ही भारतात उगवणारी एक आयुर्वेदिक औषधी वनस्पती आहे.
हिला वेगवेगळ्या भाषांत असे म्हणतात :
मराठीत शरपुंखा हे नाव पडण्याचे मुख्य कारण असे आहे या झाडाचे पान तोडल्यास बाणाच्या शेपटीचा आकार तयार होतो . शर म्हणजे बाण व पुंखा म्हणजे शेपटी यावरून नाव पडले शरपुंखा .
प्लीहा म्हणजे स्प्लीनवर कार्य करणाऱ्या द्रव्यात शरपुंखा प्रमुख समजली जाते. शरपुंखेचे झुडूप असते. फुलाच्या रंगावरून तांबडी शरपुंखा व पांढरी शरपुंखा असे दोन प्रकार पडतात. पांढरी शरपुंखा तांबड्यापेक्षा कमी प्रमाणात सापडते. शरपुंखेला तीन ते चार सें.मी. लांबीच्या थोड्याशा वाकलेल्या शेंगा येतात. शेंगेमध्ये ८-१० बिया असतात.
शर म्हणजे बाण. शरपुंखेचे वैशिष्ट्य असे की, हिच्या पानाचे टोक बोटात धरून तोडले, तर पानाच्या डेखाकडील बाजूस बाणाच्या मागच्या भागाप्रमाणे दोन टोके दिसतात म्हणून शरपुंखेला बाणपुंखा, सायकपुंखा असेही म्हणतात. प्लीहेवर कार्य करणारी असल्यामुळे हिला प्लीहशत्रू, प्लीहारी असेही म्हणतात. हिचे लॅटिन नाव गलेगा पुरपुरिया Galega purpurea असे आहे.
औषधात शरपुंखेचे पंचांग म्हणजे मूळ, साल, पाने, फुले व फळे हे सर्व भाग वापरले जातात.
शरपुंखेचा रस कडू व तुरट असतो. विपाक तिखट असतो व वीर्य शीतल असते. शरपुंखा पित्त व कफदोषाचे शमन करते. शरपुंखेचे मुख्य कार्य यकृत व प्लीहेवर होते. याशिवाय ती ताप, दमा, खोकला, गुल्म वगैरे व्याधीत उपयुक्त असते. व्रण भरून आणण्यास मदत करते. विषद्रव्यांचा नाश करते.
काविळीवर शरपुंखा पंचांगाचे चूर्ण साखरेसह मिसळून कोमट पाण्यासह घेण्याने उपयोग होतो. यकृत किंवा प्लीहा आकाराने वाढली असता शरपुंखेचे मूळ हे एक उत्तम औषध समजले जाते. शरपुंखेचे मूळ वाटून ताकासह सेवन केल्यास वाढलेली प्लीहा निश्चित कमी होते, असे भावप्रकाशात सांगितलेले सापडते.
ही भारतात उगवणारी एक आयुर्वेदिक औषधी वनस्पती आहे.
हिला वेगवेगळ्या भाषांत असे म्हणतात :
मराठी- शरपुंखा, उन्हाळी गुजराती - घोडाकन, झिला, सरपंखो हिंदी - सरफोंका कानडी - एंपली, कोग्गे बंगाली - बननील तामीळ - कोल्लुक्कवकेल्लपि संस्कृत - शरपुङ्खा इंग्रजी - Purple Tephrosia लॅटिन - Tephrosia purpureaमराठीत शरपुंखा हे नाव पडण्याचे मुख्य कारण असे आहे या झाडाचे पान तोडल्यास बाणाच्या शेपटीचा आकार तयार होतो . शर म्हणजे बाण व पुंखा म्हणजे शेपटी यावरून नाव पडले शरपुंखा .
प्लीहा म्हणजे स्प्लीनवर कार्य करणाऱ्या द्रव्यात शरपुंखा प्रमुख समजली जाते. शरपुंखेचे झुडूप असते. फुलाच्या रंगावरून तांबडी शरपुंखा व पांढरी शरपुंखा असे दोन प्रकार पडतात. पांढरी शरपुंखा तांबड्यापेक्षा कमी प्रमाणात सापडते. शरपुंखेला तीन ते चार सें.मी. लांबीच्या थोड्याशा वाकलेल्या शेंगा येतात. शेंगेमध्ये ८-१० बिया असतात.
शर म्हणजे बाण. शरपुंखेचे वैशिष्ट्य असे की, हिच्या पानाचे टोक बोटात धरून तोडले, तर पानाच्या डेखाकडील बाजूस बाणाच्या मागच्या भागाप्रमाणे दोन टोके दिसतात म्हणून शरपुंखेला बाणपुंखा, सायकपुंखा असेही म्हणतात. प्लीहेवर कार्य करणारी असल्यामुळे हिला प्लीहशत्रू, प्लीहारी असेही म्हणतात. हिचे लॅटिन नाव गलेगा पुरपुरिया Galega purpurea असे आहे.
औषधात शरपुंखेचे पंचांग म्हणजे मूळ, साल, पाने, फुले व फळे हे सर्व भाग वापरले जातात.
शरपुंखेचा रस कडू व तुरट असतो. विपाक तिखट असतो व वीर्य शीतल असते. शरपुंखा पित्त व कफदोषाचे शमन करते. शरपुंखेचे मुख्य कार्य यकृत व प्लीहेवर होते. याशिवाय ती ताप, दमा, खोकला, गुल्म वगैरे व्याधीत उपयुक्त असते. व्रण भरून आणण्यास मदत करते. विषद्रव्यांचा नाश करते.
काविळीवर शरपुंखा पंचांगाचे चूर्ण साखरेसह मिसळून कोमट पाण्यासह घेण्याने उपयोग होतो. यकृत किंवा प्लीहा आकाराने वाढली असता शरपुंखेचे मूळ हे एक उत्तम औषध समजले जाते. शरपुंखेचे मूळ वाटून ताकासह सेवन केल्यास वाढलेली प्लीहा निश्चित कमी होते, असे भावप्रकाशात सांगितलेले सापडते.
ଶରପୁଙ୍ଖା ଏକ ଉପକାରୀ ଔଷଧୀୟ ଗଛ । ଏହାର କୁଳ ଶିମ୍ବି ଓ ଉପ କୂଳ ଅପରାଜିତା ।
ଏହାର ବହୁବର୍ଷାୟୁ, ବହୁଶାଖାୟୁକ୍ତ, ଊର୍ଦ୍ଧ୍ୱ-ଉତ୍ଥିତ ୧-୩ ଫୁଟ ବିଶିଷ୍ଟ କ୍ଷ୍ୟୁପ ହୁଏ l ପତ୍ର-୩-୬ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବ ବିଷମପକ୍ଷବତ l ପତ୍ରକ-୧୯-୨୧ସଂଖ୍ୟାରେ ଅଭି-ଭାଲାକାର, ଗୋଳାଗ୍ର, ରୋମଶାଗ୍ର, ୩/୪ -୧ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା, ଉପର ଚିକ୍କଣ ଏବଂ ତଳ ରୋମଶ l ପୁଷ୍ପମଞ୍ଜରୀ -୩-୬ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବ ପତ୍ରାଭିମୁଖ, ୩-୪ ପବ ଯୁକ୍ତ ଯେଉଁଥିରେ ୧/୪ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବ ବାଇଗଣି ରଙ୍ଗର ପୁଷ୍ପ ହୋଇଥାଏ l ବାହ୍ୟକୋଷ-୧/୮-୧/୬ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା ,ରୋମଶ ଦନ୍ତୁରିତ ଯୁକ୍ତ ; ଅନ୍ତଃକୋଷ -୧/୪-୩/୮ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା lକୁକ୍ଷିବୃନ୍ତ ଅନୁପ୍ରସ୍ଥ ଚେପ୍ଟା l ଫଳିକା-୧-୨ ଇଞ୍ଚ ଲମ୍ବା, ୧/୩ ଇଞ୍ଚ ଚୌଡା ଇଷତ ବକ୍ର, ଯେଉଁଥିରେ ୬-୧୦ ହରିତାଭ ପାଉଁଶିଆ ରଙ୍ଗର ବୀଜ ଥାଏ l ପୁଷ୍ପ ବର୍ଷା ଋତୁରେ ତଥା ଫଳ ଶିତ ଋତୁରେ ଫଳେ l ଜାତି –ଏହାର ଏକ ପ୍ରଜାତି (T.procumbens Buch-Ham. ) ଏବଂ ଅନ୍ୟ ଏକ ପ୍ରଜାତି T.candida DCରେ ଶ୍ୱେତ ପୁଷ୍ପ ଆସିଥାଏ l T.spinosa Pers ଦକ୍ଷିଣ ଭାରତରେ ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ ଯାହା ରାଜନିଘଣ୍ଟୁରେ କଣ୍ଟପୁଙ୍ଖା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି l T.villosa Pers କ୍ଷ୍ୟୁପ ରୋମାବୃତ୍ତ ତଥା ଇଷତ ଗୋଲାପି କିମ୍ବା ନୀଳ ବର୍ଣ୍ଣର ପୁଷ୍ପ ହୋଇଥାଏ l
ଏହା ଭାରତର ସମସ୍ତ ସ୍ଥାନରେ ଏବଂ ହିମାଲୟର ୪ ହଜାର ଫୁଟ (ସମୁଦ୍ର ପତନ ସ୍ତର) ଉଚ୍ଚତା ଯାଏଁ ହୋଇଥାଏ l
ଲ୍ୟୁପୀୟଲ, ରୁଟିନ, ଡେଲଫିଡିନ କ୍ଲୋରଇଡ, କାଫେଇକ ଏସିଡ, ପାଲମିଟିକ ଏସିଡ, ପଲ୍ମିଟୋଲେଇକ ଏସିଡ, ଟେପୁରିନଡାଇଅଲ, ଲିନୋଲେଇକ ଏସିଡ, ଓଲେଇକ ଏସିଡ, ଭାଲାଇନ, ଥ୍ରେଓନାଇନ, ଲାଇସିନ, ଆଇସୋଲୁସେଇନ, କରଞ୍ଜିନ, ଫେନlଇଲlଲାଇନ, ଟେଫ୍ରୋନ ଏତଦ ବ୍ୟତୀତ ଦୁଇଟି ବିରଳ ପ୍ରିନାଇଲେଟେଡ ଫ୍ଲାଭୋନୋଇଡ ଟେଫ୍ରୋପର୍ପ୍ୟୁଳୀନ-ଏ ଏବଂ ଆଇସୋଗ୍ଲାବ୍ରୋଟେଫ୍ରିନର ଉପସ୍ଥିତି ଥାଏ l
ମଧୁମେହ ବିରୋଧୀ ଏବଂ ଜାରଣବିରୋଧି ତତ୍ୱ-ଏହାର ଫଳ ବିଜରୁ ଆହରିତ ସୁରା (Ethyl alcohol)ଦ୍ରବଣଶୀଳ ଜୈବିକ ତତ୍ତ୍ୱରେ ମଧୁମେହ ଓ ଶରୀର କୋଷ, ଉତକ କ୍ଷୟକାରୀ ପ୍ରକ୍ରିୟାକୁ ଆରୋଗ୍ୟ କରିବାର ସାମର୍ଥ୍ୟ ରହିଛି ବୋଲି ପ୍ରମାଣ ମିଳିଛି l ଅର୍ବୁଦ ବିରୋଧୀ ତତ୍ତ୍ୱ - ବିଜ୍ଞାନଗାର ମୂଷିକମାନଙ୍କ ଦେହରେ ପରୀକ୍ଷିତ ଶରପୁଙ୍ଖା ଆହାରିତ ଯୌଗିକ ଅର୍ବୁଦ ସମୂହ ଏବଂ ଅର୍ବୁଦ ପ୍ରସାରୀ କୋଷଗୁଡିକୁ ସମ୍ପୁର୍ଣ୍ଣ ଭାବେ ରୋକିବାରେ ସମର୍ଥ ଅଟେ lଭବିଷ୍ୟତରେ ଏହି ବୃକ୍ଷରୁ ଅର୍ବୁଦ ଆରୋଗ୍ୟକରି ଔଷଧ ତିଆରି କରିବାକୁ ବୈଜ୍ଞାନିକ ମାନେ ସଫଳତା ପାଇବେ ବୋଲି ଦୃଢ ଆଶାବାଦୀ l
