El fréxol negru, el frijol negru, la [[lens culinaris|llenteya]] negra, el mungo o'l poroto mung (Vigna mungo) ye una llegume que se cultiva enforma nel sur d'Asia, forma parte de los dal emplegaos na cocina india, onde se denomina urd.
Puede estremase de Vigna radiata (Linn.) Wilczek pelos pelos más llargos nes vaines y el cantu-aril plantegáu claramente alredor del hilio de les granes y el color de les granes, que ye de color verde puercu nesti casu.
Vigna mungo utilizar na medicina tradicional de la India ( Ayurveda ). Farmacológicamente, los sos estractos demostraron actividá inmunoestimulante n'aguarones.[1]
Vigna mungo describióse por (L.) Hepper y espublizóse en Kew Bulletin 11(1): 128. 1956.[2]
Vigna: nome xenéricu que foi dau n'honor del botánicu italianu Domenico Vigna que lo afayó nel sieglu XVII.
mungo: epítetu
El fréxol negru, el frijol negru, la [[lens culinaris|llenteya]] negra, el mungo o'l poroto mung (Vigna mungo) ye una llegume que se cultiva enforma nel sur d'Asia, forma parte de los dal emplegaos na cocina india, onde se denomina urd.
Vigna mungo, llentilla negra o mongeta mungo, és una espècie de lleguminosa que és planta nativa del subcontinent indi.
Es cultiva a Àsia des de temps antics.
És una planta anual densamente pilosa. L'arrel mestra produeix un sistema radicular embrancat amb nòduls, fixadors del nitrogen, llisos i arrodonits. Les tavelles són estretes cilíndriques de fins a 6 cm de llargada. La planta fa de 30 a 100 cm de llargada i té llavors de 4 a 6 cm.[2] Primer va estar classificada dins el gènere Phaseolus, després es va transferir al gènere Vigna.
Vigna mungo, llentilla negra o mongeta mungo, és una espècie de lleguminosa que és planta nativa del subcontinent indi.
Es cultiva a Àsia des de temps antics.
Die Urdbohne (Vigna mungo), auch Linsenbohne genannt, ist eine Pflanzenart aus der Unterfamilie der Schmetterlingsblütler innerhalb der Familie der Hülsenfrüchtler (Fabaceae oder Leguminosae). Diese Nutzpflanze ist nahe verwandt mit einer Reihe anderer „Bohnen“ der Gattung Vigna, insbesondere zur Mungbohne (Vigna radiata).
Die Urdbohne wird seit 3000 bis 4000 Jahren auf dem indischen Subkontinent angebaut und ist heute in ganz Süd- und Südostasien verbreitet.
Die Urdbohne in ihrer Kulturform wächst als niedrige, aufrechte oder hängende, einjährige Pflanze. Diese wurde aus Wildformen selektiert, die als ausdauernde krautige Pflanzen mit 2 bis 4 m langen Stängeln wachsen. Die Kulturpflanzen erreichen je nach Sorte Wuchshöhen von meist nur 20 bis 30 cm, es können auch 60 bis 90 cm werden.
Die behaarten Laubblätter sind dreiteilig und gestielt. Die Blattstiele weisen Längen von etwa 10 cm auf. Die drei breit-lanzettlichen bis spitzovalen Teilblätter weisen eine Breite von 5 bis 7 cm und eine Länge 5 bis 10 cm auf.
Die achselständig an etwa 15 cm langen Blütenstandstielen stehenden, meist zwei- bis dreimal verzweigten Blütenstände, enthalten Teilblütenstände, die jeweils fünf bis sechs Blüten enthalten. Die Blütenfarbe ist leuchtend-gelb. Jede Blüte blüht nur wenige Stunden. Meist erfolgt Selbstbestäubung.
Je Teilblütenstand entwickeln sich meist nur zwei bis drei Hülsenfrüchte. Die rau behaarten, geraden Hülsenfrüchte weisen eine Länge von 4 bis 7 cm und eine Breite von etwa 0,6 cm auf. Jede Hülse enthält vier bis zehn Samen. Die glänzenden, kleinen, quadratischen und an den Enden abgerundeten Samen weisen einen Durchmesser von etwa 4 mm auf. Die Farbe der Samen ist meist sehr dunkelgrün bis schwarz, solche werden deshalb „Black gram“ genannt; es kommen auch grüne Formen vor. Die Samen sind im Inneren weiß, was ein deutliches Unterscheidungsmerkmal zur Mungbohne ist, die im Inneren gelb ist. Das weiße, konkav gewölbte Hilum weist eine Länge von 1,2 bis 2,3 mm und eine Breite von bis zu 1 mm auf. Das Tausendkorngewicht liegt bei 15 bis 40 Gramm. Die Samen keimen epigäisch (oberirdisch).
Man kann die frischen Hülsen, die Bohnenkeimlinge oder die getrockneten Bohnen kochen. In Indien und den angrenzenden Ländern ist die Urdbohne ein Grundnahrungsmittel und Bestandteil von Dal. Wegen gleicher Kochzeit lässt sie sich gut mit Reis kombinieren. In Südindien ist ein Teig aus ihr die Grundlage für die pikanten Frühstückskrapfen (Vada) und zusammen mit Reismehl für Klöße (Idli) und Pfannkuchen (Dosa). Sie kann auch anstelle von Linsen in Papadam-Fladen verwendet werden. Die Urdbohne hat mit etwa 20 bis 24 % (vom Trockengewicht) einen relativ hohen Eiweißanteil.
Die Erstveröffentlichung als Phaseolus mungo erfolgte 1767 in Mantissa Altera, 1, 101 durch Carl von Linné. Der aktuell gültige Name wurde 1956 von Frank Nigel Hepper in Kew Bull. 11,128 veröffentlicht. Synonyme von Vigna mungo (L.) Hepper sind: Azukia mungo (L.) Masamune, Phaseolus radiatus Roxb. non L., Phaseolus roxburghii Wight & Arnott. Dabei muss man beachten, dass Phaseolus radiatus L. ein Synonym von Vigna radiata ist und Phaseolus radiatus Roxb. ein Synonym von Vigna mungo ist.
Vigna radiata gehört zur Untergattung Ceratotropis in der Gattung Vigna.[1]
Es gibt zwei Varietäten:[1]
Die Urdbohne (Vigna mungo), auch Linsenbohne genannt, ist eine Pflanzenart aus der Unterfamilie der Schmetterlingsblütler innerhalb der Familie der Hülsenfrüchtler (Fabaceae oder Leguminosae). Diese Nutzpflanze ist nahe verwandt mit einer Reihe anderer „Bohnen“ der Gattung Vigna, insbesondere zur Mungbohne (Vigna radiata).
उरद या उड़द एक दलहन होता है। उरद को संस्कृत में 'माष' या 'बलाढ्य'; बँगला' में माष या कलाई; गुजराती में अड़द; मराठी में उड़ीद; पंजाबी में माँह, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और इटालियन में विगना मुंगों; जर्मन में उर्डबोहने; फ्रेंच में हरीकोट उर्ड; पोलिश में फासोला मुंगों; पुर्तगाली में फेजों-द-इण्डिया तथा लैटिन में 'फ़ेसिओलस रेडिएटस', कहते हैं।
इसका द्विदल पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा है और भारतवर्ष में सर्वत्र ज्वार, बाजरा और रुई के खेतों में तथा अकेला भी बोया जाता है। इससे मिलनेवाली दाल भोजन और औषधि, दोनों रूपों में उपयोगी है। बीज की दो जातियाँ होती हैं :
(1) काली और बड़ी, जो वर्षा के आरंभ में बोई जाती है और
(2) हरी और छोटी, जिसकी बोआई दो महीने पश्चात् होती है।
इसकी हरी फलियों की भाजी तथा बीजों से दाल, पापड़ा, बड़े इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार इसकी दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मांस और मेदवर्धक; वात, श्वास और बवासीर के रोगों में हितकर तथा शौच को साफ करनेवाली है।
रासायनिक विश्लेषणों से इसमें स्टार्च 56 प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स 23 प्रतिशत, तेल सवा दो प्रतिशत और फास्फोरस ऐसिड सहित राख साढ़े चार प्रतिशत पाई गई है।
इसकी तासीर ठंडी होती है, अतः इसका सेवन करते समय शुद्ध घी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए। इसमें भी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम व प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बवासीर, गठिया, दमा एवं लकवा के रोगियों को इसका सेवन कम करना चाहिए।
यह तीन प्रकार से प्रयोग में आती है:
उरद या उड़द एक दलहन होता है। उरद को संस्कृत में 'माष' या 'बलाढ्य'; बँगला' में माष या कलाई; गुजराती में अड़द; मराठी में उड़ीद; पंजाबी में माँह, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और इटालियन में विगना मुंगों; जर्मन में उर्डबोहने; फ्रेंच में हरीकोट उर्ड; पोलिश में फासोला मुंगों; पुर्तगाली में फेजों-द-इण्डिया तथा लैटिन में 'फ़ेसिओलस रेडिएटस', कहते हैं।
इसका द्विदल पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा है और भारतवर्ष में सर्वत्र ज्वार, बाजरा और रुई के खेतों में तथा अकेला भी बोया जाता है। इससे मिलनेवाली दाल भोजन और औषधि, दोनों रूपों में उपयोगी है। बीज की दो जातियाँ होती हैं :
(1) काली और बड़ी, जो वर्षा के आरंभ में बोई जाती है और
(2) हरी और छोटी, जिसकी बोआई दो महीने पश्चात् होती है।
इसकी हरी फलियों की भाजी तथा बीजों से दाल, पापड़ा, बड़े इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार इसकी दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मांस और मेदवर्धक; वात, श्वास और बवासीर के रोगों में हितकर तथा शौच को साफ करनेवाली है।
रासायनिक विश्लेषणों से इसमें स्टार्च 56 प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स 23 प्रतिशत, तेल सवा दो प्रतिशत और फास्फोरस ऐसिड सहित राख साढ़े चार प्रतिशत पाई गई है।
इसकी तासीर ठंडी होती है, अतः इसका सेवन करते समय शुद्ध घी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए। इसमें भी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम व प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बवासीर, गठिया, दमा एवं लकवा के रोगियों को इसका सेवन कम करना चाहिए।
उडीद हे भारतात पिकणारे एक द्विदल धान्य आहे. आख्ही उडीद किंबा त्याची डाळ खाद्यान्नात वापरली जाते.
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कॅल्शियम, लोह, जीवनसत्त्व ब ६ आणि मॅग्नेशियम तसेच पोटॅशियम आहे.
उडीद डाळ भिजवून व वाटून फुगवल्यानंतर त्यात तयार होणारे बॅक्टेरिया आणि यीस्ट शरीराला आरोग्यदायी ठरतात. असे पदार्थ मेंदूसाठी खुराक ठरतात. इडली, डोसा, मेदूवडय़ासारखे चविष्ट प्रकार उडदापासून बनवले जातात. उडदाचे पापड करतात.
उडीद हे भारतात पिकणारे एक द्विदल धान्य आहे. आख्ही उडीद किंबा त्याची डाळ खाद्यान्नात वापरली जाते.
उडीद.
कॅल्शियम, लोह, जीवनसत्त्व ब ६ आणि मॅग्नेशियम तसेच पोटॅशियम आहे.
