सुनौलो लङ्गुर वा गिको सुनौलो लङ्गुर, पूर्व जगतको बाँदर प्रजातिको एक सदस्य हो जुन भारतको पश्चिमी आसाम तथा भुटानका केही भूभागहरूमा पाइन्छन्।[३][४] यस प्रजातिको लङ्गुर भारतमा बाँदर प्रजातिको सबैभन्दा सङ्कटापन्न जीवको रूपमा रहेको छ।[५][६] धेरै हिमाली क्षेत्रमा बसोबास गर्ने मानिसहरूका लागि लामो समयदेखि पवित्र मानिने सुनौलो लङ्गुर प्रकृतिवादी एडवर्ड गिजले सन् १९५० को दशकमा पश्चिमी विश्वको पहिलो पटक ध्यानमा ल्याएका थिए।[७][८]
सुनौलो लङ्गुरको शरीरमा रहेका भुत्लाको रङ्ग सुनौलो देखि हल्का पहेँलो रङ्गको हुन्छ।[९][१०] यस प्रजातिको लङ्गुरको शरीको छेउछाउको भाग तथा भुत्ला रङ्ग खिया रङ्गको हुन्छ।[११] यस प्रजातिको लङ्गुरको सानो बच्चा तथा पोथी लङ्गुरको भने भालेको जस्तो गाढा रङ्ग हुँदैन। सुनौलो लङ्गुरको अनुहारको रङ्ग कालो हुन्छ भने यसको पुच्छरको लम्बाई ५० सेमी (१९.६९ इञ्च) लामो हुन्छ। यस प्रजातिको लङ्गुरको रङ्ग मौसम अनुसारसँगै परिवर्तन हुने गरेको तथ्याङ्क रहेको छ।[१२]
यस प्रजातिको लङ्गुरको बासस्थान दायरा लामो क्षेत्रमा फैलिएको छैन। सुनौलो लङ्गुरको प्रमुख बासस्थान दायरा ६० वर्ग माइलको क्षेत्रफलमा फैलिएको छ जसको दक्षिणमा आसामका ब्रह्मपुत्र नदी, पूर्वमा मानस नदी, पश्चिममा सुनकोसी नदी देखि भुटानको कालो हिमाल श्रृङ्खला भित्र पर्दछ। सुनौलो लङ्गुरको दोस्रो बासस्थान दायरा २०० माइल क्षेत्रफलमा फैलिएको छ जसमा दक्षिण-दक्षिणपूर्वी क्षेत्रहरू समावेश छन्। यस प्रजातिका लङ्गुरहरू भारतको त्रिपुरा राज्यको दक्षिणपश्चिमी भूभागमा पाइन्छन्।
यस प्रजातिका लङ्गुरहरू यसको बासस्थान दायरा अन्तर्गत धेरै जसो भागमा उच्च रूखहरूमा सीमित हुन्छन् जहाँ यसको लामो पुच्छर सन्तुलितको बनाइराख्ने काम गर्दछ। यस प्रजातिको लङ्गुरहरू हाँगाबाट अर्को रूखको हाँगामा छलाङ लगाउने गर्दछन्। सुनौलो लङ्गुर मुख्यतया रूखमानै बस्ने भएकाले यी प्राणीहरू विरलै जमिनमा अोर्लिन्छन्। वर्षा ऋतुमा यसले शीत र पानीले भिजेका पातहरूबाट पानी प्राप्त पिउने गर्दछ। यस प्रजातिका लङ्गुरहरू साकाहारी हुन्छन् भने यी लङ्गुुरले।मुख्यतया फलफूल, रूखका पात, बीउ, फुल आदी खाने गर्दछन्। यस प्रजातिको लङ्गुर सामान्यतया एक समुदायमा बस्ने गर्दछन् जसमा लगभग ८ सदस्यहरू (कहिलेकाँही ५० सदस्य सम्म पनि) हुन्छन् जसमा केही पोथी तथा अधिक भाले लङ्गुरहरू हुन्छन्। यस प्रजातिको लङ्गुरको सानो समूह चार सदस्यहरू मिलेर बनेका हुन्छन् भने सबैभन्दा ठूलो समूहमा २२ सदस्यहरू हुन्छन्।