ଶରପୁଙ୍ଖାର ପଞ୍ଚାଙ୍ଗର କିମ୍ବା ପତ୍ର ଓ ଚେରର ସୁରା ଦ୍ରବନଶୀଳ ଅହରିତ ଯୌଗିକରେ ଆମାଶୟ ଝାଡା, ଚକ୍ଷୁ, ଚର୍ମ, ଆମାଶୟ ବ୍ରଣ, ମୂତ୍ରନଳୀ ଇତ୍ୟାଦି ସଂକ୍ରମଣ ପାଇଁ ଉଦ୍ଧିଷ୍ଟ ଜୀବାଣୁ ଗୁଡିକୁ ରୋକିବାରେ ସମ୍ପୁର୍ଣ୍ଣ ସକ୍ଷମ ହୋଇଥାଏ l ଏହା ଏକ ଅଣୁଜିବ ବିଜ୍ଞାନଗାର ଗବେଷଣାରୁ ଜଣାଯାଇଛି l ଏହା ମଧ୍ୟ କର୍ଣ୍ଣ, ଶ୍ୱାସନଳୀ ସଂକ୍ରମଣ, ବୃହଦାନ୍ତ୍ର ପ୍ରଦାହ ଆରୋଗ୍ଯ କରିବାରେ ସକ୍ଷମ ହୋଇ ପାରେ l ଏହା ଶିଉଡୋମୋନାଶ, ଷ୍ଟlଫlଇଲୋକୋକସ, କୋଲିଫର୍ମ ଇତ୍ୟାଦି ଜୀବାଣୁ ବର୍ଗର ପ୍ରାଦୁର୍ଭାବ ରୋକିବାରେ ସମ୍ପୁର୍ଣ୍ଣ ଭାବେ ସଫଳ ବୋଲି ପରୀକ୍ଷାରୁ ଜଣା ଯାଇଛି l
ଉଦର କୃମି ସଂକ୍ରମଣ- ଏହାର ଫଳ ବିଜରୁ ଅହରିତ ଜଳ (water) ଓ ସୁରା(Ethyl alcohol) ଅହରିତ ଯୌଗିକରେ ଯଥେଷ୍ଟ ପରିମାଣରେ ଉଦରକୃମି ସଂହାରକ ସାମର୍ଥ୍ୟ ଅଛି l
ଶରୀର ଅନ୍ତଃ ରୋଗ ପ୍ରତିରୋଧି କ୍ଷମତା (Immunomodulatory efficacy)- ଏହାର ଊର୍ଦ୍ଧ୍ୱ ଶାଖା ପ୍ରଶାଖାରେ ଶରୀର ରୋଗ ପ୍ରତୋରୋଧକାରୀ କ୍ଷମତା ଥାଏ l ଏହା ମାନବ ଶରୀରର ଶ୍ୱେତ ରକ୍ତ କଣିକା ଏବଂଅନ୍ୟାନ୍ୟ ପ୍ରତିରୋଧି ବ୍ୟବସ୍ତା ଗୁଡିକୁ ତ୍ୱରାନ୍ୱିତ କରାଇ ବାହ୍ୟ ସଂକ୍ରମଣରୁ ଶରୀରକୁ ରକ୍ଷା କରିଥାଏ l
ଅଗ୍ନିମାନ୍ଦ୍ୟ, ବିବନ୍ଧ, ଶୂଳ, ଗୁଳ୍ମ, ଯକୃଦ୍ୱିକାର(Hepatic disorders), ପ୍ଳିହାବୃଦ୍ଧି(Splenomegaly), ଅର୍ଶ ଏବଂ କୃମିରେ ଏହାର ସଫଳ ଉପଯୋଗ କରାଯାଇଥାଏ l ରକ୍ତ ବିକାର ଏବଂ ଶୋଥ(edema), ଶ୍ୱାସ , କାଶ ଇତ୍ୟାଦିରେ ଶରପୁଙ୍ଖା ଚୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଏ l ମୂଢ ଗର୍ଭ, କଷ୍ଟାର୍ତ୍ତବ ଇତ୍ୟାଦି ସ୍ତ୍ରୀ ରୋଗରେ ଉପଯୋଗୀ l ମୂଷିକବିଷ ତଥା ଧାତୁଜ ବିଷରେ ଏହାର ବୀଜ ଚୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରୟୋଗ କରାଯାଏ l
వెంపలి (లాటిన్ Tephrosia purpurea) ఒక ఔషధ మొక్క.
in Hyderabad, India.
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