इंग्रजी - Blackgram शास्त्रीय नाव - Vigna mungo) संस्कृत - माश हिंदी - उड़द, उरद) गुजराती - अडद बंगाली - माषकलाय तामीळ - उळुंतु फ़ार्सी - माषउडीद डाळ भिजवून व वाटून फुगवल्यानंतर त्यात तयार होणारे बॅक्टेरिया आणि यीस्ट शरीराला आरोग्यदायी ठरतात. असे पदार्थ मेंदूसाठी खुराक ठरतात. इडली, डोसा, मेदूवडय़ासारखे चविष्ट प्रकार उडदापासून बनवले जातात. उडदाचे पापड करतात.
मास एक दलहन बाली हो । मासलाई संस्कृतमा "माष" अथवा "बलाढ्य", बङ्गालीमा "माष" वा "कलाई", गुजरातीमा "अडद", मराठीमा "उडीद", पञ्जाबीमा "माँह", अङ्ग्रेजी, स्पेनिश र इटालियनमा "विगना मुंगो", जर्मनमा "उर्डबोहने", फ्रेंचमा "हरीकोट उर्ड", पोलिशमा "फासोला मुंगो", पुर्तगालीमा "फेजों-द-इण्डिया", हिन्दीमा "उडद" र लैटिनमा "फेसिओलस रेडिएटस" भन्दछन्।
यसको द्विदलिय बोट लगभग एक हाथ उचाँइको हुन्छ र नेपालमामा सर्वत्र धान, कोदो, कपासको खेतीसँग तथा एक्लै पनि बोएको देखिन्छ। यसबाट प्राप्त हुने दाल भोजन र औषधि, दुबैरूपमा उपयोगी हुन्छ। मास दुइ जातको हुन्छ ।
१. "कालो" अथवा "ठुलो" यो बर्षाको आरम्भमा छरिन्छ, २. "हरीयो" अथवा "सानो" , यसलाई कालो मास छरेको दुई महीना पछी छरिन्छ।
यसको हरीयो फलको तरकारी र बीजको दाल, पापड, बडी इत्यादि भोज्य पदार्थ बनान्छ। आयुर्वेदको मतानुसार यसको दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मासु र मेदवर्धक, वात, श्वास र बवासीर जस्ता रोगहरूको लागी हितकर र पेट सफा गर्दछ। रासायनिक विश्लेषणहरू बाट मासमा स्टार्च ५६ प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स २३ प्रतिशत, तेल सवा दुई प्रतिशत र फास्फोरस ऐसिड सहित क्षार साढी चार प्रतिशत पाइएको छ।
मासको गुण चिसो हुन्छ, अतः यसको सेवन गर्दा शुद्ध घिउमा हींगको झानन लगाएर खानु उचित हुन्छ। मासुमा पनि कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम र प्रोटीन पर्याप्त मात्रामा पाइन्छ। बवासीर, गठिया, दम एवं लकवाको रोगिहरूले यसको सेवन कम गर्नु पर्छ।
मास बजारमा तीन प्रकारले प्रयोगमा आउछ।
मास एक दलहन बाली हो । मासलाई संस्कृतमा "माष" अथवा "बलाढ्य", बङ्गालीमा "माष" वा "कलाई", गुजरातीमा "अडद", मराठीमा "उडीद", पञ्जाबीमा "माँह", अङ्ग्रेजी, स्पेनिश र इटालियनमा "विगना मुंगो", जर्मनमा "उर्डबोहने", फ्रेंचमा "हरीकोट उर्ड", पोलिशमा "फासोला मुंगो", पुर्तगालीमा "फेजों-द-इण्डिया", हिन्दीमा "उडद" र लैटिनमा "फेसिओलस रेडिएटस" भन्दछन्।
यसको द्विदलिय बोट लगभग एक हाथ उचाँइको हुन्छ र नेपालमामा सर्वत्र धान, कोदो, कपासको खेतीसँग तथा एक्लै पनि बोएको देखिन्छ। यसबाट प्राप्त हुने दाल भोजन र औषधि, दुबैरूपमा उपयोगी हुन्छ। मास दुइ जातको हुन्छ ।
१. "कालो" अथवा "ठुलो" यो बर्षाको आरम्भमा छरिन्छ, २. "हरीयो" अथवा "सानो" , यसलाई कालो मास छरेको दुई महीना पछी छरिन्छ।
यसको हरीयो फलको तरकारी र बीजको दाल, पापड, बडी इत्यादि भोज्य पदार्थ बनान्छ। आयुर्वेदको मतानुसार यसको दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मासु र मेदवर्धक, वात, श्वास र बवासीर जस्ता रोगहरूको लागी हितकर र पेट सफा गर्दछ। रासायनिक विश्लेषणहरू बाट मासमा स्टार्च ५६ प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स २३ प्रतिशत, तेल सवा दुई प्रतिशत र फास्फोरस ऐसिड सहित क्षार साढी चार प्रतिशत पाइएको छ।
मासको गुण चिसो हुन्छ, अतः यसको सेवन गर्दा शुद्ध घिउमा हींगको झानन लगाएर खानु उचित हुन्छ। मासुमा पनि कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम र प्रोटीन पर्याप्त मात्रामा पाइन्छ। बवासीर, गठिया, दम एवं लकवाको रोगिहरूले यसको सेवन कम गर्नु पर्छ।
અડદ એ એક કઠોળ છે. આનું શાસ્ત્રીય નામ વીગ્ના મુંગો છે. એને અંગ્રેજીમાં બ્લેક ગ્રામ, બ્લેક લેન્ટીલ, વ્હાઈટ લેન્ટીલ, કે બ્લેમ માટ્પે બીન નામે ઓળખાય છે. આ કઠોળ દક્ષિણી એશિયામાં ઉગાડવામાં આવે છે. પહેલાંં આને અમ્ગ સાથે 'ફેસીઓલ્સમાં વર્ગીકૃત કરાયા હતા, પણ પછી વીગ્નામાં ખસેડાયા. એક સમયે એને મગની જ એક પ્રજાતિ ગણવામાં આવતી હતી. જો તેની છાલ સાથે વેચવામાં આવે તો તેને બ્લેક લેન્ટીલ કહે છે અને તેને છાલરહિત વેચાય તો એને વ્હાઈત લેન્ટીલ કહે છે.
આ કઠોળનું મૂળ ઉદ્ગમ ભારત મનાય છે. પ્રાચીન સમયથી ભારતમાં અડદ ખવાતા આવ્યા છે અને તે ભારતના સૌથી મોંઘા કઠોળમાંનું એક છે. તટાવર્તી આંધ્ર પ્રદેશનું ક્ષેત્ર ચોખા અને અડદની ખેતી માટે જાણીતું છે. અડદના ઉત્પાદનમાં આધ્રપ્રદેશમાં ગુંટુર જિલ્લો પ્રથમ ક્રમાંકે આવે છે. ભારતમાંથી સ્થળાંતર કરેલ લોકોએ અન્ય પ્રદેશોમાં અડદનો ફેલાવો કર્યો છે.
આનો છોડ એ ટટ્ટાઅર વધતો રૂંવાટી ધરાવતો, વાર્ષિક છોડ છે. આના મૂળ એનેક શાખાઓ ધરાવે છેઅને તેની શાખા લીસી અને ગોળાકાર હોય છે. આની શિંગો સાંકડી, નળાકાર અને લગભગ ૬ સેમી જેટલી લાંબી હોય છે.
અડડનો ઉપયોગ મોટૅભાગે તેની દાળ સ્વરૂપે થાય છે. તેની છોત્રાવાળી દાળમાંથી દાળ બનાવવામાં આવે છે. આની દાળને બાફીને સીધી પણ ખવાય છે. દક્ષિણભારતમાં આની છોત્રા વગરની દાળને વાટીને ખીરું તૈયાર કરાય છે. આ ખીરું ડોસા, ઈડલી, વડા, પાપડ વબેરે બનાવવા માટે વપરાય છે.
આ એક પૌષ્ટિક ખોરાક છે અને અન્ય કઠોળની જેમ મધુપ્રમેહ ધરાવતા લોકોને આનું સેવન કરવાની સલાહ અપાય છે. પંજાબી અને પાકિસ્તાની રસોઈમાં અડદ મહત્તવપૂર્ણ છે અહીં આને સબુત માશ કહે છે. તેનો ઉપયોગ દાલ મખની બનાવવામાં થાય છે. બંગાળમાં બ્યુલીર દાળ બનાવવામાં તેનો ઉપયોગ થાય છે.
અડદ એ આયુર્વેદના અમ્તા અનુસાર ખૂબ પૌષ્ટિક ખોરાક છે તે અમરત્વ પ્રદાન કરનારું મનાય છે.[૧]અડદ પચવામાં ભારે, મળમૂત્રને સાફ લાવનાર, સ્નિગ્ધ-ચીકણા, પચ્યા પછી મધુર , આહાર પર રુચિ ઉત્તપન્ન કરાવનાર, વાયુનાશક, બળપ્રદ, શુક્રવર્ધક , વાજીકર એટલે મૈથુન શક્તિ વધારનાર, ધાવણ વધારનાર, શરીરને હ્રુશ્ટપ્રુશ્ટ કરનાર, તથા હરસ, અર્દિત-મોઢાનો લકવા, પાર્શ્વશુળ અને વાયુનો નાશ કરનાર છે. આથી જ આપણે ત્યાં શિયાળામાં અડદિયો પાક ખવાય છે. અડદ બળ આપનાર અને વાયુનાશક છે. આયુર્વેદમાં અડદને શુકલ કહ્યા છે. અડદથી શુક્રની-વીર્યની વ્રુધ્ધિ થાય છે. અડદ પુરુષાતનને ઝડપથી વધારે છે. વીર્યનું મુખ્ય ઘટક પ્રોટીન છે. બધાં જ કઠોળમાં પ્રોટીન હોય છે, પરંતુ અડદમાં ઉત્કુષ્ટ પ્રોટીન હોય છે. આથી જ અડદના સેવનથી સારી શુક્રવ્રુધ્ધિ થાય છે. અડદ વાયુનાશક અને બલ્ય હોવાથી પણ કામશક્તિ-મૈથુનશક્તિ વધારે છે. જેમને વીર્યમાં શુક્રાણુની ખામીને લીધે જ બાળકો ન થતાં હોય તેમણે અડદ અને અડદિયા પાકનો ઉપયોગ કરવો જોઈએ. આવી તકલીફવાળાએ તો લામ્બા સમય સુધી લસણવાળી અડદની દાળ, તલના તેલમાં બનાવેલ અડદનાં વડાં અને અડદિયો પાક નિયિમત ખાવાં જોઈએ.
ભારતમાં અડદને ઉરડ, ઉડદ, ઉડદ દાલ, માસ (નેપાલી), ઉઝુનુ (મલયાલમ : ഉഴുന്ന്), મિનુમુલુ (તેલુગુ : మినుములు), ઉદીના બેલે (કન્નડ : ಉದ್ದಿನ ಬೇಳೆ), ઉલ્લુન્થુ (તમિળ : உளுந்து), નિરી દાલી (ઉડીયા) તરીકે ઓળખવામાં આવે છે.
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(મદદ)
M. Nitin, S. Ifthekar, M. Mumtaz. 2012. Hepatoprotective activity of Methanolic extract of blackgram. RGUHS J Pharm Sci 2(2):62-67.
