dcsimg

कर्पास कीट ( Hindi )

fornecido por wikipedia emerging languages
 src=
कपास कीट

कर्पास कीट (Cotton Boll Weevil) कपास के पौधे, फूल और ढेंढ़ को क्षति पहुँचानेवाला एक प्रकार का घुन है। यह देखने में अनाज में लगनेवाले घुन के सदृश होता है। इसके लंबाई लगभग चौथाई इंच, रंग पीला भूरा अथवा खाकी होता है जो आयुवृद्धि के साथ काल पड़ जाता है। इसका थूथन पतला और नाप में शरीर की लंबाई का आधा होता है। पंख आस पास सटे हुए और चिकने होते हैं, जिनपर शरीर के अक्ष के समांतर पतली धारियाँ होती हैं। कर्पास कीट की अंगरचना की एक विशेषता यह भी है कि इसकी ऊर्विका (फ़ीमर, Femur) में दो काँटे (स्पर, Spur) होते हैं; भीतरी काँटा बाहरी काँटे की अपेक्षा लंबा होता है और मध्य जाँघ में केवल एक ही काँटा होता है। कर्पास कीट का आदिस्थान मेक्सिको या मध्य अमरीका है।

परिचय

वयस्क अवस्था में यह कीट सूखी पत्तियों के नीचे, कपास के डंठलों के ढेरों के नीचे, वृक्षों की खोखली छालों तथा खलिहान आदि में शीतकाल व्यतीत करता है। कपास जब फूलने लगता है तब प्रौढ़ कीट सुरक्षास्थल से बाहर निकलते हैं और कपास की कोमल पत्तियों पर आक्रमण कर देते हैं। इन कीटों को कपास की कलियाँ बहुत प्रिय हैं। छह दिनों के बाद कर्पासकीट कपास के पुष्पों या कलियों में गड्डा बनाने लगते हैं और इन गड्ढ़ों में अंडे देते चलते हैं। प्रत्येक नारी १०० से ३०० तक अंडे दे सकती है। जब ढेंढ़ बनना आरंभ होता है तब वे ढेंढ़ (डोंड़ा) में अंडे देने लगते हैं। केवल तीन दिनों में ही अंडों से मक्षिजातक (ग्रब) अथवा डिंभ (लार्वा) निकल आते हैं। डिंभ दा सप्ताह तक कली या ढेंढ़ी से ही भोजन प्राप्त करते हैं और दो तीन बार त्वचाविसर्जन करके लगभग आधा इंच लंबे हो जाते हैं। उस समय इन कीटों को रंग श्वेत, शरीर की आकृति मुड़ी हुई तथा झुर्रीदार और मुँह तथा सिर का रंग भूरा होता है। डिंभ अपने जन्मस्थान कली या डोंड़ा (ढेंढ़ी) से बाहर नहीं आता और वहीं पर वह प्यूपा बन जाता है। प्यूपा अवस्था लगभग तीन से पाँच दिनों की होती है। तदुपरांत कीट की वयस्क अवस्था आ जाती है। वयस्क कीट नली या डोंड़ा को काटकर बाहर चले आते हैं। जन्मस्थान से बाहर निकलने के अनंतर मैथुन के तीन चार दिनों बाद ही नारी अंडे देने लगती है। इनका जीवनचक्र अधिक से अधिक १५-२५ दिनों का होता है :

 src=
कपास कीट : बायें से क्रमशः वयस्क, प्यूपा, लार्वा

अतएव स्पष्ट है कि एक वर्ष में केवल दो या तीन से लेकर आठ या दस पीढ़ी तक ही उत्पन्न हो सकती है। कपास के पूर्णतया पक जाने पर ये कीट २० से ५० मील तक के क्षेत्र में इधर-उधर फैल जाते हैं। शीत ऋतु आने पर ये पुन: सुरक्षित स्थानों में निष्क्रियावस्था (हाइबनेंशन, hibernation) में पड़े रहने के निमित्त चले जाते हैं।

