଣି ରଙ୍ଗର ପୁଷ୍ପ ହୋଇଥାଏ l ବାହ୍ୟକୋଷ-୧/୮-୧/୬ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା ,ରୋମଶ ଦନ୍ତୁରିତ ଯୁକ୍ତ ; ଅନ୍ତଃକୋଷ -୧/୪-୩/୮ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା lକୁକ୍ଷିବୃନ୍ତ ଅନୁପ୍ରସ୍ଥ ଚେପ୍ଟା l ଫଳିକା-୧-୨ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା, ୧/୩ ଇଞ୍ଚ ଚୌଡା ଇଷତ ବକ୍ର, ଯେଉଁଥିରେ ୬-୧୦ ହରିତାଭ ପାଉଁଶିଆ ରଙ୍ଗର ବୀଜ ଥାଏ l ପୁଷ୍ପ ବର୍ଷା ଋତୁରେ ତଥା ଫଳ ଶିତ ଋତୁରେ ଫଳେ l ଜାତି –ଏହାର ଏକ ପ୍ରଜାତି (T.procumbens Buch-Ham. ) ଏବଂ ଅନ୍ୟ ଏକ ପ୍ରଜାତି T.candida DCରେ ଶ୍ୱେତ ପୁଷ୍ପ ଆସିଥାଏ l T.spinosa Pers ଦକ୍ଷିଣ ଭାରତରେ ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ ଯାହା ରାଜନିଘଣ୍ଟୁରେ କଣ୍ଟପୁଙ୍ଖା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି l T.villosa Pers କ୍ଷ୍ୟୁପ ରୋମାବୃତ୍ତ ତଥା ଇଷତ ଗୋଲାପି କିମ୍ବା ନୀଳ ବର୍ଣ୍ଣର ପୁଷ୍ପ ହୋଇଥାଏ l
ଏହା ଭାରତର ସମସ୍ତ ସ୍ଥାନରେ ଏବଂ ହିମାଲୟର ୪ ହଜାର ଫୁଟ (ସମୁଦ୍ର ପତନ ସ୍ତର) ଉଚ୍ଚତା ଯାଏଁ ହୋଇଥାଏ l
ଲ୍ୟୁପୀୟଲ, ରୁଟିନ, ଡେଲଫିଡିନ କ୍ଲୋରଇଡ, କାଫେଇକ ଏସିଡ, ପାଲମିଟିକ ଏସିଡ, ପଲ୍ମିଟୋଲେଇକ ଏସିଡ, ଟେପୁରିନଡାଇଅଲ, ଲିନୋଲେଇକ ଏସିଡ, ଓଲେଇକ ଏସିଡ, ଭାଲାଇନ, ଥ୍ରେଓନାଇନ, ଲାଇସିନ, ଆଇସୋଲୁସେଇନ, କରଞ୍ଜିନ, ଫେନlଇଲlଲାଇନ, ଟେଫ୍ରୋନ ଏତଦ ବ୍ୟତୀତ ଦୁଇଟି ବିରଳ ପ୍ରିନାଇଲେଟେଡ ଫ୍ଲାଭୋନୋଇଡ ଟେଫ୍ରୋପର୍ପ୍ୟୁଳୀନ-ଏ ଏବଂ ଆଇସୋଗ୍ଲାବ୍ରୋଟେଫ୍ରିନର ଉପସ୍ଥିତି ଥାଏ l
ମଧୁମେହ ବିରୋଧୀ ଏବଂ ଜାରଣବିରୋଧି ତତ୍ୱ-ଏହାର ଫଳ ବିଜରୁ ଆହରିତ ସୁରା (Ethyl alcohol)ଦ୍ରବଣଶୀଳ ଜୈବିକ ତତ୍ତ୍ୱରେ ମଧୁମେହ ଓ ଶରୀର କୋଷ, ଉତକ କ୍ଷୟକାରୀ ପ୍ରକ୍ରିୟାକୁ ଆରୋଗ୍ୟ କରିବାର ସାମର୍ଥ୍ୟ ରହିଛି ବୋଲି ପ୍ରମାଣ ମିଳିଛି l ଅର୍ବୁଦ ବିରୋଧୀ ତତ୍ତ୍ୱ - ବିଜ୍ଞାନଗାର ମୂଷିକମାନଙ୍କ ଦେହରେ ପରୀକ୍ଷିତ ଶରପୁଙ୍ଖା ଆହାରିତ ଯୌଗିକ ଅର୍ବୁଦ ସମୂହ ଏବଂ ଅର୍ବୁଦ ପ୍ରସାରୀ କୋଷଗୁଡିକୁ ସମ୍ପୁର୍ଣ୍ଣ ଭାବେ ରୋକିବାରେ ସମର୍ଥ ଅଟେ lଭବିଷ୍ୟତରେ ଏହି ବୃକ୍ଷରୁ ଅର୍ବୁଦ ଆରୋଗ୍ୟକରି ଔଷଧ ତିଆରି କରିବାକୁ ବୈଜ୍ଞାନିକ ମାନେ ସଫଳତା ପାଇବେ ବୋଲି ଦୃଢ ଆଶାବାଦୀ l