અડદ એ એક કઠોળ છે. આનું શાસ્ત્રીય નામ વીગ્ના મુંગો છે. એને અંગ્રેજીમાં બ્લેક ગ્રામ, બ્લેક લેન્ટીલ, વ્હાઈટ લેન્ટીલ, કે બ્લેમ માટ્પે બીન નામે ઓળખાય છે. આ કઠોળ દક્ષિણી એશિયામાં ઉગાડવામાં આવે છે. પહેલાંં આને અમ્ગ સાથે 'ફેસીઓલ્સમાં વર્ગીકૃત કરાયા હતા, પણ પછી વીગ્નામાં ખસેડાયા. એક સમયે એને મગની જ એક પ્રજાતિ ગણવામાં આવતી હતી. જો તેની છાલ સાથે વેચવામાં આવે તો તેને બ્લેક લેન્ટીલ કહે છે અને તેને છાલરહિત વેચાય તો એને વ્હાઈત લેન્ટીલ કહે છે.
આ કઠોળનું મૂળ ઉદ્ગમ ભારત મનાય છે. પ્રાચીન સમયથી ભારતમાં અડદ ખવાતા આવ્યા છે અને તે ભારતના સૌથી મોંઘા કઠોળમાંનું એક છે. તટાવર્તી આંધ્ર પ્રદેશનું ક્ષેત્ર ચોખા અને અડદની ખેતી માટે જાણીતું છે. અડદના ઉત્પાદનમાં આધ્રપ્રદેશમાં ગુંટુર જિલ્લો પ્રથમ ક્રમાંકે આવે છે. ભારતમાંથી સ્થળાંતર કરેલ લોકોએ અન્ય પ્રદેશોમાં અડદનો ફેલાવો કર્યો છે.
ବିରି ଏକ ଡାଲି ଜାତୀୟ ଶସ୍ୟ । ଏହା ଓଡ଼ିଶାର ବିଭିନ୍ନ ଜାଗାରେ ଚାଷ କରାଯାଏ । ବିରି ଭାରତରୁ ଉତ୍ପତ୍ତିଲାଭ କରିଛି ବୋଲି ଗବେଶକ ମାନେ ମତ ଦିଅନ୍ତି । କୌଟିଲ୍ୟଙ୍କ ଅର୍ଥଶାସ୍ତ୍ର ଏବଂ ଚରକ ସଂହିତାରେ ମଧ୍ୟ ବିରି ଭାରତରେ ଦେଖାଯାଏ ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା ରହିଛି । ସମଗ୍ର ବିଶ୍ୱରେ ଭାରତ ସବୁଠାରୁ ଅଧିକ ବିରି ଉତ୍ପାଦନ କରେ ଏବଂ ଖର୍ଚ୍ଚ କରେ ।[୨]
ବିରି ଦେଖିବାକୁ ଅଣ୍ଡାକୃତିର, ଛୋଟ, ଅଣଓସାରିଆ ଏବଂ ୪ରୁ ୬ ମିଲିମିଟର ଯାଏ ଲମ୍ବା ହୋଇଥାଏ । ଏହାର ଉପରିଭାଗ ଏକ ଆବରଣଦ୍ୱାରା ଆଚ୍ଛାଦିତ ହୋଇଥାଏ । ଏହି ଆବରଣଟିକୁ ବାହାର କରିଦେଲେ ତା' ଭିତରେ ଧଳାରଙ୍ଗର ବିରି ଥାଏ । ବିରି ଏକ ଲତା ଜାତୀୟ ଗଛ । ବିରିଗଛଗୁଡ଼ିକ ସାଧାରଣତଃ ୩୦ରୁ ୧୦୦ ସେଣ୍ଟିମିଟର ଯାଏ ଲମ୍ବା ହୋଇଥାଏ । ଏହି ଗଛର ପତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ଅଙ୍କାବଙ୍କା ହୋଇଥାଏ ।
ବିରି ଭାରତରେ ବହୁତ ଲୋକପ୍ରିୟ । ବିରିରୁ ସାଧରଣତଃ ଲୋକମାନେ ବଡ଼ି ତିଆରି କରିଥାନ୍ତି, ଡାଲି ମଧ୍ୟ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରିଥାନ୍ତି । ବିରିକୁ ଔଷଧ ଭାବେ ମଧ୍ୟ ବ୍ୟବହାର କରାଯାଏ । ବିରିକୁ ମଧୁମେହ ରୋଗର ଉପଚାର ଭାବରେ ବ୍ୟବହାର କରାଯାଏ । ପଞ୍ଜାବରେ ଡାଲ ମାଖନୀ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରିବାକୁ ବିରିର ବ୍ୟବହାର କରାଯାଏ । ବଙ୍ଗଳାରେ ବିଉଲର ପ୍ରସ୍ତୁତ କରିବାକୁ ଏହାକୁ ବ୍ୟବହାର କରାଯାଏ । ରାଜସ୍ଥାନରେ ବିରିରୁ ପ୍ରସ୍ତୁତୁ ଡାଲିକୁ ବାଟି ପ୍ରସ୍ତୁତ କରିବାରେ ବ୍ୟବହାର କରାଯାଏ ।
ବଡ଼ି ସାଧରଣତଃ ବିରିକୁ ବାଟି ପ୍ରସ୍ତୁତ କରିଥାନ୍ତି । ପ୍ରଥମେ ବିରିକୁ ଚକିିିିରେ ପେଶି ଫାଳ କରାଯାଏ ଏବଂ ପରେ ପାଛୁଡ଼ିକି ତା'ର ଚୋପାକୁ ଅଲଗା କରିଦିଆଯାଏ । ଏହା ପରେ ଫାଳ ହୋଇଥିବା ବିରିକୁ ପାଣିରେ ବତୁରେଇ ରଖାଯାଏ । ପାଖାପାଖି ୧୨ ଘଣ୍ଟା ପାଣିରେ ଭିଜିକି ରହିଲା ପରେ ବିରି ସହ ସଂଯୁକ୍ତ ହୋଇ ରହିଥିବା ବାକିତକ ଚୋପାକୁ ଛାକି ବାହାର କରିଦିଆଯାଏ ଏବଂ ଏହାକୁ ଶିଳରେ ବାଟି ଆଣ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରାଯାଏ। ଏହା ପରେ ତାକୁ ଛୋଟ ଛୋଟ କରି ସଫା କପଡ଼ା କିମ୍ବା ପାତିଆ ଉପରେ ପକାଇ ଖରାରେ ଶୁଖାଯାଏ । ବଟା ବିରିରେ ପାଣି କଖାରୁକୁ ବାଟି ମିଶାଇଲେ ବଡ଼ିର ସ୍ୱାଦ ବଢ଼ିଥାଏ । ଏହା ପରେ ସେହି ଛୋଟ ଛୋଟ କରି ଶୁଖାଯାଇଥିବା ବଡ଼ି ଶୁଖିଗଲା ପରେ ତାକୁ ତରକାରୀରେ ପକାଇ କିମ୍ବା ଭାଜି ବଡ଼ିଚୁରା ବନାଇ ଖିଆଯାଏ ।
ବିରିରୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ ଡାଲି ଅନେକ ସ୍ଥାନରେ ଦେଖାଯାଏ । ପ୍ରଥମେ ବିରିକୁ ଫାଳ କରାଯାଏ ଏବଂ ପରେ ଚୋପା ବାହାର କରିଦିଆଯାଏ । ଚୋପା ଛଡ଼ାହୋଇଥିବା ଫାଳ ବିରିକୁ ସିଝାଯାଏ । ସିଝିଯାଇଥିବା ଏହି ଡାଲିକୁ ବଘାରି(ଛୁଙ୍କ ଲଗାଇବା) ଖାଇବାରେ ବଢ଼ାଯାଏ ।
ବିରିକୁ ବତୁରାଇ ଚୋପା ଛଡାଇ ଚିକ୍କଣ କରି ବଟାଯାଇଥାଏ । ଚାଉଳକୁ ଭିଜାଇ ଅଲଗା ବାଟି ଦିଆଯାଏ । ବିରି ଫେଣାଇ ସାରିଲା ପରେ ଚାଉଳ ବଟା ସେଥିରେ ମିଶାଇ ଆଣ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରାଯାଏ । ଏହି ଆଣରେ ଆବଶ୍ୟକ ଅନୁସାରେ ଲୁଣ ମିଶାଇ କିଛି ସମୟ ରଖିଦିଆଯାଏ । ପଲମ କିମ୍ବା ତାୱାରେ ତେଲ ଘସି ଚୁଲି କିମ୍ବା ଆଞ୍ଚରେ ବସାଯାଏ, ଏହା ପରେ ଆଣକୁ ତାୱାରେ ପକାଇ ଚକୁଳି ତିଆରି କରାଯାଇଥାଏ । ଧୀମା ଆଞ୍ଚରେ କଲେ ଚକୁଳି ନରମ ରହେ ।
ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାର ମାଟିରେ ବିରି ଚାଷ ହେଉଥିଲେ ମଧ୍ୟ ଦୋରସା, ଲାଲ ଦୋରସା, ମଟାଳ ଦୋରସା, ଢିପ ଓ ମଧ୍ୟମ ଜମିରେ ମୁଗ ଓ ବିରିଚାଷ ଭଲ ହୁଏ । ବର୍ଷାଦିନେ ନିଗିଡା ମାଟି ଓ ଶୀତ ତଥା ଖରାଦିନେ ଜଳଧାରଣ ଶକ୍ତି ଅଧିକ ଥିବା ମାଟି ଦରକାର ।
ବିରି ଚାଷ ଉଷ୍ମ ଜଳବାୟୁରେ ଭଲ ହୁଏ । ସମୁଦ୍ର ପତ୍ତନ ଠାରୁ ୨୦୦୦ ମିଟର ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଚାଷ କରାଯାଇଥାଏ । ଏହି ଗଛ ସବୁଠାରୁ ଟାଣ ହୋଇଥିବାରୁ ଏବଂ ଚେର ଗଭୀରକୁ ପ୍ରବେଶ କରୁଥିବାରୁ ମରୁଡି ସହ୍ୟ କରିପାରେ । ଏହା ତା'ର ଜୀବନ କାଳ ମଧ୍ୟରେ ସମୁଦାୟ ମାତ୍ର ୨୪୦ ମିମି ପାଣି ଦରକାର କରିଥାଏ ।[୨]
ବିରି ଚାଷ ସାଧାରଣତଃ ୩ଟି ସମୟରେ ଚାଷ କରାଯାଇଥାଏ । ପ୍ରଥମଟି ହେଲା ଖରିଫ ଚାଷ । ବର୍ଷା ଆରମ୍ଭ ହେବା ସଙ୍ଗେ ସଙ୍ଗେ ବର୍ଷାଦିନିଆ ଜମି ଚାଷକରି ବୁଣାଯାଇଥାଏ । କେତେକ ଅଞ୍ଚଳରେ ଛଟା ବୁଣା ଓ ଆଉ କେତେକ ଅଞ୍ଚଳରେ ପୁଞ୍ଜିବୁଣା କରାଯାଇଥାଏ । ବର୍ଷାଦିନିଆ ବିରି ସାଧାରଣତଃ ୭୦-୭୫ ଦିନରେ ଅମଳ ହୁଏ । ଅମଳ ସମୟରେ ବର୍ଷା ଲାଗି ରହିଥିବାରୁ ପାଚିଲା ଫଳକୁ ତୋଳି ଅମଳ କରାଯାଏ ।
