Terminalia arjuna, ye una especie d'árbol perteneciente a la familia Combretaceae.
Algama un tamañu d'unos 20 a 25 metros d'altor; polo xeneral tien un tueru reforzáu, y forma un gran dosel na corona, del que les cañes cayen escontra baxo. Tien fueyes cóniques allargaes que son verdes na parte cimera y marrón per debaxo; la corteza ye llisa, de color gris; tien flores de color mariellu maciu qu'apaecen ente marzu y xunu; la so fruta ye glabra, maderiza de 2,5 a 5 cm fibrosa, estremada en cinco ales, apaez ente setiembre y payares.[1][2]
La arjuna alcuéntrase crez xeneralmente en veres de ríos o calces de los ríos secos en Bengala Occidental y el sur y el centru de la India.[1] Conozse como (ಕಮರಾಕ್ಷಿ) neer maruthu en Malayu y Thella Maddi (తెల్ల మద్ది) en Telugu.
La arjuna ye una de les especies que les sos fueyes son l'alimentu de la poliya Antheraea paphia que produz la seda tassar (tussah), una seda selvaxe d'importancia comercial.[3]
N'estudios en mures, demostróse que les sos fueyes pueden tener propiedaes analxésiques y antiinflamatories.[1]
La arjuna foi introducida en Ayurveda como tratamientu pa les enfermedaes cardiaques por Vagbhata (c. sieglu séptimu dC).[4] Prepárase tradicionalmente como una decocción de lleche.[4] Nel Ashtānga Hridayam, Vagbhata menta la arjuna nel tratamientu de feríes, hemorraxes y úlceras, aplicaos per vía tópica en forma de polvu.[4]
Terminalia arjuna describióse por (Roxb. ex DC.) Wight & Arn. y espublizóse en Prodromus Florae Peninsulae Indiae Orientalis 34. 1834.[5]
Terminalia: nome xenéricu que deriva'l so nome del llatín terminus, por cuenta de que los sos fueyes tán bien a la fin de les cañes.
arjuna: epítetu
Terminalia arjuna, ye una especie d'árbol perteneciente a la familia Combretaceae.
Raigaños y tueru Árbol nuevu FueyesTerminalia arjuna (lat. Terminalia arjuna) — kombretkimilər fəsiləsinin terminaliya cinsinə aid bitki növü.
Terminalia arjuna (lat. Terminalia arjuna) — kombretkimilər fəsiləsinin terminaliya cinsinə aid bitki növü.
अर्जुन वृक्षाला भारतीय भाषांमधून या वेगवेगळ्या नावांली ओळखले जाते -
इंग्रजी नाव:Terminalia Arjuna (Roxb.) W.& A.Combretaceae मूळ अर्जुन या संस्कृत शब्दाचा अर्थ “पांढरा स्वछ”, “दिवसाच्या प्रकाशासारखा” असा आहे. अर्जुन वृक्षाला त्याच्या पांढऱ्या खोडामुळे हे नाव मिळाले आहे. पांढऱ्या किंचित हिरवट-राखाडी झाक असलेल्या गुळगुळीत खोडाचा हा वृक्ष अस्सल भारतीय वंशाचा आहे. वरचे खोडाचे साल निघून गेल्यावर याचे खोड ताजेतवाने दिसते. वर्षाचे किमान सहा-सात महिने वाहणारे पाणी असणाऱ्या ठिकाणी हा वृक्ष वाढतो. हे वाहणारे पाणी त्याचे बी रुजवतात. हिमालयापासून थेट कन्याकुमारीपर्यंत तसेच श्रीलंका, मलेशिया, ब्रह्मदेश इथे हा वृक्ष आढळतो. हा एक भव्य वृक्ष आहे. या वृक्षाच्या वाढलेल्या मोठया फांद्या थोडया खाली झुकलेल्या असतात. समोरासमोर देठ असलेली व थोडा लांबट आकार असलेली किंचित फिकट हिरवी पाने, या पानांच्या मागे देठाजवळ, मधल्या शिरेच्या दोन्ही बाजूस गोगलगाईच्या शिंगाप्रमाणे दिसणाऱ्या दोन लहान ग्रंथी हे याचे वैशिष्टय आहे. ऐन आणि अर्जुन एकाचवेळी पावसाळ्यात फुलणारे व ताक घुसळण्याच्या रवीच्या बोंडाप्रमाणे पाच पंख असलेली फळे धारण करणारे असतात. फरक केवळ खोडात दिसतो. ऐनाचे खोड खरखरीत भेगा पडलेले व तपकिरी रंगाचे तर अर्जुनाचे गुळगुळीत व पांढरे असते. त्यामुळेच कोकणात हा पांढरा ऐन म्हणून ओळखला जातो. सालीतील कॅल्शियम मॅग्नेशियम व इतर उपयुक्त घटकांच्या संपन्नतेमुळे हा बलकारक आहे. म्हणून याला धन्वंतरी हे नाव मिळाले आहे. बारा ज्योतिर्लिंगांपैकी एक ज्योतिर्लिंग प्रचंड मोठया अर्जुन वृक्षाखाली आहे. म्हणून ते नागार्जुन, तामिळनाडू येथील देवराईत एक भव्य अर्जुन वृक्ष असून त्याच्या खोडाचा घेर ३० फुट आहे. हा वृक्ष सुरुवातीच्या काळात फार हळू वाढतो. सुरुवातीला त्याला पाण्याचे दुर्भिक्ष चालत नाही. याचे देखणे पांढरे खोड असल्यामुळे हा वृक्ष रस्त्यांवर लावण्यालायक आहे.
