हिमालयी वन चिड़िया (जूथेरा सालिमअली)[1] चिड़िया की एक प्रजाति है, जिसे 2016 में खोजा गया था। इसका नाम भारत के पक्षी विज्ञानी सालिम अली के नाम पर "जूथेरा सालिमअली" रखा गया। वंशावली अध्ययन के आधार पर यह पता चलता है कि इस प्रजाति कि आबादी कम से कम 3 लाख वर्ष पूर्व अपने पूर्वज से अलग हो गई थी। इनका निवास स्थान हिमालय के वनों में है।[2]
इसका नाम भारत के प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली के द्वारा इस क्षेत्र में किए गए कार्यों को देखते हुए, उनके सम्मान हेतु उनके ही नाम पर "जूथेरा सालिमअली" रखा गया।[3][4]
भारत, चीन, स्वीडन, रूस और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा 2009 से इसके खोज का कार्य शुरू हुआ था। लेकिन 2016 में इस नई प्रजाति का पता चला। इसका पता पूर्वोत्तर भारत में हिमालय के वनों में चला। इस नई प्रजाति के होने का पता तब चला जब एक जैसी दिखने वाली दो प्रजाति में स्वर का अन्तर मिला। इसमें से एक प्रजाति का स्वर अत्यधिक मधुर था, जबकि दूसरी प्रजाति के पक्षी का स्वर काफी कर्कशता युक्त था।[5][6]
मिचीगन विश्वविद्यालय से पामेला रसमुस्सेन ने कहा कि जब हम 2009 में इस पर शोध कर रहे थे, तो हमें यह एक ही प्रजाति लग रहा था। बाद में हमें पता चला कि यह दोनों अलग अलग प्रजाति है।[7]
इन दोनों के ध्वनि में अन्तर मिलने के बाद भी इसकी पुष्टि हेतु कई तरह के जाँच किए गए, जिसमें इनके आकार, रहने खाने के तरीके आदि शामिल है। इनके डीएनए और अन्य प्रकार के जाँच करने पर इस बात का पता चला कि यह एक नई प्रजाति है। भारत के आजादी के बाद 1947 से अबतक पक्षी की कुल 4 नई प्रजाति का पता चल चुका है। साथ ही चीन में इस तरह की एक प्रजाति का पता चला है। लेकिन अब तक उस प्रजाति का पूरा अध्ययन नहीं किया गया है कि वह एक इस प्रजाति से भिन्न कोई नई प्रजाति है या यही प्रजाति है।[8] इस खोज में कई देशों के वैज्ञानिकों ने अपना योगदान दिया। जिसमें चाओ चाओ (चीन), जिंग्जू (स्वीडन), शशांक दल्वी (भारत), टियांगलोंग कई (चीन), युयान गुयान (चीन), रुईयिंग (चीन), मिखाइल कल्याकिन (रूस), फुमीन लेई (चीन) और उरबान ओलस्सन (स्वीडन) शामिल है।[9][10]
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(मदद) हिमालयी वन चिड़िया (जूथेरा सालिमअली) चिड़िया की एक प्रजाति है, जिसे 2016 में खोजा गया था। इसका नाम भारत के पक्षी विज्ञानी सालिम अली के नाम पर "जूथेरा सालिमअली" रखा गया। वंशावली अध्ययन के आधार पर यह पता चलता है कि इस प्रजाति कि आबादी कम से कम 3 लाख वर्ष पूर्व अपने पूर्वज से अलग हो गई थी। इनका निवास स्थान हिमालय के वनों में है।