ବିରି ବୁଣାର ଦ୍ୱିତୀୟ ସମୟଟି ହେଉଛି ପ୍ରାକ ଶୀତକାଳୀନ ଚାଷ । ଢିପ ଜମିରେ ଛୋଟ ଧାନ କାଟିବା ପରେ ଅର୍ଥାତ ସେପ୍ଟେମ୍ବର ମାସରେ ବିନା ଜଳସେଚନରେ ବିରି ବୁଣାଯାଏ ଯାହାର ବିହନ ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ କିସମର ହୋଇଥାଏ । ମୂର୍ତ୍ତିକାରେ ରହୁଥିବା ଆଦ୍ରତା ଫସଲକୁ ବଞ୍ଚାଇ ରଖିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ । ଏହି କିସମର ମୁଗ ଓ ବିରି ୭୦-୮୦ ଦିନରେ ଅମଳହୁଏ । ଫଳ ସବୁ ଶୁଖିଗଲା ପରେ ସମସ୍ତ ଫସଲକୁ ଉପାତି ଅମଳ କରାଯାଏ ।
ବିରି ବୁଣାର ତୃତୀୟ ସମୟ ହେଉଛି ଶୀତ କାଳୀନ ଚାଷ । ଓଡ଼ିଶାର ଉପକୂଳବର୍ତ୍ତୀ ଅଞ୍ଚଳରେ ଶୀତର ପ୍ରକୋପ କମ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ଏହି ଶୀତ କାଳୀନ ବିରି ବହୁ ଅଞ୍ଚଳରେ ଚାଷ କରାଯାଏ । ଜଳସେଚନ ସୁବିଧା ନ ଥିବା ଅଞ୍ଚଳରେ ଧାନ କାଟିସାରିବା ମାତ୍ରକେ ଅର୍ଥାତ ନଭେମ୍ବର ଡିସେମ୍ବର ମାସରେ ଜମିକୁ ଚାଷ କରି ମୁଗ ଓ ବିରି ବୁଣାଯାଏ । ଏହା ପ୍ରାୟ ୯୦ ଦିନରେ ଅମଳ ହୋଇଥାଏ । ଅମଳ ବିଶେଷ କରି ଜମିର ଆଦ୍ରତା ଉପରେ ନିର୍ଭର କରେ । ଓଡ଼ିଶାର ମୁଖ୍ୟ ଫସଲ ଧାନ ହୋଇଥିବାରୁ, ଧାନ ଅମଳ ପରେ ପରେ ଜମିକୁ ପଡ଼ିଆ ନ ପକାଇବାକୁ ଅନେକ ମଧ୍ୟ ବିରି କିମ୍ବା ମୁଗ ଚାଷ କରିଥାନ୍ତି ।
ବିରି ବୁଣିବା ପୂର୍ବରୁ ଆଦ୍ରତା ଦେଖି ୩ରୁ ୪ ଓଡଚାଷ ଭଲ ଭାବରେ କରି ମଇଦେଇ ଦେଲେ ମାଟି ଗୁଣ୍ଡ ହୋଇଯାଏ । ଶେଷ ଓଡଚାଷ ପୁର୍ବରୁ ଜମିରେ ୨ କିମ୍ବା ୩ ଶଗଡ ସଢା ଗୋବର ଖତ ଦେଇ ମାଟିରେ ମିଶାଇବାକୁ ହୁଏ । ପାଇରା ଚାଷ ପାଇଁ ଧାନ କାଟିବା ପୂର୍ବରୁ ମଞ୍ଜି ବୁଣିବାକୁ ପଡୁଥିବାରୁ ଏଥିପାଇଁ ଜମି ପ୍ରସ୍ତୁତି କରାଯାଏ ନାହିଁ । ଏହି ଉପାୟରେ ଆଦାୟ ବହୁତ କମ ହୋଇଥିବାରୁ ଅଧିକ ଉତ୍ପାଦନ ପାଇଁ ପାଇରା ଚାଷ ଗ୍ରହଣୀୟ ନୁହେଁ ।
ବୃଷ୍ଟି ପୃଷ୍ଟ ଅଞ୍ଚଳରେ ବର୍ଷାଦିନେ ଓ ଜଳସେଚନ ସୁବିଧା ଥିଲେ ଉଭୟ ଖରା ଓ ଶୀତ ଦିନେ ବିରି ଚାଷ କରାଯାଇପାରେ । ମୁଖ୍ୟତଃ ବୃଷ୍ଟିପୃଷ୍ଟ ଅଞ୍ଚଳରେ ବର୍ଷାଦିନେ ବିରି ଲଗାଯାଏ ଏବଂ ଜଳସେଚିତ ଅଞ୍ଚଳରେ ଶୀତଦିନେ ଓ ଖରାଦିନେ ଲଗାଯାଇଥାଏ ।
ବର୍ଷାଦିନେ ହେକ୍ଟର ପ୍ରତି ୨୦-୨୫ କିଲୋଗ୍ରାମ ଏବଂ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଋତୁରେ ୨୫- ୩୦ କିଲୋଗ୍ରାମ ବିହନ ଆବଶ୍ୟକ ହୋଇଥାଏ । ପାଇରା ଫସଲ ପାଇଁ ଶତକଡା ୨୫ ଭାଗ ଅଧିକ ବିହନ ଦରକାର । ଧାଡିରେ ବୁଣିଲେ ଅଧିକ ଅମଳ ମିଳିଥାଏ । ଧାନ କାଟିବା ପୂର୍ବରୁ ଛଟା ବୁଣା ହିସାବରେ ବିରି ବୁଣିଲେ ହେକ୍ଟର ପ୍ରତି ୩୦-୩୫ କିଲୋଗ୍ରାମ ବିହନ ଦରକାର ହୁଏ । ଶରତ ଓ ଶୀତ ଋତୁରେ ବିହନକୁ ଧାଡିକୁ ଧାଡି ୨୫ ସେଣ୍ଟିମିଟର ଓ ଗଛକୁ ଗଛ ୧୦ ସେଣ୍ଟିମିଟର ବ୍ୟବଧାନରେ ବୁଣାଯାଏ ।
ଜମି ପ୍ରସ୍ତୁତି କରିବାର ଏକମାସ ପୂର୍ବରୁ ହେକ୍ଟର ପ୍ରତି ୩ଟନ ସଢା ଗୋବର ଖତା ମାଟିରେ ଭଲ ଭାବେ ମିଶାଯାଏ । ଏହି ସମୟରେ ହେକ୍ଟର ପ୍ରତି ୫୦୦ କିଲୋଗ୍ରାମ ଚୂନ ମଧ୍ୟ ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଏ । ବିହନ ବୁଣିବା ପୂର୍ବରୁ ଶେଷ ଓଡଚାଷ ସମୟରେ ହେକ୍ଟର ପ୍ରତି ୨୦ କିଲୋଗ୍ରାମ ଯବକ୍ଷାରଜାନ ଓ ୪୦ କିଲୋଗ୍ରାମ ଫସଫରସ ସାର ପ୍ରୟୋଗ କରିବା ଉଚିତ । ସାଧାରଣତଃ ମୁଗ ଓ ବିରି ଫସଲରେ କେବଳ ଡି.ଏ .ପି ସାର ହେକ୍ଟର ପିଛା ୧୦୦ କିଲୋଗ୍ରାମ ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଏ ।[୨]
ସାଧାରଣତଃ ବର୍ଷା ଓ ଶୀତ ଦିନିଆ ବିରି ଜଳସେଚନ ଦରକାର କରେ ନାହିଁ । ମାତ୍ର ଖରାଟିଆ ବିରି ଜଳସେଚନ ଦରକାର କରେ । ସେଗୁଡିକ ହେଲା ବୁଣା ସମୟରେ, ବୁଣିବାର ୧୮-୨୦ ଦିନପରେ, ଫୁଲ ଧରିବା ସମୟରେ ଓ ଛୁଇଁ ପାଳକ ହେବା ସମୟରେ । ଏଥି ମଧ୍ୟରୁ ଦୁଇଟି ଜଳସେଚନ ନିଶ୍ଚିତ ଭାବେ ଦରକାର । ଜଳସେଚନ ଜନିତ ସଙ୍କଟ କାଳୀନ ଅବସ୍ଥା ହେଲା ଫୁଲ ଧରିବା ଓ ଦାନା ପୂରଣ ହେବା । ପାଣି ଅଧିକ ହେଲେ ଫସଲ ଭଲ ବଢି ପାରେ ନାହିଁ ଏବଂ ଅମଳ ମଧ୍ୟ କମିଯାଏ ।
ଛୁଇଁ ଅଧିକ ପାକଳ ହୋଇଗଲେ ଫାଟିଯାଏ ଏବଂ ମଞ୍ଜି ବାହାରି ଜମିରେ ପଡ଼ିଯାଏ । ତେଣୁ ଛୁଇଁ ୮୦ ଭାଗ ପାଚିଲେ ଅମଳ କରିନେବା ଭଲ । ଅମଳପରେ ମଞ୍ଜିକୁ ଭଲଭାବରେ ଖରାରେ ଶୁଖାଇଦେଲେ ଏହା ନଷ୍ଟ ହୋଇଯାଏ ନାହିଁ ଏବଂ ଶତକଡା ୧୦ ଭାଗରୁ କମ ଜଳୀୟ ଅଂଶ ରହିଥାଏ ।
உளுந்து அல்லது உழுந்து (Urad bean, Vigna mungo) ஒரு தாவரம். இதலிருந்து கிடைக்கும் பருப்பு, உளுத்தம் பருப்பு எனப்படுகிறது. இது தெற்காசியாவைப் பூர்வீகமாகக் கொண்டது. இங்கேயே இது பெரும்பான்மையாகப் பயிரப்படுகிறது. தோசை, இட்லி, வடை, பப்படம்(அப்பளம்), முறுக்கு என தமிழர் சமையலில் உளுந்து ஒரு முக்கிய பங்கு வகிக்கிறது.
உளுந்து பயிரில் தோன்றும் மஞ்சள் தேமல் நோய் மற்றும் இலைப் பராமரிப்பு நோய்களைக் கட்டுப்படுத்த பாதிக்கப்பட்ட செடிகளை பிடுங்கி அழித்து விடவேண்டும். மஞ்சள் பசைப்பொறியை வயல்களில் வைத்து இந்நோயைப் பரப்பும் வெள்ளை ஈ மற்றும் அசுவினி பூச்சிகளை கவர்ந்திழுத்து அழிக்கவும், கட்டுப்படுத்தவும் மீதைல்டெமட்டான் 25 இ.சி 200 மிலி ஏக்கர் அல்லது டைமெத்தோயேட்டு 30 எஸ்.சி 200 மிலி ஏக்கர் அல்லது தயோமீத்தாக்சம் 75டபுள்யுடிஜி 40 கிராம் இமிடாக்குளோப்ரிட்டு 17.8 எஸ்.எல்-40 மிலி ஏக்கர் ஆகியவற்றில் ஏதேனும் ஒன்றை 15 நாட்கள் இடைவேளையில் இருமுறை தெளிக்கப் பரிந்துரை செய்யப்பட்டுள்ளது[1].
சங்க இலக்கியத்தில் இது உழுந்து என்று அழைக்கப்படுகிறது. இது தமிழகத்தில் பரவலாகப் பயிரிடப்பட்டதை இச்சான்றுகள் உணர்த்துகின்றன.[2][3]
உளுந்து அல்லது உழுந்து (Urad bean, Vigna mungo) ஒரு தாவரம். இதலிருந்து கிடைக்கும் பருப்பு, உளுத்தம் பருப்பு எனப்படுகிறது. இது தெற்காசியாவைப் பூர்வீகமாகக் கொண்டது. இங்கேயே இது பெரும்பான்மையாகப் பயிரப்படுகிறது. தோசை, இட்லி, வடை, பப்படம்(அப்பளம்), முறுக்கு என தமிழர் சமையலில் உளுந்து ஒரு முக்கிய பங்கு வகிக்கிறது.
