विल्डबीस्ट (हिन्दुस्तानी उच्चारण: [ʋɪlɖbiːsʈ ] ( सुनें)) जिसे ग्नू भी कहते हैं अफ़्रीका में पाया जाने वाला द्विखुरीयगण प्राणी है जो कि सींग वाले हिरनों की बिरादरी का है। इसके नाम का डच (हॉलैंड) भाषा में मतलब होता है जंगली जानवर या जंगली मवेशी क्योंकि अफ़्रीकान्स भाषा में beest का मतलब मवेशी होता है जबकि इसका वैज्ञानिक नाम कॉनोकाइटिस यूनानी भाषा के दो शब्दों से बना है — konnos जिसका मतलब दाढ़ी होता है और khaite जिसका मतलब लहराते बाल होता है।[3] ग्नू नाम खोइखोइ भाषा से उद्घृत है।
यह बोविडी कुल का प्राणी है, जिसमें बारहसिंगा, मवेशी, बकरी और कुछ अन्य सम-अंगुली सींगवाले खुरदार प्राणी होते हैं। कॉनोकाइटिस प्रजाति में दो जातियाँ समाविष्ट हैं और यह दोनों ही अफ़्रीका के मूल निवासी हैं: काला विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस नू)[1] और नीला विल्डबीस्ट या सामान्य विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस टॉरिनस)।[2]
जीवाश्म सबूत बताते हैं कि उपरोक्त दोनों जातियाँ लगभग १० लाख साल पहले विभाजित हो गई थीं, जिसके कारण उत्तरी (नीला विल्डबीस्ट) तथा दक्षिणी (काला विल्डबीस्ट) जातियाँ अलग-अलग हो गईं। नीली जाति में अपने पूर्वजों से शायद ही कोई बदलाव आया, जबकि काली जाति को ख़ुद को खुले मैदानों के अनुरूप ढालना पड़ा।
एक वयस्क विल्डबीस्ट कंधे तक १.४७ मी. तक ऊँचा होता है और १२०-२७० कि. तक वज़नी होता है। इनका आवास अफ़्रीका के खुले मैदानों में और खुले जंगलों में होता है। इसकी औसतन उम्र लगभग २० वर्ष होती है; हालांकि यह ४० वर्ष से भी अधिक तक जीवित रह सकता है।[4] इसका चेहरा घोड़े की तरह लंबा होता है लेकिन मुँह चौड़ा होता जिसकी वजह से वह छोटी घास भी खा सकता है।[5]
नीले और काले विल्डबीस्ट में सबसे मुख्य बनावट में विभिन्नता उनके सींगों का घुमाव और उनके चमड़ी का रंग होता है। नीला विल्डबीस्ट दोनों जातियों में बड़ा होता है। नरों में नीला विल्डबीस्ट कंधे तक १५० से.मी. ऊँचा और २५० कि. तक वज़नी होता है।[6] जबकि काला विल्डबीस्ट १११-१२० से.मी. तक ऊँचा[7] और १८० कि. तक वज़नी होता है।[8] मादा में नीली विल्डबीस्ट कंधे तक १३५ से.मी. तक ऊँची और १८० कि. तक वज़नी होती है,[6] जबकि काली विल्डबीस्ट १०८ से.मी. तक ऊँची और १५५ कि. तक वज़नी होती है।[8]नीले विल्डबीस्ट के सींग बाहर को निकलकर नीचे की ओर मुड़े होते हैं और फिर सिर की ओर घूमे होते हैं, जबकि काले विल्डबीस्ट के सींग आगे को मुड़कर नीचे घूमते हुये ऊपर मुड़ते हैं। नीला विल्डबीस्ट गाढ़े स्लेटी रंग का धारीदार होता है लेकिन कभी-कभी चमकीले नीले रंग का भी होता है। काला विल्डबीस्ट भूरे रंग के बालों वाला होता है और उसका अयाल क्रीम से लेकर काले रंग का होते हैं और पूँछ क्रीम के रंग की होती है। नीला विल्डबीस्ट विभिन्न प्रकार के इलाकों में रहता है जैसे मैदानी इलाके और खुले जंगल जबकि काला विल्डबीस्ट खुले मैदानी इलाकों में ही रहते हैं।[9] नीला विल्डबीस्ट सर्दियों में लंबी दूरी तक प्रवास करते हैं जबकि यह बात काले विल्डबीस्ट पर लागू नहीं होती है।[10] काले विल्डबीस्ट मादा के दूध में नीले विल्डबीस्ट के बनस्बत ज़्यादा प्रोटीन, कम वसा और कम दुग्धशर्करा (lactose) होते हैं।[11]