यस प्रजातिका लङ्गुरहरू बन्यजन्तु संरक्षण परियोजना सन् १९८२ को अन्तर्गत सूचीकृत गरिएको छ। सुनौलो लङ्गुर हाल सङ्कटापन्न बन्यजन्तुको सूचीमा सूचीकृत गरिएको छ जसको भारतमा कुल सङ्ख्या १५०० रहेको छ भने भटानमा यसको सङ्ख्या ४००० रहेको छ। सन् १९८८ मा सुनौलो लङ्गुरको दुई बन्धक समूहलाई भारतको त्रिपुरा राज्यको पश्चिमी क्षेत्रको दुई संरक्षित क्षेत्रमा मुक्त गरिएको थियो भने सन् २००० सम्म, यी समूहहरू मध्ये एक लङ्गुरले सेपहिजाला वन्यजन्तु आरक्षमा ८ सदस्य सहित एक समूहको निर्माण गरेको पाइएको थियो।
सुनौलो लङ्गुर वा गिको सुनौलो लङ्गुर, पूर्व जगतको बाँदर प्रजातिको एक सदस्य हो जुन भारतको पश्चिमी आसाम तथा भुटानका केही भूभागहरूमा पाइन्छन्। यस प्रजातिको लङ्गुर भारतमा बाँदर प्रजातिको सबैभन्दा सङ्कटापन्न जीवको रूपमा रहेको छ। धेरै हिमाली क्षेत्रमा बसोबास गर्ने मानिसहरूका लागि लामो समयदेखि पवित्र मानिने सुनौलो लङ्गुर प्रकृतिवादी एडवर्ड गिजले सन् १९५० को दशकमा पश्चिमी विश्वको पहिलो पटक ध्यानमा ल्याएका थिए।
सोनेरी वानर ही वानरांमधील एक जात आहे ( शास्त्रीय नाव - Trachypithecus geei) ही वानरे फक्त भारत-भूतान मधील मानस राष्ट्रीय उद्यानात दिसून येतात. इतर वानरांपेक्षा ही जात अत्यंत दुर्मिळ आहे व नामशेष होण्याच्या मार्गावर आहे.
नावा प्रमाणेच ह्या वानराची फर सोनेरी रंगाची असते म्हणून यास सोनेरी वानर असे म्हणतात. याची उंची साधारणपणे अर्धामीटर पर्यंत असते व वजन १०-१२ किलोपर्यंत भरते. झाडांची पाने व फळे हा यांचा मुख्य आहार आहे. इतर वानरांप्रमाणेच हेही वानर मुख्यत्वे कळप करून रहातात. कळपाचा म्होरक्या नर असतो व इतर माद्या असतात[२].
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value (सहाय्य). १ जानेवारी, इ.स. २०१२ रोजी पाहिले. सोनेरी वानर ही वानरांमधील एक जात आहे ( शास्त्रीय नाव - Trachypithecus geei) ही वानरे फक्त भारत-भूतान मधील मानस राष्ट्रीय उद्यानात दिसून येतात. इतर वानरांपेक्षा ही जात अत्यंत दुर्मिळ आहे व नामशेष होण्याच्या मार्गावर आहे.
नावा प्रमाणेच ह्या वानराची फर सोनेरी रंगाची असते म्हणून यास सोनेरी वानर असे म्हणतात. याची उंची साधारणपणे अर्धामीटर पर्यंत असते व वजन १०-१२ किलोपर्यंत भरते. झाडांची पाने व फळे हा यांचा मुख्य आहार आहे. इतर वानरांप्रमाणेच हेही वानर मुख्यत्वे कळप करून रहातात. कळपाचा म्होरक्या नर असतो व इतर माद्या असतात.
সোণালী বান্দৰ (ইংৰাজী: Golden langur) পোণপ্ৰথমে ১৯৫৪ চনত আৱিস্কৃত হৈছিল৷ এই আপুৰুগীয়া বান্দৰৰ প্ৰজাতিটো ভাৰতবৰ্ষত মূলতঃ পশ্চিম অসম,[3][4] ভুটানৰ পৰ্ব্বত অঞ্চলত পোৱা যায় [5][6]৷এই প্ৰাণীবিধৰ দৈহিক গঠন তথা বিস্তৃতি সম্পৰ্কে গী (Gee,১৯৫৬) আৰু খাজুৰীয়া (Khajuria ,১৯৫৬, ১৯৬২) ই প্ৰথম বৈজ্ঞানিক তথ্য আগবঢ়ায়৷ এই প্ৰাণীবিধক ভাৰতীয় বন্যপ্ৰাণী আইন (১৯৭২) অনুসৰি সৰ্বোচ্চ প্ৰতিৰক্ষা আগবঢ়োৱা হৈছে৷ এই আইনত সোণালী বান্দৰক প্ৰথম অনুসূচীৰ (Schedule I) প্ৰাণী বুলি স্বীকৃতি দিয়া হৈছে আৰু ইয়াৰ দ্বাৰাই এই জন্তুবিধৰ হত্যা, চিকাৰ বা পোহনীয়া কৰি ৰখাটো নিষিদ্ধ কৰা হৈছে৷
সোণালী বান্দৰৰ দুটা উপ-প্ৰজাতি পোৱা যায়[1]:-
সোণালী বান্দৰৰ দেহৰ বৰণ সোণালী, মুখখন ক’লা আৰু নেজডাল যথেষ্ট দীঘ৷ সোণালী বান্দৰে সাধাৰণতে ওখ গছত বাস কৰে বাবে দীঘল নেজ ডালে দেহৰ ভাৰসাম্য ৰখাতো সহায় কৰে৷ দেহৰ দৈৰ্ঘ্য ৫০-৬০ ছে: মি: আৰু ওজন-৯.৫-১১ কি:গ্ৰা:৷ সোণালী বান্দৰ এবিধ তৃণভোজী প্ৰাণী ,প্ৰধানত: ফল-মূল, গছৰ পাত , গুটি আৰু ফুল খাদ্য ইচাপে গ্ৰহণ কৰে ৷
সোণালী বান্দৰৰ বিস্তৃত তেনেই সীমিত৷ ভাৰতবৰ্ষত দক্ষিণে ব্ৰহ্মপুত্ৰ, পূবত মানাহ নদী, পশ্চিমে সোণকোষ নদী আৰু উত্তৰে ভূটানৰ ক’লা পাহাৰ পৰ্য্যন্ত এই প্ৰাণী বিধৰ বিচৰণস্হলী [6] [7]৷
ই সাধাৰণতে ৮-৫০ টা প্ৰাণীৰ দলত বাস কৰে৷ একোটা দলত সাধাৰণতে এটা বা দুটা মতা প্ৰাণী থাকে[8]৷ এবাৰত এটাকৈ পোৱালি জন্ম দিয়ে৷
সোণালী বান্দৰ এবিধ বিলুপ্তপ্ৰায় (endangered) প্ৰাণী ৷ ২০০১ চনৰ এটা অধ্যয়ন অনুসৰি ভাৰতবৰ্ষত ইয়াৰ সংখ্যা প্ৰায় ১০৬৪ টা ৷ ইয়াৰে ৬০% ই পূৰ্ণবয়স্ক প্ৰাণী বুলি তথ্য পোৱা গৈছে [6] [9]৷
সোণালী বান্দৰ (ইংৰাজী: Golden langur) পোণপ্ৰথমে ১৯৫৪ চনত আৱিস্কৃত হৈছিল৷ এই আপুৰুগীয়া বান্দৰৰ প্ৰজাতিটো ভাৰতবৰ্ষত মূলতঃ পশ্চিম অসম, ভুটানৰ পৰ্ব্বত অঞ্চলত পোৱা যায় ৷এই প্ৰাণীবিধৰ দৈহিক গঠন তথা বিস্তৃতি সম্পৰ্কে গী (Gee,১৯৫৬) আৰু খাজুৰীয়া (Khajuria ,১৯৫৬, ১৯৬২) ই প্ৰথম বৈজ্ঞানিক তথ্য আগবঢ়ায়৷ এই প্ৰাণীবিধক ভাৰতীয় বন্যপ্ৰাণী আইন (১৯৭২) অনুসৰি সৰ্বোচ্চ প্ৰতিৰক্ষা আগবঢ়োৱা হৈছে৷ এই আইনত সোণালী বান্দৰক প্ৰথম অনুসূচীৰ (Schedule I) প্ৰাণী বুলি স্বীকৃতি দিয়া হৈছে আৰু ইয়াৰ দ্বাৰাই এই জন্তুবিধৰ হত্যা, চিকাৰ বা পোহনীয়া কৰি ৰখাটো নিষিদ্ধ কৰা হৈছে৷
தங்க நிற மந்தி (Gee's golden langur) என்பது ஒரு குரங்கு இனமாகும். இது இந்தியாவின் மேற்கு அசாமின் ஒரு சிறிய பகுதியில் காணப்படுகிறது.[3][4] இந்தியாவில் அதிக அழிவாபத்தை எதிர்நோக்கியுருக்கும் முதனிகளுள் இது ஒன்று. [5]
இக்குரங்கு கருமையான முகமும், பொன்நிற முடியும் நீண்ட வாலும் கொண்டது. இது பெரும்பாலும் உயர்ந்த மரங்களில் வசிக்கும். கிளைவிட்டு கிளைதாவுகையில் இதன் நீண்ட வால் சமநிலை உண்டாக்க உதவுகிறது.
தங்க நிற மந்தி (Gee's golden langur) என்பது ஒரு குரங்கு இனமாகும். இது இந்தியாவின் மேற்கு அசாமின் ஒரு சிறிய பகுதியில் காணப்படுகிறது. இந்தியாவில் அதிக அழிவாபத்தை எதிர்நோக்கியுருக்கும் முதனிகளுள் இது ஒன்று.