कर्पास कीट की वृद्धि की सभी अवस्थाएँ कपास की कली या ढेंढ़ी (डोंड़ा) में ही होती है। परंतु वयस्क कीट भोजन ढूँढ़ते समय अपने पतले दाँतों को पौधों में चुभाकर उनका रस चूस लेता है। इसका प्रभाव यह होता कि कलियाँ मुरझा जाती और सूखकर गिर पड़ती हैं। अंडों में से उत्पन्न होनेवाले मक्षिजातक (grub) कलियों या डोड़ों (bolls) के भीतर के कोमल तंतुओं को खाते रहते हैं जिससे पुष्प मुरझा जाते हैं और यदि डोंड़ा बनता भी है तो उसमें रुई के रेशे कम होते हैं।

इस हानिकारक कीट के डिंभ मुख्यत: कपास पर ही अवलंबित रहते हैं, परंतु वयस्क कीटों के संबंध में ज्ञात हुआ है कि भिंडी (Okra), गुलखैरा (Hollyhock), पटसन (Hibiscus) आद भी खाते हैं। इस कीट की एक जाति जंगली कपास खाकर भी जीवित रहती है।

साधारणतया ये कीट शती ऋतु में कम हानि पहुँचाते हैं, किंतु जब कपास पूर्णतया पक जाती है तब इनपर नियंत्रण अनिवार्य हो जाता है। सफल नियंत्रण के लिए निम्नलिखित साधनों में से किन्हीं में से किन्हीं दो या तीन का एक साथ प्रयोग करना चाहिए।

