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हैप्लोराइनी ( hindi )

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हैप्लोराइनी (Haplorhini) या शुष्क-नाक नरवानर (dry-nosed primates) नरवानर गण (प्राइमेट) का एक क्लेड है जिसमें टार्सियर और सिमियन (बंदरकपि) आते हैं। मानव भी एक प्रकार का महाकपि है इसलिये वह भी हैप्लोराइनी की श्रेणी में आता है। हैप्लोराइनी लगभग ६.३ करोड़ वर्ष पूर्व स्ट्रेपसिराइनी (Strepsirrhini) से क्रमविकास (इवोल्यूशन) द्वारा अलग हो गये थे।[1]

स्ट्रेपसिराइनी (जिनमें माडागास्कर के लीमर और भारतदक्षिणपूर्वी एशिया के लोरिस शामिल हैं) की तुलना में हैप्लोराइनी में कई अंतर आ गये। हैप्लोराइनी क्लेड के प्राणियों में विटामिन सी बना सकने वाला प्रकिण्व (एन्ज़ाइम) नहीं रहा जिस कारणवश उन्हें विटामिन-सी युक्त भोजन खाने की आवश्यकता होती है।[2] उनका ऊपरी होंठ नाक से अलग हो गया जिस से उनके चेहरों पर भाव प्रकट करने की बहुत क्षमता आ गई। अपने शरीर की तुलना में उनका मस्तिष्क भी अधिक बड़ा बन गया और सुनने और सूंघने के स्थान पर दृष्टि उनकी मुख्य बोध शक्ति बन गई।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Groves, C.P. (2005). "Order Primates". In Wilson, D.E.; Reeder, D.M. Mammal Species of the World: A Taxonomic and Geographic Reference (3rd ed.). Johns Hopkins University Press. pp. 179–180. ISBN 978-0-8018-8221-0. OCLC 62265494.
  2. Pollock, J. I.; Mullin, R. J. (1987). "Vitamin C biosynthesis in prosimians: Evidence for the anthropoid affinity of Tarsius". American Journal of Physical Anthropology. 73 (1): 65–70. PMID 3113259. डीओआइ:10.1002/ajpa.1330730106.
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हैप्लोराइनी: Brief Summary ( hindi )

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हैप्लोराइनी (Haplorhini) या शुष्क-नाक नरवानर (dry-nosed primates) नरवानर गण (प्राइमेट) का एक क्लेड है जिसमें टार्सियर और सिमियन (बंदरकपि) आते हैं। मानव भी एक प्रकार का महाकपि है इसलिये वह भी हैप्लोराइनी की श्रेणी में आता है। हैप्लोराइनी लगभग ६.३ करोड़ वर्ष पूर्व स्ट्रेपसिराइनी (Strepsirrhini) से क्रमविकास (इवोल्यूशन) द्वारा अलग हो गये थे।

स्ट्रेपसिराइनी (जिनमें माडागास्कर के लीमर और भारतदक्षिणपूर्वी एशिया के लोरिस शामिल हैं) की तुलना में हैप्लोराइनी में कई अंतर आ गये। हैप्लोराइनी क्लेड के प्राणियों में विटामिन सी बना सकने वाला प्रकिण्व (एन्ज़ाइम) नहीं रहा जिस कारणवश उन्हें विटामिन-सी युक्त भोजन खाने की आवश्यकता होती है। उनका ऊपरी होंठ नाक से अलग हो गया जिस से उनके चेहरों पर भाव प्रकट करने की बहुत क्षमता आ गई। अपने शरीर की तुलना में उनका मस्तिष्क भी अधिक बड़ा बन गया और सुनने और सूंघने के स्थान पर दृष्टि उनकी मुख्य बोध शक्ति बन गई।

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