ವಿಗ್ನಾ ಮುಂಗೊ, (ಉದ್ದಿನ ಬೇಳೆ) ಭಾರತೀಯ ಉಪಖಂಡದಲ್ಲಿ ಬೆಳೆಯಲಾಗುವ ಒಂದು ಬೀಜ. ಹೆಸರು ಕಾಳಿನ ಜೊತೆಗೆ ಇದನ್ನು ಫ಼್ಯಾಸಿಯೋಲಸ್ನಲ್ಲಿ ಇರಿಸಲಾಗಿತ್ತು ಆದರೆ ನಂತರ ವಿಗ್ನಾಗೆ ವರ್ಗಾಯಿಸಲಾಗಿದೆ. ಒಂದು ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಇದು ಹೆಸರು ಕಾಳಿನ ಪ್ರಜಾತಿಗೇ ಸೇರಿದ್ದೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿತ್ತು. ಒಂದು ದ್ವಿದಳ ಧಾನ್ಯ (ಫ್ಯಾಸಿಯೋಲಸ್ ಮುಂಗೊ). ತೊಗರಿ, ಅವರೆ, ಹೆಸರು ಇಂಥ ಬೇಳೆಗಳ ಹಾಗೆಯೇ ಇದು ನಮ್ಮ ಆಹಾರದಲ್ಲಿ ಪ್ರೊಟೀನು ಆವಶ್ಯಕತೆಯನ್ನು ಪುರೈಸಲು ಸಹಕಾರಿ. ಬಹು ಜನಪ್ರಿಯವಾಗಿರುವ ಇಡ್ಲಿ, ದೋಸೆಗಳ ತಯಾರಿಕೆಯಲ್ಲಿ ಉದ್ದನ್ನು ಬಳಸಿದಾಗ ಹುದುಗುವಿಕೆ ಉಂಟಾಗಿ, ಇಡ್ಲಿ ಮತ್ತು ದೋಸೆಯು ಮೃದುವಾಗಿ, ಉಬ್ಬಿ, ನೋಡುವುದಕ್ಕೆ ಆಕರ್ಷಕವಾಗಿಯೂ, ತಿನ್ನುವುದಕ್ಕೆ ರುಚಿಕರವಾಗಿಯೂ ಇರುತ್ತವೆಯಲ್ಲದೆ ಅಗತ್ಯವಾದ ಪ್ರೋಟೀನನ್ನು ಒದಗಿಸುತ್ತವೆ. ಉದ್ದಿನ ಮೂಲಕ ಈ ತಿಂಡಿಗಳಿಗೆ ಪ್ರೋಟೀನಿನ ಅಂಶ ಸೇರುತ್ತದೆ. ಊಟ, ತಿಂಡಿಗಳಲ್ಲಿ ಉದ್ದಿನ ಬಳಕೆ ಆರ್ಯರ ಕಾಲದಿಂದ ಇರುವುದು ಕಂಡುಬಂದಿದೆ. ಇಂದಿಗೂ ಶ್ರಾದ್ಧಾದಿ ವಿಶೇಷ ದಿವಸಗಳಲ್ಲಿ ಉದ್ದಿನ ವಡೆ ಊಟಕ್ಕೆ ಇರಲೇಬೇಕು. ಇದು ಮಾಂಸದಷ್ಟೇ ಪೌಷ್ಟಿಕ ಆಹಾರವೆಂಬ ವಿಷಯ ಅಂದಿನವರಿಗೆ ತಿಳಿದಿದ್ದಿರಬೇಕು.
ಉದ್ದಿನ ಬೇಳೆಯನ್ನು ದೇಶದ ಎಲ್ಲ ಭಾಗಗಳಲ್ಲೂ ಹೊಲದಲ್ಲಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತಾರೆ . ಮಳೆಯ ಆಸರೆಯಲ್ಲಿ ಬೆಳೆಯುವ ಉದ್ದಿನ ಇಳುವರಿ, ಎಕರೆ ಒಂದಕ್ಕೆ 180-230ಕೆ.ಜಿ. 35"-40" ಕ್ಕಿಂತ ಹೆಚ್ಚು ಮಳೆ ಬೀಳುವ ಪ್ರದೇಶಗಳಲ್ಲಿ ಉದ್ದು ಅಷ್ಟು ಚೆನ್ನಾಗಿ ಬರುವುದಿಲ್ಲ. ಮೈಸೂರು ಜಿಲ್ಲೆಯಲ್ಲಿ ಬತ್ತದ ಬೆಳೆಗೆ ಏಪ್ರಿಲ್ ತಿಂಗಳಲ್ಲಿ ಉದ್ದನ್ನು ಬಿತ್ತಿ ಜುಲೈ ತಿಂಗಳಿನಲ್ಲಿ, ನಾಟಿಗೆ ಮೊದಲು, ಕಾಯನ್ನು ಕೊಯ್ದು ಗಿಡವನ್ನು ಗದ್ದೆಗಳಲ್ಲಿ ಗೊಬ್ಬರಕ್ಕಾಗಿ ಉಳುತ್ತಾರೆ. ಪೈರು ಬೆಳೆಯುತ್ತಿರುವಾಗ ಒಂದೆರಡು ಬಾರಿ ನೀರು ಹಾಯಿಸಿದರೆ ಉತ್ತಮ ಬೆಳೆಯಾಗುತ್ತದೆ. ಮಳೆ ಪ್ರದೇಶಗಳಲ್ಲಿ ಮಳೆ ಕಳೆದ ಮೇಲೆ ಉದ್ದಿನ ಬಿತ್ತನೆ ಮಾಡಬಹುದು. ಉದ್ದು 3 ತಿಂಗಳ ಬೆಳೆಯಾದ್ದರಿಂದ ಪರ್ಯಾಯ ಬೆಳೆಯಾಗಿದೆ. ಮಳೆಯ ಅನುಕೂಲಕ್ಕನುಗುಣವಾಗಿ ಏಪ್ರಿಲ್, ಮೇ ತಿಂಗಳಲ್ಲಿ ಬಿತ್ತನೆ ಮಾಡಿ ಜೂನ್ ಜುಲೈನಲ್ಲಿ ಪೈರು ಕೊಯಿಲು ಮಾಡಿ, ಮುಂದೆ ರಾಗಿ ಅಥವಾ ಹುಚ್ಚೆಳ್ಳು ಮುಂತಾದ ಬೆಳೆ ತೆಗೆಯುವುದು ಸಾಧ್ಯ. ಮುಖ್ಯ ಬೆಳೆಯ ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಎರೆಯ ಭೂಮಿಯಲ್ಲಿ ಇದನ್ನು ಮೇವು, ಜೋಳ, ಕುಸುಮ, ನಾರಗಸೆ ಮೊದಲಾದವುಗಳ ಜೊತೆಯಲ್ಲಿ ಸಾಲಮಿತ್ರ ಬೆಳೆಯಾಗಿ ಬಿತ್ತುತ್ತಾರೆ. ಅಪಸಣಬು ಅಲಸಂದೆ, ಹುರುಳಿ ಇವುಗಳೊಡನೆ ಮಿಶ್ರವಾದ ಉದ್ದಿನ ಬೆಳೆಯನ್ನು ಬತ್ತದ ಗದ್ದೆಗಳಲ್ಲಿ ಹಸಿರು ಗೊಬ್ಬರಕ್ಕಾಗಿ ಬೆಳೆಯುವುದು ಸಾಮಾನ್ಯ. ಉದ್ದಿನ ಬೆಳೆಗೆ ನೀರು ಹೆಚ್ಚು ಉಳಿಸಿಕೊಳ್ಳಲು ಸಾಮರ್ಥ್ಯವಿರುವ ಜೇಡಿ ಮಣ್ಣು ಬಹಳ ಅನುಕೂಲ. ಎರೆ ಭೂಮಿಗಳಲ್ಲಿ ಉತ್ತಮವಾದ ಬೆಳೆ ತೆಗೆಯಬಹುದು. ಹಾಗೆಯೇ ಆಳವಾದ ಕೆಂಪು ಗೋಡು ಭೂಮಿಗಳಲ್ಲೂ ಇದನ್ನು ಯಥೇಚ್ಛವಾಗಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತಾರೆ. ಭೂಮಿಯನ್ನು 3-4 ವಾರಗಳ ಅಂತರದಲ್ಲಿ ಒಂದೆರಡು ಸಾರಿ ಉತ್ತು, ಕುಂಟೆ ಹೊಡೆದು ಬಿತ್ತನೆಗೆ ತಯಾರು ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಬೀಜವನ್ನು ಎರಚಿ ಬಿತ್ತುವುದು ರೂಢಿ. ಸಾಲಿನಲ್ಲಿ ಬಿತ್ತಿದಾಗ ಮಧ್ಯಂತರ 10" ಇರುತ್ತದೆ. ಒಂದು ವಾರದಲ್ಲಿ ಬೀಜ ಮೊಳೆತು ಪೈರು ಮೇಲೆ ಕಾಣಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತದೆ. ಮೂರು ವಾರಾನಂತರ ಅಲುಗೆಯ ಕುಂಟೆಯಿಂದ ಸಾಲಿನ ಮಧ್ಯ ಕಳೆ ತೆಗೆಯುವುದುಂಟು. ಏಳು ವಾರದಲ್ಲಿ ಪೈರು ಹೂವಿಗೆ ಬರುತ್ತದೆ. ಮೂರು ತಿಂಗಳಲ್ಲಿ ಕಾಯಿ ಬಲಿತು ಕಟಾವಿಗೆ ಸಿದ್ಧವಾಗುತ್ತದೆ. ಗಿಡಗಳನ್ನು ಬೇರು ಸಮೇತ ಕಿತ್ತು ಒಣಗಿಸಿ ಬಡಿದು ಅಥವಾ ಎತ್ತಿನಿಂದ ತುಳಿಸಿ ಕಾಳನ್ನು ಬೇರೆ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ. ಇತ್ತೀಚಿನ ವರ್ಷಗಳಲ್ಲಿ ಕಾಳನ್ನು ಬೇರ್ಪಡಿಸಲು ಯಂತ್ರಗಳನ್ನು ಉಪಯೋಗಿಸುತ್ತಾರೆ. ಸಿಪ್ಪೆಯನ್ನು ಹುಲ್ಲಿನೊಡನೆ ಬೆರೆಸಿ ದನಗಳಿಗೆ ತಿನ್ನಿಸುತ್ತಾರೆ. ಒಣಗಿದ ಗಿಡವನ್ನು ಗೊಬ್ಬರದ ಗುಂಡಿಗೆ ಹಾಕುತ್ತಾರೆ. ಇಲ್ಲವೆ ಉರುವಲಾಗಿ ಬಳಸುತ್ತಾರೆ. ಉಳಿದ ಕಾಳುಗಳಂತೆ ಉದ್ದನ್ನು ದಾಸ್ತಾನು ಮಾಡಿದಾಗಲೂ ಹುಳು ಬಿದ್ದು ನಷ್ಟವಾಗಬಹುದು. ಉದ್ದು ದ್ವಿದಳ ಜಾತಿಗೆ ಸೇರಿದ್ದು. ವೈಜ್ಞಾನಿಕವಾಗಿ ಇದು ಲೆಗ್ಯುಮಿನೇಸೀ ಎಂಬ ಕುಟುಂಬಕ್ಕೂ ಪ್ಯಾಪಿಲಿಯೋನೇಸೀ ಎಂಬ ಉಪಕುಟುಂಬಕ್ಕೂ ಸೇರಿದೆ. ಸಸ್ಯಕ್ಕೆ ದೃಢವಾದ ತಾಯಿಬೇರು ಮತ್ತು ಹರಡುವ ಬೇರುಗಳಿವೆ. ಈ ಬೇರುಗಳ ಮೇಲೆ ಬ್ಯಾಕ್ಟೀರಿಯಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿರುವ ಗಂಟುಗಳು ಇರುತ್ತವೆ. ಈ ಬ್ಯಾಕ್ಟ್ರೀರಿಯಗಳ ಸಹಾಯದಿಂದ ಬೇರುಗಳು ವಾಯುವಿನಲ್ಲಿರುವ ಸಾರಜನಕವನ್ನು ನೇರವಾಗಿ ಹೀರಬಲ್ಲವು. ಗಿಡದ ಎತ್ತರ 1 ಗಿಂತ ಹೆಚ್ಚಿರುವುದಿಲ್ಲ. ರೆಂಬೆಗಳು ಹೇರಳ. ಕಾಂಡ ಮತ್ತು ಎಲೆಗಳು ಒರಟಾದ ಕೆಂಪು ಕೂದಲಿನಿಂದ ಕೂಡಿವೆ. ಹೂವಿನ ಬಣ್ಣ ಹಳದಿ. ಕಾಯಿ ತೆಳು, ನಾಳಾಕಾರ, 1ಳಿ"-2ಳಿ" ಉದ್ದ. ಪ್ರತಿ ಕಾಯಿಯಲ್ಲೂ 8-15 ಕಾಳುಗಳಿರುತ್ತವೆ. ಕಾಳಿನ ಬಣ್ಣ ಕಪ್ಪು ಇಲ್ಲವೆ ಕಪ್ಪುಕಂದು. ಬೇಳೆಯ ಬಣ್ಣ ಬಿಳಿ. ಮೈಸೂರು ರಾಜ್ಯದಲ್ಲಿ ಎರಡು ಜಾತಿಯ ಉದ್ದು ಕೃಷಿಯಾಗುತ್ತದೆ ; ಸಣ್ಣದು ಮತ್ತು ದಪ್ಪದು. ಮೊದಲನೆಯದನ್ನು ಮುಂಗಾರು ಸಮಯದಲ್ಲೂ ಎರಡನೆಯ ಜಾತಿಯ ಉದ್ದನ್ನು ಹಿಂಗಾರಿನಲ್ಲೂ ಬೆಳೆಯುತ್ತಾರೆ.
ಉದ್ದಿನ ಹಿಟ್ಟಿನ ಒಂದು ಮುಖ್ಯ ಲಕ್ಷಣವೆಂದರೆ, ಇದನ್ನು ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಕಲಸಿ ರುಬ್ಬಿದ ಹಾಗೆಲ್ಲ ನಯವಾಗಿ ದೋಸೆ, ಇಡ್ಲಿ, ವಡೆ ಮುಂತಾದ ತಿಂಡಿತಿನಿಸುಗಳ ರಚನೆಯನ್ನು ಉತ್ತಮಪಡಿಸುತ್ತದೆ. ಇದರಲ್ಲಿನ ಪ್ರೊಟೀನ್ ಮಾಂಸದ ಪ್ರೊಟೀನಿನಷ್ಟೇ ಪುಷ್ಟಿಕರ. ರುಬ್ಬಿದ ಉದ್ದನ್ನು ಹಸುಗಳಿಗೆ ತಿನ್ನಿಸಿದಾಗ ಹಾಲು ವೃದ್ಧಿಯಾಗುವುದು ಕಂಡುಬಂದಿದೆ. ಉದ್ದನ್ನು ದೋಸೆ, ಇಡ್ಲಿ ಮುಂತಾದ ತಿಂಡಿಗಳಲ್ಲೂ ಜಹಾಂಗೀರ್ನಂತಹ ಸಿಹಿ ತಿಂಡಿಗಳಲ್ಲೂ ಸಾಂಬಾರು ಗೊಜ್ಜು ಮೊದಲಾದವುಗಳ ಲವಾಜಮೆಯಲ್ಲೂ ಹೇರಳವಾಗಿ ಬಳಸುತ್ತಾರೆ.
ವಿಗ್ನಾ ಮುಂಗೊ, (ಉದ್ದಿನ ಬೇಳೆ) ಭಾರತೀಯ ಉಪಖಂಡದಲ್ಲಿ ಬೆಳೆಯಲಾಗುವ ಒಂದು ಬೀಜ. ಹೆಸರು ಕಾಳಿನ ಜೊತೆಗೆ ಇದನ್ನು ಫ಼್ಯಾಸಿಯೋಲಸ್ನಲ್ಲಿ ಇರಿಸಲಾಗಿತ್ತು ಆದರೆ ನಂತರ ವಿಗ್ನಾಗೆ ವರ್ಗಾಯಿಸಲಾಗಿದೆ. ಒಂದು ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಇದು ಹೆಸರು ಕಾಳಿನ ಪ್ರಜಾತಿಗೇ ಸೇರಿದ್ದೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿತ್ತು. ಒಂದು ದ್ವಿದಳ ಧಾನ್ಯ (ಫ್ಯಾಸಿಯೋಲಸ್ ಮುಂಗೊ). ತೊಗರಿ, ಅವರೆ, ಹೆಸರು ಇಂಥ ಬೇಳೆಗಳ ಹಾಗೆಯೇ ಇದು ನಮ್ಮ ಆಹಾರದಲ್ಲಿ ಪ್ರೊಟೀನು ಆವಶ್ಯಕತೆಯನ್ನು ಪುರೈಸಲು ಸಹಕಾರಿ. ಬಹು ಜನಪ್ರಿಯವಾಗಿರುವ ಇಡ್ಲಿ, ದೋಸೆಗಳ ತಯಾರಿಕೆಯಲ್ಲಿ ಉದ್ದನ್ನು ಬಳಸಿದಾಗ ಹುದುಗುವಿಕೆ ಉಂಟಾಗಿ, ಇಡ್ಲಿ ಮತ್ತು ದೋಸೆಯು ಮೃದುವಾಗಿ, ಉಬ್ಬಿ, ನೋಡುವುದಕ್ಕೆ ಆಕರ್ಷಕವಾಗಿಯೂ, ತಿನ್ನುವುದಕ್ಕೆ ರುಚಿಕರವಾಗಿಯೂ ಇರುತ್ತವೆಯಲ್ಲದೆ ಅಗತ್ಯವಾದ ಪ್ರೋಟೀನನ್ನು ಒದಗಿಸುತ್ತವೆ. ಉದ್ದಿನ ಮೂಲಕ ಈ ತಿಂಡಿಗಳಿಗೆ ಪ್ರೋಟೀನಿನ ಅಂಶ ಸೇರುತ್ತದೆ. ಊಟ, ತಿಂಡಿಗಳಲ್ಲಿ ಉದ್ದಿನ ಬಳಕೆ ಆರ್ಯರ ಕಾಲದಿಂದ ಇರುವುದು ಕಂಡುಬಂದಿದೆ. ಇಂದಿಗೂ ಶ್ರಾದ್ಧಾದಿ ವಿಶೇಷ ದಿವಸಗಳಲ್ಲಿ ಉದ್ದಿನ ವಡೆ ಊಟಕ್ಕೆ ಇರಲೇಬೇಕು. ಇದು ಮಾಂಸದಷ್ಟೇ ಪೌಷ್ಟಿಕ ಆಹಾರವೆಂಬ ವಿಷಯ ಅಂದಿನವರಿಗೆ ತಿಳಿದಿದ್ದಿರಬೇಕು.
မတ်ပဲ (Vigna mungo, black gram, urad bean, minapa pappu, mungo bean သို့မဟုတ် black matpe bean ) သည် အိန္ဒိယတိုက်ငယ်တွင် စိုက်ပျိုးဖြစ်ထွန်းသော ပဲတစ်မျိုး ဖြစ်သည်။
မတ်ပဲ (Vigna mungo, black gram, urad bean, minapa pappu, mungo bean သို့မဟုတ် black matpe bean ) သည် အိန္ဒိယတိုက်ငယ်တွင် စိုက်ပျိုးဖြစ်ထွန်းသော ပဲတစ်မျိုး ဖြစ်သည်။
Vigna mungo, also known as black gram, urad bean, urid bean, mash kalai, uzhunnu parippu, ulundu paruppu, minapa pappu, uddu, or black matpe, is a bean grown in South Asia. Like its relative, the mung bean, it has been reclassified from the Phaseolus to the Vigna genus. The product sold as black lentil is usually the whole urad bean, whereas the split bean (the interior being white) is called white lentil. It should not be confused with the much smaller true black lentil (Lens culinaris).
Black gram originated in South Asia, where it has been in cultivation from ancient times and is one of the most highly prized pulses of India. It is very widely used in Indian cuisine. In India the black gram is one of the important pulses grown in both Kharif and Rabi seasons. This crop is extensively grown in southern part of India, northern part of Bangladesh and Nepal. In Bangladesh and Nepal it is known as mash daal. It is a popular daal (legume) side dish in South Asia, that goes with curry and rice as a platter. Black gram has also been introduced to other tropical areas such as the Caribbean, Fiji, Mauritius, Myanmar and Africa.
It is an erect, suberect or trailing, densely hairy, annual bush. The tap root produces a branched root system with smooth, rounded nodules. The pods are narrow, cylindrical and up to six cm long. The plant grows 30–100 cm with large hairy leaves and 4–6 cm seed pods.[2] While the urad dal was, along with the mung bean, originally placed in Phaseolus, it has since been transferred to Vigna.
Vigna mungo is popular in Northern India, largely used to make dal from the whole or split, dehusked seeds. The bean is boiled and eaten whole or, after splitting, made into dal; prepared like this it has an unusual mucilaginous texture.
Its usage is quite common in Dogra Cuisine of Jammu and Lower Himachal region. The key ingredient of Dal Maddhra or Maah Da Maddhra dish served in Dogri Dhaam of Jammu is Vigna Mungo lentil.[3] Similarly, another dish Teliya Maah popular in Jammu & Kangra uses this lentil.[4] Traditionally, Vigna Mungo Lentil is used for preparing Dogra style Khichdi during Panj Bhikham and Makar Sankranti festival in Jammu and Lower Himachal. Besides, fermented Vigna Mungo paste is also used to prepare Lakhnapuri Bhalle or Lakhanpuri Laddu ( a popular street food of Jammu region).
In Uttarakhand Cuisine, Vigna Mungo is used for preparing traditional dish called Chainsu or Chaisu.[5]
In North Indian cuisine, it is used as an ingredient of Dal makhani, which is a Modern restaurant style adaptation of Traditional Sabut Urad Dal of Northern India.
In Bengal, it is used in kalai ruti, biulir dal. In Rajasthan, It is one of the ingredients of Panchmel dal which is usually consumed with bati.
It is also extensively used in South Indian culinary preparations. Black gram is one of the key ingredients in making idli and dosa batter, in which one part of black gram is mixed with three or four parts of idli rice to make the batter. Vada or udid vada also contain black gram and are made from soaked batter and deep-fried in cooking oil. The dough is also used in making papadum, in which white lentils are usually used.
In the telugu states, it is eaten as a sweet in the form of laddoos called Sunnundallu or Minapa Sunnundallu
Its nutrition numbers when raw differ from when cooked. When raw it contains high levels of protein (25 g/100 g), potassium (983 mg/100 g), calcium (138 mg/100 g), iron (7.57 mg/100 g), niacin (1.447 mg/100 g), thiamine (0.273 mg/100 g), and riboflavin (0.254 mg/100 g).[6] Black gram complements the essential amino acids provided in most cereals and plays an important role in the diets of the people of Nepal and India.[2] Black gram is also very high in folate (628 µg/100 g raw, 216 µg/100 g cooked).[7]
In medieval India, this bean was used in a technique to facilitate making crucibles impermeable.[8]
Vigna mungo is known by various names across South and Southeast Asia. Its name in most languages of India derives from Proto-Dravidian *uẓ-untu-, borrowed into Sanskrit as uḍida:[9]
Its name in selected Indic languages, however, derives from Sanskrit masa (माष) :
Other names include:
Pant Urd 31 (PU-31) Lam Black Gram 884 (LBG 884) Trombay Urd (TU 40)
Mutant varieties:CO-1 and Sarla. Spring season varieties:Prabha and AKU-4. First urad bean variety developed in – T9(1948).
Vigna mungo, also known as black gram, urad bean, urid bean, mash kalai, uzhunnu parippu, ulundu paruppu, minapa pappu, uddu, or black matpe, is a bean grown in South Asia. Like its relative, the mung bean, it has been reclassified from the Phaseolus to the Vigna genus. The product sold as black lentil is usually the whole urad bean, whereas the split bean (the interior being white) is called white lentil. It should not be confused with the much smaller true black lentil (Lens culinaris).
Black gram originated in South Asia, where it has been in cultivation from ancient times and is one of the most highly prized pulses of India. It is very widely used in Indian cuisine. In India the black gram is one of the important pulses grown in both Kharif and Rabi seasons. This crop is extensively grown in southern part of India, northern part of Bangladesh and Nepal. In Bangladesh and Nepal it is known as mash daal. It is a popular daal (legume) side dish in South Asia, that goes with curry and rice as a platter. Black gram has also been introduced to other tropical areas such as the Caribbean, Fiji, Mauritius, Myanmar and Africa.
La urdvigno (Vigna mungo), ankaŭ nomata lentvigno, estas plantspecio el la subfamilio de la Faboideoj ene de la familio de la Fabacoj (Fabaceae). Tiu ĉi utilplanto estas proksime parenca al mungo (Vigna radiata).
La urdvigno estas kultivata de 3000 ĝis 4000 jaroj en la Hinda subkontinento. Ĝi estas nun disvastigita en la tuta sudo kaj sudoriento de Azio.
La urdvigno kreskas malalte, starante aus rampante. Ĝi estas unujara planto, sed la savaĝa formo esta multjara herba planto, kies tigoj ricevas longecon de 2 ĝis 4 m. La kulturplanto nur atingas kreskoalton de 20 ĝis 30 cm, povas esti ankaŭ 60 ĝis 90 cm.
La haraj folioj konistas el tri partoj kaj havas pedunklon. La pedunkloj havas longecon de ĉ. 10 cm. La tri folietoj estas larĝe-lancetaj ĝis ovale pintaj. Ili larĝas 5 ĝi 7 cm kaj longas 5 ĝis 10 cm.
La akselstarantaj ĉ. 15 cm longaj florpedunkloj staras, kaj havas dufoje aŭ trifoje disbranĉitaj floraroj, kiuj havas partajn florarojn de ofte kin ĝis ses floroj. La florkoloro estas brile flava. Ĉiu floro floras nur malmulte da horoj. Plej ofte okazas memfekundado.
Po partaj floraro evoluiĝas ofte nur du ĝis tri guŝoj. La aspre haraj kaj rektaj guŝoj havas longecon de 4 ĝis 7 cm kaj larĝecon de ĉ. 0,6 cm. Ĉiu guŝo havas kvar ĝis dek semojn. La brilaj, malgrandaj semoj havas diametron de ĉ. 4 mm. Ĝia koloro estas tre malhele verdaj ĝis nigraj, sed ankaŭ ekzistas verdajn tipojn. La semoj estas ĉiam interne blanka, kio estas la distinga punkto de mungoj, kiuj estas interne flavaj. La blanka kaj konkava volbita hilumo havas longecon de 1,2 ĝis 2,3 mm kaj larĝeco de ĝis 1 mm. La milgrajna pezo estas 15 ĝis 40 gramoj. La semoj ĝermas super la grundo.
Manĝeblaj estas kaj freŝaj guŝoj, ĝermplantoj kaj sekaj vignoj. En Hindujo la urdvigno estas pli ŝatataj ol fazeoloj aŭ faboj. Ili havas saman kuirtempoj kaj bone kombiniĝas kun rizo. En suda Hindujo oni faras paston el la vigna faruno, kiu estas uzata por fari vadaon), kaj kune kun rizfaruno ĝi estas farata por fari buletojn (Idli) kaj patkukon (Dosa). Ĝi povas esti uzata anstataŭ lentoj en papadamo-pano. La urdvigno enhavas ĉ. 20 ĝis 24 % (de la seka pezo).
En la hindia la planto nomiĝas urad, urad dal, udad dal, urd, urid, maash (मास) en la nepala), or උඳු en la sinhala, đậu muồng ăn en la vjetnama, uzhunu (ഉഴുന്ന്) en la malajama, minumulu (మినుములు) en la telugua, uddina bele (ಉದ್ದಿನ ಬೇಳೆ) en la kanara, urdu bele en la tulua, ulunthu (உளுந்து) en la tamila, adad (અળદ) en la guĝarata, biri dali en la orija, kaj mashkalai dal (মাসকালাই ডাল) en la bengala.
La unua priskribo Phaseolus mungo kazis en 1767 en Mantissa Altera, 1, 101 fare de Carl von Linné. La aktuala valida nomo estis publikigita en 1956 de Frank Nigel Hepper en Kew Bull. 11,128. Sinonimoj de Vigna mungo (L.) HEPPER estas: Azukia mungo (L.) MASAMUNE, Phaseolus radiatus ROXB. NON L., Phaseolus roxburghii WIGHT & ARNOTT. Phaseolus radiatus L. estas sinonimo de Vigna radiata kaj Phaseolus radiatus ROXB. sinonimo de Vigna mungo.
Vigna radiata apartenas al la subgenro Ceratotropis en la genro Vigna.[1]
Ekszistas du varioj:[1]
La urdvigno (Vigna mungo), ankaŭ nomata lentvigno, estas plantspecio el la subfamilio de la Faboideoj ene de la familio de la Fabacoj (Fabaceae). Tiu ĉi utilplanto estas proksime parenca al mungo (Vigna radiata).
Vigna mungo, popularmente llamada fréjol negro, frijol negro, lenteja negra, mungo o poroto mung, es una fabácea que se cultiva ampliamente en el sur de Asia, forma parte de los dal empleados en la cocina india, donde se denomina urd.
Se puede distinguir de Vigna radiata por los pelos más largos en las vainas, el arilo claramente visible alrededor del hilo de las semillas y el color de estas, verde sucio.
Vigna mungo se utiliza en la medicina tradicional de la India ( Ayurveda ). Farmacológicamente, sus extractos han demostrado actividad inmunoestimulante en ratas.[1]
Vigna mungo fue descrita por (L.) Hepper y publicado en Kew Bulletin 11(1): 128. 1956.[2]
Vigna: nombre genérico que fue otorgado en honor del botánico italiano Domenico Vigna que lo descubrió en el siglo XVII.
mungo: epíteto
Vigna mungo, popularmente llamada fréjol negro, frijol negro, lenteja negra, mungo o poroto mung, es una fabácea que se cultiva ampliamente en el sur de Asia, forma parte de los dal empleados en la cocina india, donde se denomina urd.
Vigna mungo
Le haricot urd, ou urd (Vigna mungo), ou haricot mungo à grain noir[1], parfois appelé soja noir[2],[3], est une plante de la famille des Fabaceae. Cette légumineuse est cultivée en Asie méridionale. Elle est largement utilisée pour préparer le dal à partir des graines décortiquées, entières ou cassées. Comme le haricot mungo, cette espèce avait été classée dans le genre Phaseolus avant d'être transférée dans le genre Vigna. Elle fut un moment considérée comme appartenant à la même espèce que le haricot mungo (Vigna radiata).
Le haricot urd est originaire de l'Inde où il est cultivé depuis des temps très anciens et c'est l'une des légumineuses les plus appréciées en Inde. Il a été introduit par les immigrants indiens dans de nombreux pays tropicaux.
C'est une plante herbacée annuelle, érigée ou rampante, densément velue. La racine principale produit un système racinaire ramifié avec des nodosités sphériques et lisses.
Les gousses sont étroites, cylindriques, et mesurent jusqu'à six centimètres de long. Les graines sont bouillies et consommées entières ou cassées sous forme de dal ; préparé de cette manière, il a une texture mucilagineuse inhabituelle. Moulu sous forme de farine ou de pâte, il entre dans de nombreuses préparations culinaires telles que les dosa, idli, vada et papadum. Dans ce cas, on utilise généralement les « lentilles blanches », appelées ulundhu (உளுந்து) en tamoul.
Comme d'autres légumineuses, c'est un légume très nourrissant, recommandé pour les diabétiques. C'est un ingrédient très populaire de la cuisine du Pendjab en Inde et au Pakistan où il est connu sous le nom de maanh.
Le produit vendu comme « lentilles noires » est habituellement constitué par les graines de haricot urd entières, qui prennent le nom de « lentilles blanches » lorsqu'elles sont privées de leur tégument noir.
Vigna mungo
Le haricot urd, ou urd (Vigna mungo), ou haricot mungo à grain noir, parfois appelé soja noir,, est une plante de la famille des Fabaceae. Cette légumineuse est cultivée en Asie méridionale. Elle est largement utilisée pour préparer le dal à partir des graines décortiquées, entières ou cassées. Comme le haricot mungo, cette espèce avait été classée dans le genre Phaseolus avant d'être transférée dans le genre Vigna. Elle fut un moment considérée comme appartenant à la même espèce que le haricot mungo (Vigna radiata).
Il fagiolo indiano nero o fagiolo mungo nero (Vigna mungo (L.) Hepper) è una pianta della famiglia delle Fabacee (o Leguminose)[1], originaria dell'India.
Questa pianta è conosciuta con il nome di urad, ma sovente vi si riferisce nominandone il seme in una delle numerose varianti: urad dal, udad dal, urd, urid, maas (in Nepalese), đậu đen (Vietnamita, letteralmente: fagiolo nero), ma anche urd bean, black gram e black matpe bean (in inglese).
I frutti sono baccelli stretti, lunghi 6 cm. I semi sono simili ai fagioli, ma più piccoli, e hanno buccia nera. A volte vengono presentati decorticati, nel qual caso hanno colore bianco.
Vigna mungo è originaria dell'India.
La coltivazione di questo legume, iniziata in India in epoca preistorica, è largamente diffusa nelle aree tropicali e subtropicali dell'Asia, dall'Iran al Giappone; è anche coltivata in Africa e in Oceania.
Linneo descrisse nel 1767 Phaseolus mungo. Successivamente, questa specie è stata scorporata, insieme a molte altre, dal genere Phaseolus e inserita nel nuovo genere Vigna.
Il fagiolo mungo nero è usato per l'alimentazione umana, previa cottura. Oltre che intero (bollito), viene consumato in forma di farina, che entra come ingrediente in moltissime ricette, ad esempio nel papadum.