ଶରପୁଙ୍ଖାର ପଞ୍ଚାଙ୍ଗର କିମ୍ବା ପତ୍ର ଓ ଚେରର ସୁରା ଦ୍ରବନଶୀଳ ଅହରିତ ଯୌଗିକରେ ଆମାଶୟ ଝାଡା, ଚକ୍ଷୁ, ଚର୍ମ, ଆମାଶୟ ବ୍ରଣ, ମୂତ୍ରନଳୀ ଇତ୍ୟାଦି ସଂକ୍ରମଣ ପାଇଁ ଉଦ୍ଧିଷ୍ଟ ଜୀବାଣୁ ଗୁଡିକୁ ରୋକିବାରେ ସମ୍ପୁର୍ଣ୍ଣ ସକ୍ଷମ ହୋଇଥାଏ l ଏହା ଏକ ଅଣୁଜିବ ବିଜ୍ଞାନଗାର ଗବେଷଣାରୁ ଜଣାଯାଇଛି l ଏହା ମଧ୍ୟ କର୍ଣ୍ଣ, ଶ୍ୱାସନଳୀ ସଂକ୍ରମଣ, ବୃହଦାନ୍ତ୍ର ପ୍ରଦାହ ଆରୋଗ୍ଯ କରିବାରେ ସକ୍ଷମ ହୋଇ ପାରେ l ଏହା ଶିଉଡୋମୋନାଶ, ଷ୍ଟlଫlଇଲୋକୋକସ, କୋଲିଫର୍ମ ଇତ୍ୟାଦି ଜୀବାଣୁ ବର୍ଗର ପ୍ରାଦୁର୍ଭାବ ରୋକିବାରେ ସମ୍ପୁର୍ଣ୍ଣ ଭାବେ ସଫଳ ବୋଲି ପରୀକ୍ଷାରୁ ଜଣା ଯାଇଛି l
ଉଦର କୃମି ସଂକ୍ରମଣ- ଏହାର ଫଳ ବିଜରୁ ଅହରିତ ଜଳ (water) ଓ ସୁରା(Ethyl alcohol) ଅହରିତ ଯୌଗିକରେ ଯଥେଷ୍ଟ ପରିମାଣରେ ଉଦରକୃମି ସଂହାରକ ସାମର୍ଥ୍ୟ ଅଛି l
ଶରୀର ଅନ୍ତଃ ରୋଗ ପ୍ରତିରୋଧି କ୍ଷମତା (Immunomodulatory efficacy)- ଏହାର ଊର୍ଦ୍ଧ୍ୱ ଶାଖା ପ୍ରଶାଖାରେ ଶରୀର ରୋଗ ପ୍ରତୋରୋଧକାରୀ କ୍ଷମତା ଥାଏ l ଏହା ମାନବ ଶରୀରର ଶ୍ୱେତ ରକ୍ତ କଣିକା ଏବଂଅନ୍ୟାନ୍ୟ ପ୍ରତିରୋଧି ବ୍ୟବସ୍ତା ଗୁଡିକୁ ତ୍ୱରାନ୍ୱିତ କରାଇ ବାହ୍ୟ ସଂକ୍ରମଣରୁ ଶରୀରକୁ ରକ୍ଷା କରିଥାଏ l
ଅଗ୍ନିମାନ୍ଦ୍ୟ, ବିବନ୍ଧ, ଶୂଳ, ଗୁଳ୍ମ, ଯକୃଦ୍ୱିକାର(Hepatic disorders), ପ୍ଳିହାବୃଦ୍ଧି(Splenomegaly), ଅର୍ଶ ଏବଂ କୃମିରେ ଏହାର ସଫଳ ଉପଯୋଗ କରାଯାଇଥାଏ l ରକ୍ତ ବିକାର ଏବଂ ଶୋଥ(edema), ଶ୍ୱାସ , କାଶ ଇତ୍ୟାଦିରେ ଶରପୁଙ୍ଖା ଚୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଏ l ମୂଢ ଗର୍ଭ, କଷ୍ଟାର୍ତ୍ତବ ଇତ୍ୟାଦି ସ୍ତ୍ରୀ ରୋଗରେ ଉପଯୋଗୀ l ମୂଷିକବିଷ ତଥା ଧାତୁଜ ବିଷରେ ଏହାର ବୀଜ ଚୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଏ l
వెంపలి (లాటిన్ Tephrosia purpurea) ఒక ఔషధ మొక్క.
in Hyderabad, India.
in Hyderabad, India.
in Hyderabad, India.
in Hyderabad, India.
in Hyderabad, India.
Tephrosia purpurea is a species of flowering plant in the family Fabaceae, that has a pantropical distribution. It is a common wasteland weed. In many parts it is under cultivation as green manure crop. It is found throughout India and Sri Lanka[1] in poor soils.