अर्जुनाची साल पांढरट, किंचित लालसर वर्णाची असते. अर्जुनाच्या सालीचा चटकन तुकडा पडतो. त्यात तंतुमय रेषा नसतात. त्यामुळे त्याचे चूर्ण एकदम गुळगुळीत शंखजिरे चूर्णासारखे असते. अर्जुन वृक्ष ६० ते ८० फूट उंच असणारे तपस्वी ऋषींसारखे उभे असतात. मध्य प्रदेशात अर्जुन वृक्ष हा संरक्षित वृक्ष म्हणून वनखात्याच्या अनुज्ञेविना तोडता येत नाही. विदर्भातील उत्तरेकडील जिल्ह्यात अर्जुनाचे वृक्ष खूप मोठ्या प्रमाणावर आहेत. अर्जुनाला पंख्यासारखी छोटी फळे वा बिया असतात. त्या रुजवून त्यांची रोपे सहज करता येतात. अर्जुनाची झाडे नदी, ओढे यांच्या काठावर उतारावर लावल्यास अधिक चांगली रुजतात. अर्जुनाची सालच प्रामुख्याने औषधी प्रयोगाकरिता वापरली जाते. वजनाने ती हलकी असते, अशी ही साल तुरट रसामुळे घट्ट बनलेली असते.
आयुर्वेदानुसार अर्जुनाची साल हृदयरोगावर गुणकारी आहे. तसेच त्याच्या फुलांपासून उत्तम नेत्रांजन बनते. अर्जुनासव व अर्जुनारिष्ठ औषधे सालीपासुन बनवतात. अर्जुनची साल दुधासोबत ही खूप गुणकारी आहे पण ती वैद्यांच्या सल्ल्याने घ्यावी. मुकामार, हाड तुटणे याच्या सालीचा वापर होतो . कमी झालेला रक्तदाब वाढण्यासाठी व हृदयाचे आकारमान वाढले असल्यास अंर्तसालीचा वापर करावा . मुका मार
हा स्वाती नक्षत्राचा आराध्यवृक्ष आहे.
वनौषधी गुणादर्श- ले. आयुर्वेद महोपाध्याय शंकर दाजीशास्त्री पदे
गांवो में औषधी रत्न-प्रकाशक-कृष्णगोपाल आयुर्वेद भवन,कालडा,(जि.-अजमेर)
Indian Medicinal Plants(IV volume)
भारतिय वनौषधी (भाग-६)
अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं। कहुआ तथा सादड़ी नाम से बोलचाल की भाषा में प्रख्यात यह वृक्ष एक बड़ा सदाहरित पेड़ है। लगभग 60 से 80 फीट ऊँचा होता है तथा हिमालय की तराई, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश में काफी पाया जाता है। इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए। एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं। छाल बाहर से सफेद, अन्दर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है। लगभग 4 मिलीमीटर मोटी यह छाल वर्ष में एक बार स्वयंमेव निकलकर नीचे गिर पड़ती है। स्वाद कसैला, तीखा होता है तथा गोदने पर वृक्ष से एक प्रकार का दूध निकलता है।
पत्ते अमरुद के पत्तों जैसे 7 से 20 सेण्टीमीटर लंबे आयताकार होते हैं या कहीं-कहीं नुकीले होते हैं। किनारे सरल तथा कहीं-कहीं सूक्ष्म दाँतों वाले होते हैं। वे वसंत में नए आते हैं तथा छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते हैं। ऊपरी भाग चिकना व निचला रुक्ष तथा शिरायुक्त होता है। फल वसंत में ही आते हैं, सफेद या पीले मंजरियों में लगे होते हैं। इनमें हल्की सी सुगंध भी होती है। फल लंबे अण्डाकार 5 या 7 धारियों वाले जेठ से श्रावण मास के बीच लगते हैं व शीतकाल में पकते हैं। 2 से 5 सेण्टी मीटर लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं। फलों की गंध अरुचिकर व स्वाद कसौला होता है। फल ही अर्जुन का बीज है। अर्जुन वृक्ष का गोंद स्वच्छ सुनहरा, भूरा व पारदर्शक होता है।
अर्जुन जाति के कम से कम पन्द्रह प्रकार के वृक्ष भारत में पाए जाते हैं। इसी कारण कौन सी औषधि हृदय रक्त संस्थान पर कार्य करती है, यह पहचान करना बहुत जरूरी है।[1] 'ड्रग्स ऑफ हिन्दुस्तान' के विद्वान लेखक डॉ॰ घोष के अनुसार आधुनिक वैज्ञानिक अर्जुन के रक्तवाही संस्थान पर प्रभाव को बना सकने में असमर्थ इस कारण रहे हैं कि इनमें आकृति में सदृश सजातियों की मिलावट बहुत होती है। छाल एक सी दीखने परभी उनके रासायनिक गुण व भैषजीय प्रभाव सर्वथा भिन्न है। सही अर्जुन की छाल अन्य पेड़ों की तुलना में कहीं अधिक मोटी तथा नरम होती है। शाखा रहित यह छाल अंदर से रक्त सा रंग लिए होती है। पेड़ पर से छाल चिकनी चादर के रूप में उतर आती है। क्योंकि पेड़ का तना बहुत चौड़ा होता है। अर्जुन की छाल को सुखाकर सूखे शीतल स्थान में चूर्ण रूप में बंद रखा जाता है।