किसी एक सूचक वर्ष में विल्डबीस्ट के झुंड के शावक एक छोटे से अन्तराल में ही पैदा हो जाते हैं (तीन सप्ताह के अन्दर तकरीबन ९० फ़िसदी पैदा होते हैं), जिससे भावी शिकारियों, जैसे सिंह, जंगली कुत्तों, चीतों, तेंदुओं और लकड़बग्घों को शिकार की बहुतायत हो जाये और ज़्यादा से ज़्यादा शावकों के बचने की संभावना बढ़ जाये।[12] जो शावक इस अवधि के बाहर पैदा होते हैं उनके शिकारिओं के हाथों बचने की उम्मीद बहुत कम रह जाती है। पैदा होने के कुछ ही समय (एक से डेढ़ छण्टा) पश्चात् शावक अपनी माँ का अनुसरण करने लग जाते हैं। लेकिन इन शावकों की मृत्यु दर बहुत अधिक होती है और केवल वे ही अपने जीवन के पहले कुछ साल पार कर पाते हैं जिनको अपने माता-पिता से अच्छे आनुवांशिक अनुदान प्राप्त होते हैं या जिनकी माताएँ अनुभवी होती हैं।[5]
समय-समय पर प्रवास करने के कारण विल्डबीस्ट न तो स्थाई रिश्ते कायम करते हैं और न ही किसी तय क्षेत्र की रक्षा करते हैं। विल्डबीस्ट का प्रजनन काल तब शुरु होता है जब नर छोटे से अस्थाई क्षेत्र स्थापित करके मादाओं को रिझाने की कोशिश करते हैं। यह छोटे क्षेत्र करीब ३००० वर्ग मीटर के होते हैं और एक वर्ग किलोमीटर में ३०० क्षेत्र तक हो सकते हैं। नर इन क्षेत्रों की अन्य नरों से रक्षा करने के साथ-साथ मादाओं को रिझाने की कोशिश करते रहते हैं। नर मादाओं को रिझाने के लिए हुँकार भरते हैं और विशिष्ट प्रदर्शन भी करते हैं। अमूमन यह वर्षा ऋतु के अंत में समायोग करते हैं जब जानवर सबसे स्वस्थ होते हैं।[5]
विल्डबीस्ट और ज़ीब्रा वार्षिक लंबे प्रवास के लिए प्रसिद्ध हैं जो कि वस्तुतः वार्षिक वर्षा प्रणाली और घास की उत्पत्ति पर निर्भर करता है। इसी कारण से हर साल उनके प्रवास के समय में काफ़ी परिवर्तन दिखाई देता है जो कि महीनों के हिसाब से भी हो सकता है। वर्षा ऋतु के बाद (पूर्वी अफ़्रीका में मई या जून) विल्डबीस्ट उन इलाकों की ओर कूच करते हैं जहाँ सतह पर पीने का पानी उपलब्ध हो और महीनों बाद जब उनके क्षेत्र में फिर से बारिश होती है तो वह तुरन्त वापस आ जाते हैं। प्रवास के लिए यह अनुमान लगाया गया है कि इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे खाने की प्रचुरता, सतही पानी की उपलब्धी, शिकारियों की ग़ैर मौजूदगी और घास में फ़ॉसफ़ोरस का होना। फ़ॉसफ़ोरस सारे जीवन के लिए बहुत अहम होती है, खास तौर पर दुधारू मादा ढोरों के लिए। यही कारण है कि वर्षा काल में विल्डबीस्ट उन चारागाहों की तलाश में रहते हैं जहाँ फ़ॉसफ़ोरस का स्तर ऊँचा हो।[5] एक अध्ययन में यह भी पता चला कि फ़ॉसफ़ोरस के साथ-साथ विल्डबीस्ट ऊँचे नाइट्रोजन वाले इलाकों की भी तलाश में रहते हैं।[13]
दक्षिण अफ़्रीका में विल्डबीस्ट को उसके मांस के लिए पाला जाता। वहाँ सूखे मांस का एक व्यंजन बनाया जाता है जिसे बिलटोंग कहते हैं।[5] मादा का मीट नर के मुकाबले ज़्यादा मुलायम माना जाता है और शरद ऋतु में सबसे मुलायम होता है।[10] विल्डबीस्ट नियमित तौर पर अवैध शिकारियों के निशाने पर होता है क्योंकि यह आसानी से पाया जाता है।
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यह बोविडी कुल का प्राणी है, जिसमें बारहसिंगा, मवेशी, बकरी और कुछ अन्य सम-अंगुली सींगवाले खुरदार प्राणी होते हैं। कॉनोकाइटिस प्रजाति में दो जातियाँ समाविष्ट हैं और यह दोनों ही अफ़्रीका के मूल निवासी हैं: काला विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस नू) और नीला विल्डबीस्ट या सामान्य विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस टॉरिनस)।
जीवाश्म सबूत बताते हैं कि उपरोक्त दोनों जातियाँ लगभग १० लाख साल पहले विभाजित हो गई थीं, जिसके कारण उत्तरी (नीला विल्डबीस्ट) तथा दक्षिणी (काला विल्डबीस्ट) जातियाँ अलग-अलग हो गईं। नीली जाति में अपने पूर्वजों से शायद ही कोई बदलाव आया, जबकि काली जाति को ख़ुद को खुले मैदानों के अनुरूप ढालना पड़ा।