Common names include:
In SIDDHA ; SEED uses Anthelmintic ; ROOT uses Nutritive
Tephrosia purpurea is used as a fish poison for fishing. Its leaves and seeds contain tephrosin, which paralyzes fish. Larger doses are lethal to fish, but mammals and amphibians are unaffected.[3]
Tephrosia purpurea is also used traditionally as folk medicine. According to Ayurveda, the plant is anthelmintic, alexiteric, restorative, and antipyretic. It is used in the treatment of leprosy, ulcers, asthma, and tumors, as well as diseases of the liver, spleen, heart, and blood. A decoction of the roots is given in dyspepsia, diarrhea, rheumatism, asthma and urinary disorders. The root powder is salutary for brushing the teeth, where it is said to quickly relieve dental pains and stop bleeding. An extract, termed 'betaphroline' (not a systematic name) is claimed to promote release of endorphins, and finds use in certain cosmetic preparations. African shepherds use crushed plants to make an antidotal beverage for animals bitten by snakes.[3]
Tephrosia purpurea has been reported to provide fodder to animals such as goats. It makes also a good green manure in fields.[3]
Tephrosia purpurea is a species of flowering plant in the family Fabaceae, that has a pantropical distribution. It is a common wasteland weed. In many parts it is under cultivation as green manure crop. It is found throughout India and Sri Lanka in poor soils.
Common names include:
Bengali: জংলী নীল (Jangli neel), বন নীল। English: Fish poison, wild indigo Hawaiian: ʻAuhuhu, Ahuhu, ʻAuhola, Hola Hindi name: Sarphonk, Sharpunkha Rajasthani: Masa Tamil: Kolinchi (கொழிஞ்சி), Kollukkai Velai (கொள்ளுக்காய்_வேளை),kaaivelai(காய்வேளை ) Telugu: Vempali (వెంపలి), Pampara chettu Malayalam: Kozhinjil (കൊഴിഞ്ഞിൽ) Kannada: Kaggi Duk: Jangli-kulthiTephrosia purpurea es una especie de planta perteneciente a la familia Fabaceae, que tiene una distribución pantropical. En muchas partes se encuentra bajo cultivo como abono verde. Se encuentra en toda la India y Sri Lanka[1] en suelos pobres.
Es una planta anual o perenne de corta vida, erguida de hasta 1 m de altura, ramas pubescentes glabras o escasamente. Hojas imparipinnadas de 5-10 cm de largo, pecíolo de 6-10 cm de largo, foliolos 9-21, de 1.8 a 2.8 cm de largo, y 6-10 mm de ancho, elíptico-oblongas, obtusas o truncadas, mucronadas, glabras por encima, por debajo adpresas sedosas; estípulas estrechamente triangulares. La inflorescencia es un racimo de hojas opuestas, algunas flores en las axilas de las hojas superiores. Brácteas de 4 mm de largo. Pedicelo c. 4 mm de largo. Pubescentes cáliz, copa 1.5 mm de largo, dientes 2-3 mm de largo. Rojizo Coreola de color púrpura o rosa brillante. Frutas de 4-6 cm de largo, c. 4-5 mm de ancho, pubescentes, 6-9 semillas.[2]
Se utiliza como veneno para peces, las hojas y las semillas contienen tephrosin, que paraliza los peces. Dosis mayores son letales para los peces, pero los mamíferos y los anfibios no se ven afectados. También se utiliza tradicionalmente como medicina popular. Según el Ayurveda, la planta es antihelmíntica y antipirética; se utiliza en el tratamiento de la lepra, úlceras, asma, y tumores, así como enfermedades del hígado, el bazo, el corazón y la sangre. Una decocción de las raíces se da en la dispepsia, la diarrea, el reumatismo, asma y trastornos urinarios. El polvo de la raíz es saludable para el cepillado de los dientes, donde se dice que alivia rápidamente los dolores dentales y detiene la hemorragia. Un extracto, denominado 'betaphroline' (no es un nombre sistemático) se demanda para promover la liberación de endorfinas, y encuentra su uso en ciertas preparaciones cosméticas.[3]
Tephrosia purpurea fue descrita por (L.) Pers. y publicado en Synopsis Plantarum 2(2): 329. 1807.[2]
Tephrosia: nombre genérico que deriva de las palabras griegas: τεφρος (tephros), que significa "ceniciento", en referencia a la coloración grisácea dado a las hojas por sus densos tricomas.[4]
purpurea: epíteto latíno que significa "de color púrpura"[5]
Tephrosia purpurea es una especie de planta perteneciente a la familia Fabaceae, que tiene una distribución pantropical. En muchas partes se encuentra bajo cultivo como abono verde. Se encuentra en toda la India y Sri Lanka en suelos pobres.
Detalle de la planta En su hábitat FloresCốt khí tía hay đoản kiếm tía, ve ve cái (danh pháp: Tephrosia purpurea) là loài thực vật có hoa thuộc họ Đậu. Cây cốt khí tía có ở Ấn Độ, Sri Lanka[1] và Việt Nam, tại những nơi đất bạc màu.
Sử dụng làm thuốc đánh cá.
Cốt khí tía hay đoản kiếm tía, ve ve cái (danh pháp: Tephrosia purpurea) là loài thực vật có hoa thuộc họ Đậu. Cây cốt khí tía có ở Ấn Độ, Sri Lanka và Việt Nam, tại những nơi đất bạc màu.
Sử dụng làm thuốc đánh cá.