कर्पास कीट का नियंत्रण

  • (१) मुरझाकर गिरे हुए पौधों को शीघ्र नष्ट कर देना - जब यह ज्ञात हो जाए कि प्राय: सभी कलियों में छेद हो चुके हैं तब अविलंब पौधें को काटकर और डंठलों को टुकड़े-टुकड़े करके जला देना अथवा हल चलाकर गहराई में दबा देना चाहिए। छिद्रित कलियों से कपास नहीं प्राप्त हो सकती। उपर्युक्त प्रकार की तत्परता बरतने से हजारों घुनों को वयस्क अवस्था में पहुँचाने से रोका जा सकता है। इन कीटों को कलियाँ ही प्रिय होती हैं और आक्रांत कलियों से अच्छे ढेंढ़ नहीं बन सकते, इसलिए आवश्यक है कि ढेंढ़ बनने से पूर्व ही आक्रांत पुष्प तोड़ लिए जाएँ।
  • (२) शीघ्र फसल तैयार करना- शीघ्र फसल तैयार करने के लिए निम्नांकित साधनों का प्रयोग किया जा सकता है
  • (क) शीघ्र फसल तैयार करनेवाले बीज का प्रयोग,
  • (ख) खेत तैयार हो जाने पर यथाशीघ्र बीज बोना तथा
  • (ग) खेत में खाद डालकर खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना।
  • (३) विषचूर्ण का छिड़काव - कीटनाशक विषों में कैल्सियम आर्सिनेट का चूर्ण तैयार फसल पर छिड़कने से कीटों का संहार हो जाता है। यदि उचित ढंग और सावधानीपूर्वक चूर्ण का छिड़काव हो तो प्रचुर लाभ हो सकता है। उचित ढंग से तात्पर्य है :
  • (क) छिड़काव के लिए अच्छे यंत्रों का प्रयोग,
  • (ख) ४० प्रतिशत आर्सेंनिक पेंटाक्साइड युक्त कैल्सियम आर्सिनेट के चूर्ण का प्रयोग,
  • (ग) यथासंभव चूर्ण का छिड़काव रात्रि में होना चाहिए। यदि दिन में किया जाए तो वातावरण में आर्द्रता होनी चाहिए,
  • (घ) चार पाँच दिनों के अंतर से दो या चार सेर प्रति एकड़ चूर्ण तीन या चार बार छिड़का जाए,
  • (ङ) कलियाँ लगते ही एक या दो सेर प्रति एकड़ चूर्ण छिड़का जाए,
  • (च) संक्रमण दस प्रतिशत कम हो जाने पर चूर्ण का छिड़काव स्थगित कर देना चाहिए। भूमि यदि बलुई हो तो कैल्सियम आर्सिनेट के समान मात्रा में चूने का घोल मिलाना आवश्यक है।
अमरीका जैसे प्रतिशील देशों में सन्‌ १९२३ से ही विशेष वायुयानों द्वारा विषचूर्ण का छिड़काव बहुत ही सफलतापूर्वक हो रहा है। विशेष ढंग से निर्मित ये वायुयान कपास के सिरों से ५ से २५ फुट तक की ऊँचाई पर ८० से १०० मील प्रति घंटे की गति से उड़कर विशेष यंत्रों द्वारा २०० से २५० फुट की चौड़ाई में चूर्ण छिड़कते हैं। इस प्रकार एक घंटे में लगभग ५०० एकड़ भूमि पर विषचूर्ण का छिड़काव हो जाता है। वायुयान द्वारा छिड़का हुआ विष विद्युत्‌ आकर्षण के कारण पत्तों पर भली भाँति चिपक जाता है। इस प्रकार अमरीका में विष छिड़कने का औसत व्यय लगभग पाँच रुपया प्रति एकड़ पड़ता है।
  • (४) कली लगने से पूर्व छिड़काव - पौधों में जब प्रथम बार कली लगने लगे और प्रति एकड़ २० से अधिक कीट दिखाई पड़ें तब प्रत्येक पौधे के सिरे पर विष का विलयन या चूर्ण तुरंत छिड़कना चाहिए। विष विलयन बनाने के लिए आधा किलो कैल्सियम आर्सिनेट में पाँच किलो जल मिलाकर फेंटना चाहिए और छिड़करने के समय अच्छे प्रकार के पाँच सेर शर्बत को विलयन में मिलाकर, कूँची से पौधों के सिरे पर लेप कर देना चाहिए। ध्यान रहे, जिन पौधें पर विष लगाया गया हो उन्हें पशुओं को न खिलाया जाए।

बाहरी कड़ियाँ

licença
cc-by-sa-3.0
direitos autorais
विकिपीडिया के लेखक और संपादक
original
visite a fonte
site do parceiro
wikipedia emerging languages

कर्पास कीट: Brief Summary ( Hindi )

fornecido por wikipedia emerging languages
 src= कपास कीट

कर्पास कीट (Cotton Boll Weevil) कपास के पौधे, फूल और ढेंढ़ को क्षति पहुँचानेवाला एक प्रकार का घुन है। यह देखने में अनाज में लगनेवाले घुन के सदृश होता है। इसके लंबाई लगभग चौथाई इंच, रंग पीला भूरा अथवा खाकी होता है जो आयुवृद्धि के साथ काल पड़ जाता है। इसका थूथन पतला और नाप में शरीर की लंबाई का आधा होता है। पंख आस पास सटे हुए और चिकने होते हैं, जिनपर शरीर के अक्ष के समांतर पतली धारियाँ होती हैं। कर्पास कीट की अंगरचना की एक विशेषता यह भी है कि इसकी ऊर्विका (फ़ीमर, Femur) में दो काँटे (स्पर, Spur) होते हैं; भीतरी काँटा बाहरी काँटे की अपेक्षा लंबा होता है और मध्य जाँघ में केवल एक ही काँटा होता है। कर्पास कीट का आदिस्थान मेक्सिको या मध्य अमरीका है।

licença
cc-by-sa-3.0
direitos autorais
विकिपीडिया के लेखक और संपादक
original
visite a fonte
site do parceiro
wikipedia emerging languages