Il fagiolo indiano nero o fagiolo mungo nero (Vigna mungo (L.) Hepper) è una pianta della famiglia delle Fabacee (o Leguminose), originaria dell'India.
Questa pianta è conosciuta con il nome di urad, ma sovente vi si riferisce nominandone il seme in una delle numerose varianti: urad dal, udad dal, urd, urid, maas (in Nepalese), đậu đen (Vietnamita, letteralmente: fagiolo nero), ma anche urd bean, black gram e black matpe bean (in inglese).
Fasola mungo (Vigna mungo var. mungo) – gatunek rośliny z rodziny bobowatych. Dawniej zaliczany był do rodzaju fasola (Phaseolus). Pochodzi z Indii, uprawiana jest na terenach tropikalnych i subtropikalnych. W Europie wprowadzona na południu.
Roślina jadalna, w krajach tropikalnych w powszechnym użyciu, przerabiana również na mąkę.
Fasola mungo (Vigna mungo var. mungo) – gatunek rośliny z rodziny bobowatych. Dawniej zaliczany był do rodzaju fasola (Phaseolus). Pochodzi z Indii, uprawiana jest na terenach tropikalnych i subtropikalnych. W Europie wprowadzona na południu.
Vigna mungo (L.) Hepper, Vigna mungo (L.) Hepper, é uma planta da família das leguminosas que produz pequenos feijões pretos conhecidos pelos nomes comuns de feijão-da-china e feijão-preto. Apesar do nome científico, não devem ser confundidos com o feijão-mungo, Vigna radiata, que produz feijões de cor verde. Outras diferenças existem no hábito da planta: embora as plantas das duas espécies sejam eretas, V. mungo cresce até 100 cm, as corolas das flores são de cor amarelo-brilhante e o fruto é ereto, com 4-7 cm e contém 4-10 sementes, enquanto V. radiata produz vagens pendentes, com corola amarelo-pálido e um maior número de sementes.[1]
A planta é nativa da Índia, onde os feijões pretos, com uma produção anual de cerca de 1,5 milhões de toneladas de semente, são muito utilizados na alimentação e como forragem ou adubo verde. Outros grandes produtores são o Myanmar e a Tailândia, que são os maiores exportadores, atingindo mais de 40% do volume mundial de feijões transacionados.
Nativa de regiões tropicais da Ásia, tem flores amarelo-claras e vagens cilíndricas. É cultivada, também em outras regiões inclusive no Brasil, como forrageira, como adubo verde e pelas propriedades medicinais. Também é conhecida por feijão-colubrino, feijão-da-pérsia, feijão-do-congo, feijão-mungo, feijão-peludo, lentilha branca ou preta, grão-de-pulha, mugo, mungo e oloco.
Vigna mungo (L.) Hepper, Vigna mungo (L.) Hepper, é uma planta da família das leguminosas que produz pequenos feijões pretos conhecidos pelos nomes comuns de feijão-da-china e feijão-preto. Apesar do nome científico, não devem ser confundidos com o feijão-mungo, Vigna radiata, que produz feijões de cor verde. Outras diferenças existem no hábito da planta: embora as plantas das duas espécies sejam eretas, V. mungo cresce até 100 cm, as corolas das flores são de cor amarelo-brilhante e o fruto é ereto, com 4-7 cm e contém 4-10 sementes, enquanto V. radiata produz vagens pendentes, com corola amarelo-pálido e um maior número de sementes.
A planta é nativa da Índia, onde os feijões pretos, com uma produção anual de cerca de 1,5 milhões de toneladas de semente, são muito utilizados na alimentação e como forragem ou adubo verde. Outros grandes produtores são o Myanmar e a Tailândia, que são os maiores exportadores, atingindo mais de 40% do volume mundial de feijões transacionados.
Nativa de regiões tropicais da Ásia, tem flores amarelo-claras e vagens cilíndricas. É cultivada, também em outras regiões inclusive no Brasil, como forrageira, como adubo verde e pelas propriedades medicinais. Também é conhecida por feijão-colubrino, feijão-da-pérsia, feijão-do-congo, feijão-mungo, feijão-peludo, lentilha branca ou preta, grão-de-pulha, mugo, mungo e oloco.
Đậu mười hay đậu xanh bốn mùa, đậu muồng ăn (danh pháp: Vigna mungo là loài thực vật thuộc họ Đậu được trồng ở Nam Á. Có thể dùng nguyên quả hoặc dùng hạt. Cùng với đậu xanh, cây đậu mười từng được xếp vào chi Phaseolus nhưng hiện đã được chuyển sang chi Vigna. Từng có quan điểm cho rằng đậu mười và đậu xanh là cùng một loài.
Đậu mười được dùng làm cây thuốc ở Ấn Độ. Chất chiết từ cây đậu mười có hoạt tính immunostimolatory[1].
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Đậu mười hay đậu xanh bốn mùa, đậu muồng ăn (danh pháp: Vigna mungo là loài thực vật thuộc họ Đậu được trồng ở Nam Á. Có thể dùng nguyên quả hoặc dùng hạt. Cùng với đậu xanh, cây đậu mười từng được xếp vào chi Phaseolus nhưng hiện đã được chuyển sang chi Vigna. Từng có quan điểm cho rằng đậu mười và đậu xanh là cùng một loài.
Đậu mười được dùng làm cây thuốc ở Ấn Độ. Chất chiết từ cây đậu mười có hoạt tính immunostimolatory.
Урд, или маи, в просторечии чёрный маш (лат. Vígna múngo) — вид растений из рода Вигна семейства Бобовые (Fabaceae). Используется человеком в пищу, близкородственен ряду других бобовых, в особенности машу (Vigna radiata).
Известны две разновидности урда: Vigna mungo (L.) Hepper var. mungo — являющийся культивируемым подвидом, и Vigna mungo (L.) Hepper var. silvestris — его дикая форма. Впервые урд начал выращиваться человеком 3000—4000 лет назад на Индийском субконтиненте. В настоящее время это растение широко распространено на территории Южной и Юго-Восточной Азии. Впервые было описано в 1767 году как Phaseolus mungo в Mantissa Altera, 1, 101, у Карла Линнея.
Культивируемый урд является невысоким, прямым или висячим, однолетним растением, выведенным из дикой формы — выносливого травянистого растения с длиной стеблей от 2 до 4 метров. Обычно у культурного сорта урда длина стеблей составляет от 20 до 60 сантиметров, в исключительных случаях — до 90 сантиметров. Ворсистые листья трёхпалые, их черенки достигают 10 сантиметров. Каждая из 3 остро-овальных частей листа имеет ширину от 5 до 7 и длину от 5 до 10 сантиметров. На каждом, 2—3 раза разветвляющемся ростке расцветает от 5 до 6 цветков сияюще-жёлтого цвета. Цветение продолжается всего несколько часов. Как правило, имеет место самоопыление.
На каждой ветви прорастает обычно по 2—3 боба. Покрытые жёсткими ворсинками бобы имеют длину в 4—7 сантиметров и ширину в 0,6 сантиметра. В каждом бобе находится 4—10 семян. Семена эти блестящие, квадратной формы, размером в 4 миллиметра. Цвет их как правило — чёрный, однако встречаются и зелёные формы. Вес 1000 этих зёрен составляет от 15 до 40 граммов.
В пищу человеком употребляются как сырые бобы урда, так и проросшие и сушёные семена. В Индии и в Пакистане это один из самых популярных видов бобовых. Из цельных семян варят похлёбку, именуемую дал. В приготовлении различных блюд урд хорошо сочетается с рисом, так как имеет одинаковое с ним время варки.
Урд даже в сушёном состоянии сохраняет довольно высокое содержание белка (20—24 %).
Урд, или маи, в просторечии чёрный маш (лат. Vígna múngo) — вид растений из рода Вигна семейства Бобовые (Fabaceae). Используется человеком в пищу, близкородственен ряду других бобовых, в особенности машу (Vigna radiata).
ケツルアズキ(毛蔓小豆、学名:Vigna mungo、英:black gram、別名:黒緑豆[1]、ブラックマッペ)はササゲ属アズキ亜属に所属する、つる性草本。 日本では主に『もやし豆』として知られている。
耐乾性が強く、黒色~黄緑色の種子を付ける。インドからバングラデシュ、パキスタン、ミャンマーにかけて分布する、野生種(リョクトウ(緑豆)と共通祖先)から栽培化されたと考えられている[2]。
インドでは古より保存食(乾燥豆)として一般的で、煮たり煎ったり、あるいは粉に挽いて用いられる。また、未熟な莢はサヤインゲンのように野菜として利用される。
2R,5R-ビス(ジヒドロキシメチル)-3R,4R-ジヒドロキシピロリジンを含むマメ科植物には、血糖値を抑制する効果のあるα-グルコシダーゼ阻害作用を有するものがあり[3]、アズキ、インゲンマメ、ケツルアズキ(コクリョクトウ)、リョクトウ、黒ダイズの順でその活性が高かった。エンドウ及びダイズではほとんどその活性を示さなかった[4]。
山口裕文・川瀬眞琴編著 『雑穀の自然史:その起源と文化を求めて』 北海道大学出版会、2003年、ISBN 4-8329-8051-3
ケツルアズキ(毛蔓小豆、学名:Vigna mungo、英:black gram、別名:黒緑豆、ブラックマッペ)はササゲ属アズキ亜属に所属する、つる性草本。 日本では主に『もやし豆』として知られている。
耐乾性が強く、黒色~黄緑色の種子を付ける。インドからバングラデシュ、パキスタン、ミャンマーにかけて分布する、野生種(リョクトウ(緑豆)と共通祖先)から栽培化されたと考えられている。
インドでは古より保存食(乾燥豆)として一般的で、煮たり煎ったり、あるいは粉に挽いて用いられる。また、未熟な莢はサヤインゲンのように野菜として利用される。
2R,5R-ビス(ジヒドロキシメチル)-3R,4R-ジヒドロキシピロリジンを含むマメ科植物には、血糖値を抑制する効果のあるα-グルコシダーゼ阻害作用を有するものがあり、アズキ、インゲンマメ、ケツルアズキ(コクリョクトウ)、リョクトウ、黒ダイズの順でその活性が高かった。エンドウ及びダイズではほとんどその活性を示さなかった。
乾燥したケツルアズキの種子
우라드콩(힌디어: उड़द 우라드, 학명: Vigna mungo 비그나 뭉고[*])은 콩과의 한해살이풀이다.
우르드는 검은빛으로 광택이 나며 타원형에 녹두만한 크기를 지닌다. 약간의 흙냄새가 나고 대부분 껍질을 벗기지 않은 상태로 유통된다.[2]
미얀마, 방글라데시, 인도, 파키스탄이 원산지이다.[3]
간단히 쪄서 간식처럼 먹기도 하고, 가루로 내어 반죽한 뒤 도넛 모양으로 튀겨낸 인도의 메두 바다(Medu vada)로도 만들어 먹는다. 또한 우르드를 향신료와 함께 끓이면 인도의 스튜인 우르드 달(Urd dal)로 조리할 수 있다. 이 우르드 달은 또 다시 인도식 떡인 이들리(Idili)나 인도식 팬케이크인 도사(Dosa)를 반죽하는 데 쓰인다.[2]
양질의 단백질이 풍부하고 지방이 적어 체중조절에 도움이 된다. 섬유질이 풍부에 변비 예방에 좋다. 비타민 B2로도 알려진 리보플라빈(riboflavin)이 함유되어 있어 피부에 유해한 과산화지질을 분해해 피부 개선, 노화 방지 등에 효과를 가져다준다.[2]