होम्योपैथी में अर्जुन एक प्रचलित ख्याति प्राप्त औषधि है। हृदयरोग संबंधी सभी लक्षणों में विशेषकर क्रिया विकार जन्य तथा यांत्रिक गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुए विकारों में इसके तीन एक्स व तीसवीं पोटेन्सी में प्रयोग को होम्योपैथी के विद्वानों ने बड़ा सफल बताया है। अर्जुन संबंधी मतों में प्राचीन व आधुनिक विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है। फिर भी धीरे-धीरे शोथ कार्य द्वारा शास्रोक्त प्रतिपादन अब सिद्ध होते चले जा रहे हैं।
अर्जुन की छाल में पाए जानेवाले मुख्य घटक हैं- बीटा साइटोस्टेरॉल, अर्जुनिक अम्ल तथा फ्रीडेलीन। अर्जुनिक अम्ल ग्लूकोज के साथ एक ग्लूकोसाइड बनाता है, जिसे अर्जुनेटिक कहा जाता है। इसके अलावा अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले अन्य घटक इस प्रकार हैं-
अभी तक अर्जुन से प्राप्त विभिन्न घटकों के प्रायोगिक जीवों पर जो प्रभाव देखे गए हैं, उससे इसके वर्णित गुणों की पुष्टि ही होती है। विभिन्न प्रयोगों द्वारा पाया गया हे कि अर्जुन से हृदय की पेशियों को बल मिलता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा उसकी प्रति मिनट गति भी कम हो जाती है। स्ट्रोक वाल्यूम तथा कार्डियक आउटपुट बढ़तती है। हृदय सशक्त व उत्तजित होता है। इनमें रक्त स्तंभक व प्रतिरक्त स्तंभक दोनों ही गुण हैं। अधिक रक्तस्राव होने की स्थिति से या कोशिकाओं की रुक्षता के कारण टूटने का खतरा होने परयह स्तंभक की भूमिका निभाता है, लेकिन हृदय की रक्तवाही नलिकाओं (कोरोनरी धमनियों) में थक्का नहीं बनने देता तथा बड़ी धमनी से प्रति मिनट भेजे जाने वाले रक्त के आयतन में वृद्धि करता है। इस प्रभाव के कारण यह शरीर व्यापी तथा वायु कोषों में जमे पानी को मूत्र मार्ग से बाहर निकाल देता है। खनिज लवणों के सूक्ष्म रूप में उपस्थित होने के कारण यह एक तीव्र हृत्पेशी उत्तेजक भी है।
अर्जुन वृक्षाला भारतीय भाषांमधून या वेगवेगळ्या नावांली ओळखले जाते -
संस्कृत-अर्जुन, अर्जुनसादडा, अर्जुनाव्हय, इन्द्रू, ककुभ, देवसाल, धनंजय, धाराफल, धूर्तपाद्य, नदीसर्ज, पार्थ, शक्रतरू, क्षीरस्वामी, सर्पण, सेव्य, वगैरे हिंदी-कौहा, कोह बंगाली-अर्जुन गुजराती-अर्जुन मल्याळम-मारुत तामिळ-मारुड तेलुगू-मदिचट्ट इंग्रजी- The White Murdah Tree लॅटिन नाव-(टरमीनैलीया अर्जुना)Terminalia arjuna कुळ - (कॉम्ब्रीटेसी) Combretaceaeअर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं। कहुआ तथा सादड़ी नाम से बोलचाल की भाषा में प्रख्यात यह वृक्ष एक बड़ा सदाहरित पेड़ है। लगभग 60 से 80 फीट ऊँचा होता है तथा हिमालय की तराई, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश में काफी पाया जाता है। इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए। एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं। छाल बाहर से सफेद, अन्दर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है। लगभग 4 मिलीमीटर मोटी यह छाल वर्ष में एक बार स्वयंमेव निकलकर नीचे गिर पड़ती है। स्वाद कसैला, तीखा होता है तथा गोदने पर वृक्ष से एक प्रकार का दूध निकलता है।
ਅਰਜੁਨ ਰੁੱਖ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਔਸ਼ਧੀ ਰੁੱਖ ਹੈ। ਇਸਨੂੰ ਘਵਲ, ਕਕੁਭ ਅਤੇ ਨਦੀਸਰਜ (ਨਦੀ ਨਾਲਿਆਂ ਦੇ ਕੰਢੇ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ) ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਕਹੁਆ ਅਤੇ ਸਾਦੜੀ ਨਾਮ ਨਾਲ ਬੋਲ-ਚਾਲ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਮਸ਼ਹੂਰ ਇਹ ਰੁੱਖ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਸਦਾਬਹਾਰ ਦਰਖਤ ਹੈ। ਲੱਗਭੱਗ 60 ਤੋਂ 80 ਫੁੱਟ ਉੱਚਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹਿਮਾਲਾ ਦੀ ਤਰਾਈ, ਖੁਸ਼ਕ ਪਹਾੜੀ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਨਦੀ ਨਾਲਿਆਂ ਦੇ ਕੰਢੇ ਅਤੇ ਬਿਹਾਰ, ਮੱਧ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੀ ਬਿਲਕ ਦਰਖਤ ਤੋਂ ਉਤਾਰ ਲੈਣ ਉੱਤੇ ਫਿਰ ਉਗ ਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਬਿਲਕ ਦਾ ਹੀ ਪ੍ਰਯੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉੱਗਣ ਲਈ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਦੋ ਵਰਖਾ ਰੁੱਤਾਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ। ਇੱਕ ਰੁੱਖ ਵਿੱਚ ਬਿਲਕ ਤਿੰਨ ਸਾਲ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਮਿਲਦੀ ਹੈ। ਬਿਲਕ ਬਾਹਰ ਤੋਂ ਸਫੈਦ, ਅੰਦਰੋਂ ਚੀਕਣੀ ਮੋਟੀ ਅਤੇ ਹਲਕੇ ਗੁਲਾਬੀ ਰੰਗ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਲੱਗਭੱਗ 4 ਮਿਲੀਮੀਟਰ ਮੋਟੀ ਇਹ ਬਿਲਕ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਾਰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਲਹਿ ਕੇ ਹੇਠਾਂ ਡਿੱਗ ਪੈਂਦੀ ਹੈ। ਸਵਾਦ ਕਸੈਲ਼ਾ ਅਤੇ ਤਿੱਖਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਟੱਕ ਲਾਉਣ ਨਾਲ ਰੁੱਖ ਤੋਂ ਇੱਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਦੁੱਧ ਨਿਕਲਦਾ ਹੈ।
ਪੱਤੇ ਅਮਰੂਦ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਵਾਂਗ 7 ਤੋਂ 20 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਲੰਬੇ ਆਇਤਾਕਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਕਿਤੇ - ਕਿਤੇ ਨੁਕੀਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਕੰਡੇ ਸਰਲ ਅਤੇ ਕਿਤੇ - ਕਿਤੇ ਸੂਖਮ ਦੰਦਾਂ ਵਾਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਬਸੰਤ ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਛੋਟੀਆਂ – ਛੋਟੀਆਂ ਟਾਹਣੀਆਂ ਨੂੰ ਲੱਗੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਉੱਪਰੀ ਭਾਗ ਚੀਕਣਾ ਅਤੇ ਹੇਠਲਾ ਰੁੱਖਾ ਅਤੇ ਸ਼ਿਰਾਯੁਕਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਫਲ ਬਸੰਤ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਉਂਦੇ ਹਨ, ਸਫੈਦ ਜਾਂ ਪੀਲੀਆਂ ਮੰਜਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹਲਕੀ ਜਿਹੀ ਸੁਗੰਧ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਫਲ ਲੰਬੇ ਅੰਡਾਕਾਰ 5 ਜਾਂ 7 ਧਾਰੀਆਂ ਵਾਲੇ ਜੇਠ ਤੋਂ ਸਾਉਣ ਮਹੀਨੇ ਵਿੱਚ ਲੱਗਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪਕਦੇ ਹਨ। 2 ਤੋਂ 5 ਸੈਂਟੀ ਮੀਟਰ ਲੰਬੇ ਇਹ ਫਲ ਕੱਚੀ ਦਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹਰੇ - ਪੀਲੇ ਅਤੇ ਪੱਕਣ ਉੱਤੇ ਭੂਰੇ - ਲਾਲ ਰੰਗ ਦੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।[1] ਫਲਾਂ ਦੀ ਦੁਰਗੰਧ ਬਦਮਜ਼ਾ ਅਤੇ ਸਵਾਦ ਕਸੈਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਫਲ ਹੀ ਅਰਜੁਨ ਦਾ ਬੀਜ ਹੈ। ਅਰਜੁਨ ਰੁੱਖ ਦੀ ਗੂੰਦ ਸਵੱਛ ਸੋਨੇ-ਰੰਗੀ, ਭੂਰੀ ਅਤੇ ਪਾਰਦਰਸ਼ਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
ਅਰਜੁਨ ਜਾਤੀ ਦੇ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਪੰਦਰਾਂ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਰੁੱਖ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਕਿਸ ਦੀ ਔਸ਼ਧੀ ਦਿਲ ਦੀ ਲਹੂਵਾਹਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉੱਤੇ ਕਾਰਜ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਇਹ ਪਹਿਚਾਣ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤ ਜਰੂਰੀ ਹੈ। ਡਰਗਸ ਆਫ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਵਾਨ ਲੇਖਕ ਡ. ਘੋਸ਼ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਧੁਨਿਕ ਵਿਗਿਆਨੀ ਅਰਜੁਨ ਦੇ ਲਹੂਵਾਹਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਬਣਾ ਸਕਣ ਵਿੱਚ ਅਸਮਰਥ ਇਸ ਕਾਰਨ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਕ੍ਰਿਤੀ ਵਿੱਚ ਯੋਗ ਸਜਾਤੀਆਂ ਦੀ ਮਿਲਾਵਟ ਬਹੁਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਬਿਲਕ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਦਿੱਖਣ ਪਰ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਰਾਸਾਇਣਕ ਗੁਣ ਅਤੇ ਭੈਸ਼ਜੀਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਮੂਲੋਂ ਭਿੰਨ ਹੈ। ਠੀਕ ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਹੋਰ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਤੁਲਣਾ ਵਿੱਚ ਕਿਤੇ ਜਿਆਦਾ ਮੋਟੀ ਅਤੇ ਪੋਲੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਸ਼ਾਖਾ ਰਹਿਤ ਇਹ ਬਿਲਕ ਅੰਦਰ ਤੋਂ ਲਹੂ ਵਰਗੇ ਰੰਗ ਵਾਲੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਦਰਖਤ ਤੋਂ ਬਿਲਕ ਚੀਕਣੀ ਚਾਦਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ ਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਦਰਖਤ ਦਾ ਤਣਾ ਬਹੁਤ ਚੌੜਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਨੂੰ ਸੁਕਾ ਕੇ ਸੁੱਕੇ ਸੀਤਲ ਸਥਾਨ ਵਿੱਚ ਚੂਰਣ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਬੰਦ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਹੋਮੀਉਪੈਥੀ ਵਿੱਚ ਅਰਜੁਨ ਇੱਕ ਪ੍ਰਚੱਲਤ ਔਸ਼ਧੀ ਹੈ। ਦਿਲ ਦੇ ਰੋਗ ਸੰਬੰਧੀ ਸਾਰੇ ਲੱਛਣਾਂ ਵਿੱਚ ਖਾਸ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਕਿਰਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਐਕਸ ਅਤੇ ਤੀਹਵੀਂ ਪੋਟੈਂਸੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਨੂੰ ਹੋਮੀਉਪੈਥੀ ਦੇ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਫਲ ਦੱਸਿਆ ਹੈ। ਅਰਜੁਨ ਸੰਬੰਧੀ ਮਤਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਅਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਤਕੜਾ ਮੱਤਭੇਦ ਹੈ। ਫਿਰ ਵੀ ਹੌਲੀ - ਹੌਲੀ ਸੋਧ ਕਾਰਜ ਦੁਆਰਾ ਕਾਨੂੰਨੀ ਪ੍ਰਤੀਪਾਦਨ ਹੁਣ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਚਲੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ।
ਰਾਸਾਇਣਕ ਸੰਗਠਨ - ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਤੱਤ ਹਨ - ਬੀਟਾ ਸਾਇਟੋਸਟੇਰਾਲ, ਅਰਜੁਨਿਕ ਏਸਿਡ ਅਤੇ ਫਰੀਡੇਲੀਨ। ਅਰਜੁਨਿਕ ਏਸਿਡ ਗਲੂਕੋਜ ਦੇ ਨਾਲ ਇੱਕ ਗਲੂਕੋਸਾਈਡ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਰਜੁਨੇਟਿਕ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਹੋਰ ਤੱਤ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹਨ -
ਹੁਣ ਤੱਕ ਅਰਜੁਨ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਵੱਖ ਵੱਖ ਘਟਕਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਯੋਗੀ ਜੀਵਾਂ ਉੱਤੇ ਜੋ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵੇਖੇ ਗਏ ਹਨ, ਉਸ ਤੋਂ ਇਸ ਦੇ ਦੱਸੇ ਗੁਣਾਂ ਦੀ ਪੁਸ਼ਟੀ ਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਵੱਖ ਵੱਖ ਪ੍ਰਯੋਗਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੇ ਕਿ ਅਰਜੁਨ ਤੋਂ ਦਿਲ ਦੇ ਪੱਠਿਆਂ ਨੂੰ ਬਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ, ਧੜਕਣ ਠੀਕ ਅਤੇ ਬਲਵਾਨ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀ ਮਿੰਟ ਗਤੀ ਵੀ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਸਟਰੋਕ ਵਾਲਿਊਮ ਅਤੇ ਕਾਰਡਿਅਕ ਆਉਟਪੁਟ ਵਧਦੀ ਹੈ। ਦਿਲ ਮਜਬੂਤ ਅਤੇ ਉਤੇਜਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਲਹੂ ਸਤੰਭਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਤੀਲਹੂ ਸਤੰਭਕ ਦੋਨੋਂ ਹੀ ਗੁਣ ਹਨ। ਜਿਆਦਾ ਖੂਨ ਵਹਾ ਹੋਣ ਦੀ ਹਾਲਤ ਤੋਂ ਜਾਂ ਕੋਸ਼ਿਕਾਵਾਂ ਦੀ ਬਲਾਕ ਦੇ ਕਾਰਨ ਟੁੱਟਣ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹੋਣ ਤੇ ਇਹ ਸਤੰਭਕ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਲੇਕਿਨ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਲਹੂਵਾਹਕ (ਕੋਰੋਨਰੀ) ਧਮਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਥੱਕਾ ਨਹੀਂ ਬਨਣ ਦਿੰਦਾ ਅਤੇ ਵੱਡੀ ਧਮਣੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਤੀ ਮਿੰਟ ਭੇਜੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਲਹੂ ਦੇ ਪਰਵਾਹ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸਰੀਰ ਵਿਆਪੀ ਅਤੇ ਹਵਾ ਕੋਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਜਮੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਮੂਤਰ ਰਸਤੇ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਸੂਖਮ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਣਿਜ ਲੂਣ ਮੌਜੂਦ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਹ ਇੱਕ ਤੇਜ ਪੇਸ਼ੀ ਉਤੇਜਕ ਵੀ ਹੈ।[2]
ਅਰਜੁਨ ਰੁੱਖ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਔਸ਼ਧੀ ਰੁੱਖ ਹੈ। ਇਸਨੂੰ ਘਵਲ, ਕਕੁਭ ਅਤੇ ਨਦੀਸਰਜ (ਨਦੀ ਨਾਲਿਆਂ ਦੇ ਕੰਢੇ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ) ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਕਹੁਆ ਅਤੇ ਸਾਦੜੀ ਨਾਮ ਨਾਲ ਬੋਲ-ਚਾਲ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਮਸ਼ਹੂਰ ਇਹ ਰੁੱਖ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਸਦਾਬਹਾਰ ਦਰਖਤ ਹੈ। ਲੱਗਭੱਗ 60 ਤੋਂ 80 ਫੁੱਟ ਉੱਚਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹਿਮਾਲਾ ਦੀ ਤਰਾਈ, ਖੁਸ਼ਕ ਪਹਾੜੀ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਨਦੀ ਨਾਲਿਆਂ ਦੇ ਕੰਢੇ ਅਤੇ ਬਿਹਾਰ, ਮੱਧ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੀ ਬਿਲਕ ਦਰਖਤ ਤੋਂ ਉਤਾਰ ਲੈਣ ਉੱਤੇ ਫਿਰ ਉਗ ਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਬਿਲਕ ਦਾ ਹੀ ਪ੍ਰਯੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉੱਗਣ ਲਈ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਦੋ ਵਰਖਾ ਰੁੱਤਾਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ। ਇੱਕ ਰੁੱਖ ਵਿੱਚ ਬਿਲਕ ਤਿੰਨ ਸਾਲ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਮਿਲਦੀ ਹੈ। ਬਿਲਕ ਬਾਹਰ ਤੋਂ ਸਫੈਦ, ਅੰਦਰੋਂ ਚੀਕਣੀ ਮੋਟੀ ਅਤੇ ਹਲਕੇ ਗੁਲਾਬੀ ਰੰਗ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਲੱਗਭੱਗ 4 ਮਿਲੀਮੀਟਰ ਮੋਟੀ ਇਹ ਬਿਲਕ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਾਰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਲਹਿ ਕੇ ਹੇਠਾਂ ਡਿੱਗ ਪੈਂਦੀ ਹੈ। ਸਵਾਦ ਕਸੈਲ਼ਾ ਅਤੇ ਤਿੱਖਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਟੱਕ ਲਾਉਣ ਨਾਲ ਰੁੱਖ ਤੋਂ ਇੱਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਦੁੱਧ ਨਿਕਲਦਾ ਹੈ।
ਪੱਤੇ ਅਮਰੂਦ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਵਾਂਗ 7 ਤੋਂ 20 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਲੰਬੇ ਆਇਤਾਕਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਕਿਤੇ - ਕਿਤੇ ਨੁਕੀਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਕੰਡੇ ਸਰਲ ਅਤੇ ਕਿਤੇ - ਕਿਤੇ ਸੂਖਮ ਦੰਦਾਂ ਵਾਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਬਸੰਤ ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਛੋਟੀਆਂ – ਛੋਟੀਆਂ ਟਾਹਣੀਆਂ ਨੂੰ ਲੱਗੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਉੱਪਰੀ ਭਾਗ ਚੀਕਣਾ ਅਤੇ ਹੇਠਲਾ ਰੁੱਖਾ ਅਤੇ ਸ਼ਿਰਾਯੁਕਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਫਲ ਬਸੰਤ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਉਂਦੇ ਹਨ, ਸਫੈਦ ਜਾਂ ਪੀਲੀਆਂ ਮੰਜਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹਲਕੀ ਜਿਹੀ ਸੁਗੰਧ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਫਲ ਲੰਬੇ ਅੰਡਾਕਾਰ 5 ਜਾਂ 7 ਧਾਰੀਆਂ ਵਾਲੇ ਜੇਠ ਤੋਂ ਸਾਉਣ ਮਹੀਨੇ ਵਿੱਚ ਲੱਗਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪਕਦੇ ਹਨ। 2 ਤੋਂ 5 ਸੈਂਟੀ ਮੀਟਰ ਲੰਬੇ ਇਹ ਫਲ ਕੱਚੀ ਦਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹਰੇ - ਪੀਲੇ ਅਤੇ ਪੱਕਣ ਉੱਤੇ ਭੂਰੇ - ਲਾਲ ਰੰਗ ਦੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਫਲਾਂ ਦੀ ਦੁਰਗੰਧ ਬਦਮਜ਼ਾ ਅਤੇ ਸਵਾਦ ਕਸੈਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਫਲ ਹੀ ਅਰਜੁਨ ਦਾ ਬੀਜ ਹੈ। ਅਰਜੁਨ ਰੁੱਖ ਦੀ ਗੂੰਦ ਸਵੱਛ ਸੋਨੇ-ਰੰਗੀ, ਭੂਰੀ ਅਤੇ ਪਾਰਦਰਸ਼ਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
ਅਰਜੁਨ ਜਾਤੀ ਦੇ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਪੰਦਰਾਂ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਰੁੱਖ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਕਿਸ ਦੀ ਔਸ਼ਧੀ ਦਿਲ ਦੀ ਲਹੂਵਾਹਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉੱਤੇ ਕਾਰਜ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਇਹ ਪਹਿਚਾਣ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤ ਜਰੂਰੀ ਹੈ। ਡਰਗਸ ਆਫ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਵਾਨ ਲੇਖਕ ਡ. ਘੋਸ਼ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਧੁਨਿਕ ਵਿਗਿਆਨੀ ਅਰਜੁਨ ਦੇ ਲਹੂਵਾਹਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਬਣਾ ਸਕਣ ਵਿੱਚ ਅਸਮਰਥ ਇਸ ਕਾਰਨ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਕ੍ਰਿਤੀ ਵਿੱਚ ਯੋਗ ਸਜਾਤੀਆਂ ਦੀ ਮਿਲਾਵਟ ਬਹੁਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਬਿਲਕ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਦਿੱਖਣ ਪਰ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਰਾਸਾਇਣਕ ਗੁਣ ਅਤੇ ਭੈਸ਼ਜੀਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਮੂਲੋਂ ਭਿੰਨ ਹੈ। ਠੀਕ ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਹੋਰ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਤੁਲਣਾ ਵਿੱਚ ਕਿਤੇ ਜਿਆਦਾ ਮੋਟੀ ਅਤੇ ਪੋਲੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਸ਼ਾਖਾ ਰਹਿਤ ਇਹ ਬਿਲਕ ਅੰਦਰ ਤੋਂ ਲਹੂ ਵਰਗੇ ਰੰਗ ਵਾਲੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਦਰਖਤ ਤੋਂ ਬਿਲਕ ਚੀਕਣੀ ਚਾਦਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ ਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਦਰਖਤ ਦਾ ਤਣਾ ਬਹੁਤ ਚੌੜਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਨੂੰ ਸੁਕਾ ਕੇ ਸੁੱਕੇ ਸੀਤਲ ਸਥਾਨ ਵਿੱਚ ਚੂਰਣ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਬੰਦ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਲੇਫ੍ਤ੍ਹੋਮੀਉਪੈਥੀ ਵਿੱਚ ਅਰਜੁਨ ਇੱਕ ਪ੍ਰਚੱਲਤ ਔਸ਼ਧੀ ਹੈ। ਦਿਲ ਦੇ ਰੋਗ ਸੰਬੰਧੀ ਸਾਰੇ ਲੱਛਣਾਂ ਵਿੱਚ ਖਾਸ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਕਿਰਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਐਕਸ ਅਤੇ ਤੀਹਵੀਂ ਪੋਟੈਂਸੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਨੂੰ ਹੋਮੀਉਪੈਥੀ ਦੇ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਫਲ ਦੱਸਿਆ ਹੈ। ਅਰਜੁਨ ਸੰਬੰਧੀ ਮਤਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਅਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਤਕੜਾ ਮੱਤਭੇਦ ਹੈ। ਫਿਰ ਵੀ ਹੌਲੀ - ਹੌਲੀ ਸੋਧ ਕਾਰਜ ਦੁਆਰਾ ਕਾਨੂੰਨੀ ਪ੍ਰਤੀਪਾਦਨ ਹੁਣ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਚਲੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ।
ਰਾਸਾਇਣਕ ਸੰਗਠਨ - ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਤੱਤ ਹਨ - ਬੀਟਾ ਸਾਇਟੋਸਟੇਰਾਲ, ਅਰਜੁਨਿਕ ਏਸਿਡ ਅਤੇ ਫਰੀਡੇਲੀਨ। ਅਰਜੁਨਿਕ ਏਸਿਡ ਗਲੂਕੋਜ ਦੇ ਨਾਲ ਇੱਕ ਗਲੂਕੋਸਾਈਡ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਰਜੁਨੇਟਿਕ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਅਰਜੁਨ ਦੀ ਬਿਲਕ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਹੋਰ ਤੱਤ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹਨ -
(1) ਟੈਨਿਨਸ - ਬਿਲਕ ਦਾ 20 ਤੋਂ 25 ਫ਼ੀਸਦੀ ਭਾਗ ਟੈਨਿਨਸ ਤੋਂ ਹੀ ਬਣਦਾ ਹੈ। ਪਾਇਰੋਗੇਲਾਲ ਅਤੇ ਕੇਟੇਕਾਲ ਦੋਨਾਂ ਹੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਟੈਨਿਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। (2) ਲੂਣ - ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਲੱਗਭੱਗ 34 ਫ਼ੀਸਦੀ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦੀ ਰਾਖ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਅਤੇ ਖਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸੋਡੀਅਮ, ਮੈਗਨੀਸ਼ੀਅਮ ਅਤੇ ਅਲਿਉਮੀਨੀਅਮ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹੈ। ਇਸ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਸੋਡੀਅਮ ਪੱਖ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਇਹ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਮਾਸ ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸੂਖਮ ਪੱਧਰ ਉੱਤੇ ਕਾਰਜ ਕਰ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ। (3) ਵੱਖ ਵੱਖ ਪਦਾਰਥ ਹਨ - ਸ਼ਕਰ, ਰੰਜਕ ਪਦਾਰਥ, ਵੱਖ ਵੱਖ ਅਗਿਆਤ ਕਾਰਬਨਿਕ ਏਸਿਡ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਈਸਟਰਸ।ਹੁਣ ਤੱਕ ਅਰਜੁਨ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਵੱਖ ਵੱਖ ਘਟਕਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਯੋਗੀ ਜੀਵਾਂ ਉੱਤੇ ਜੋ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵੇਖੇ ਗਏ ਹਨ, ਉਸ ਤੋਂ ਇਸ ਦੇ ਦੱਸੇ ਗੁਣਾਂ ਦੀ ਪੁਸ਼ਟੀ ਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਵੱਖ ਵੱਖ ਪ੍ਰਯੋਗਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਹੇ ਕਿ ਅਰਜੁਨ ਤੋਂ ਦਿਲ ਦੇ ਪੱਠਿਆਂ ਨੂੰ ਬਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ, ਧੜਕਣ ਠੀਕ ਅਤੇ ਬਲਵਾਨ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀ ਮਿੰਟ ਗਤੀ ਵੀ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਸਟਰੋਕ ਵਾਲਿਊਮ ਅਤੇ ਕਾਰਡਿਅਕ ਆਉਟਪੁਟ ਵਧਦੀ ਹੈ। ਦਿਲ ਮਜਬੂਤ ਅਤੇ ਉਤੇਜਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਲਹੂ ਸਤੰਭਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਤੀਲਹੂ ਸਤੰਭਕ ਦੋਨੋਂ ਹੀ ਗੁਣ ਹਨ। ਜਿਆਦਾ ਖੂਨ ਵਹਾ ਹੋਣ ਦੀ ਹਾਲਤ ਤੋਂ ਜਾਂ ਕੋਸ਼ਿਕਾਵਾਂ ਦੀ ਬਲਾਕ ਦੇ ਕਾਰਨ ਟੁੱਟਣ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹੋਣ ਤੇ ਇਹ ਸਤੰਭਕ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਲੇਕਿਨ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਲਹੂਵਾਹਕ (ਕੋਰੋਨਰੀ) ਧਮਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਥੱਕਾ ਨਹੀਂ ਬਨਣ ਦਿੰਦਾ ਅਤੇ ਵੱਡੀ ਧਮਣੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਤੀ ਮਿੰਟ ਭੇਜੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਲਹੂ ਦੇ ਪਰਵਾਹ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸਰੀਰ ਵਿਆਪੀ ਅਤੇ ਹਵਾ ਕੋਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਜਮੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਮੂਤਰ ਰਸਤੇ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਸੂਖਮ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਣਿਜ ਲੂਣ ਮੌਜੂਦ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਹ ਇੱਕ ਤੇਜ ਪੇਸ਼ੀ ਉਤੇਜਕ ਵੀ ਹੈ।
ଅର୍ଜୁନ ଏକ ଦୃମ ଜାତୀୟ ଉଦ୍ଭିଦ। ଏହାର ଗଣ୍ଡି ଦେଖିବାକୁ ପିଜୁଳି ଗଛର ଗଣ୍ଡି ପରି କିନ୍ତୁ ଅଧିକ ମୋଟା। ପତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟ ପିଜୁଳି ଗଛର ପତ୍ରାକୃତିର ହୋଇଥାଏ କିନ୍ତୁ ଆକାରରେ ବଡ଼ ହୋଇଥାଏ । ଏହା ଭାରତରେ ସର୍ବତ୍ର ଦେଖିବାକୁ ମିଳେ । ମାର୍ଚ୍ଚରୁ ଜୁନ ମଧ୍ୟରେ ଫୁଲ ଫୁଟେ ଓ ସେପ୍ଟେମ୍ବରରୁ ନଭେମ୍ବର ମଧ୍ୟରେ ଫଳ ଫଳେ ।[୧][୨]
କଷାୟରସ, ଉଷ୍ଣବୀର୍ଯ୍ୟ, ଗୁରୁପାକ, ବଳକାରକ । ମାତ୍ରା ଦୁଇଅଣାରୁ ଆଠ ଅଣା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ।
ମୁଖ୍ୟତ୍ୟ ଏହାର ଛେଲି ଔଷଧୀୟ କାମରେ ଲାଗେ । ଏହା ହୃଦୟ ରୋଗର ଏକ ପ୍ରମୁଖ ଔଷଧ। ଏହାଛଡା, କଫ, ପିତ୍ତ, ଶୋଥ, କ୍ଷତ, ବସ୍ତିରୋଗ, ପ୍ରମେହ, ଉପଦଂଶ, ରକ୍ତପିତ୍ତ, ରକ୍ତଦୋଷ ଓ ବ୍ରଣାଦିର ନିବାରକ । ଏହାର ଛେଲିର କ୍ୱାଥକୁ ଚିନି ସହିତ ସେବନ କଲେ ବିଷଦୋଷ ନିବାରିତ ହୁଏ । ଏହି କ୍ୱାଥ ସହିତ ମିଶ୍ରିଗୁଣ୍ଡା ମିଶାଇ ସେବନ କଲେ ରକ୍ତପିତ୍ତ ନିବାରିତ ହୁଏ। ଏହାର ଛେଲିର ଚୂର୍ଣ୍ଣକୁ ପ୍ରମେହ, ବହୁମୂତ୍ର ଆଦିରେ ବ୍ୟବହାର କରାଯାଏ। ଲୋଧ ସହିତ ଏହାର ଫୁଲ ବା ପତ୍ରକୁ ବାଟି ଲଗାଇଲେ ଚମ ଉକୁଣୀ ନାଶ ହୁଅନ୍ତି । ଏହାର କ୍ୱାଥ ବା କଳ୍କ ସହିତ ଚିନି ମିଶାଇ ପ୍ରତ୍ୟହ ସେବନ କଲେ ହୃଦ୍ ରୋଗ, ରକ୍ତପିତ୍ତ ଓ ପ୍ରମେହ ଆଦି ଦୂର ହୁଏ । କ୍ଷୟ କାସ, ରାଜଯକ୍ଷ୍ମା ଆଦିରେ ଏହାର ଛେଲିଚୂର୍ଣ୍ଣକୁ ବାସଙ୍ଗ ପତ୍ର ରସ, ଗାଈ ଘିଅ ଓ ମହୁ ସହିତ ସେବନ କରାଯାଏ । ନୂତନ ଓ ପୁରାତନ ହୃଦୟରୋଗରେ ଅର୍ଜ୍ଜୁନ ଛେଲିକୁ ସିଝାଇ ତା ସହିତ ଗାଈଦୁଧ ଓ ପାଣି ମିଶାଇ ସେବନ କଲେ ଉପକାର ହୁଏ । ଏହାର ପତ୍ରରେ ଗାଈଘିଅ ଲଗାଇ ଯେ କୌଣସି ଘାଆ ଉପରେ ଲଗାଇଲେ, ତାହା ଶୁଖିଯାଏ । ଅର୍ଜୁନ ଗଛର ମୂଳର ଛେଲିକୁ ଦୁଧରେ ସିଝାଇ ସେହି ଦୁଧକୁ ପାନ କଲେ କ୍ଷୟକାସ ନିବାରିତ ହୁଏ ।
வெண் மருது (Terminalia arjuna) என்பது ஒருவகை மரமாகும். இது குறிகளான நீள்சதுர இலைகளையும் சாம்பல் நிற வழுவழுப்பான பட்டைகளையும் உடைய ஓங்கி வளரும் பெரிய இலையுதிர் மரம். இதன் பட்டை சதைப்பற்றாக இருக்கும். தமிழக ஆற்றங்கரைகளில் தானாகவே வளர்கிறது. இதில் கருமருது, கலிமருது, பூ மருது என பல்வேறு இனங்கள் உள்ளன. இதன் இலை, பழம், விதை, பட்டை ஆகியவை மருத்துவப் பயனுடையவை.திருவிடைமருதூர், திருஇடையாறு ஆகிய திருத்தலங்களில் மருதம் தலமரமாக விளங்குகின்றது.[1][2]
வெண் மருது (Terminalia arjuna) என்பது ஒருவகை மரமாகும். இது குறிகளான நீள்சதுர இலைகளையும் சாம்பல் நிற வழுவழுப்பான பட்டைகளையும் உடைய ஓங்கி வளரும் பெரிய இலையுதிர் மரம். இதன் பட்டை சதைப்பற்றாக இருக்கும். தமிழக ஆற்றங்கரைகளில் தானாகவே வளர்கிறது. இதில் கருமருது, கலிமருது, பூ மருது என பல்வேறு இனங்கள் உள்ளன. இதன் இலை, பழம், விதை, பட்டை ஆகியவை மருத்துவப் பயனுடையவை.திருவிடைமருதூர், திருஇடையாறு ஆகிய திருத்தலங்களில் மருதம் தலமரமாக விளங்குகின்றது.
తెల్ల మద్ది (లాటిన్ Terminalia arjuna) భారతదేశంలో పెరిగే కలప చెట్టు. ఇది ఆయుర్వేదంలో ఔషధంగా విస్తృతంగా ఉపయోగపడుతుంది.దీనిని అర్జున పత్రి అని కూడా అంటారు. దీనిని ‘మద్ది’ అని కూడా అంటారు. ఇది తెలుపు, ఎరుపు రంగుల్లో లభిస్తుంది. వీటితో ఏదెైనా ఒకదాని బెరడు నూరి ఆ మూలకమును వ్రణమున్న చోట కడితే ఎలాంటి వ్రణములెైనా తగ్గిపోతాయి. ఈ పత్రి ఈ వృక్షానికి చెందినది. వినాయక చవితి రోజు చేసుకునే వరసిద్ధివినాయక ఏకవింశతి పత్రి పూజా క్రమములో ఈ ఆకు 19వ వది. ఈ పత్రి చెట్టు యొక్క శాస్త్రీయ నామం టెర్మినలియ అర్జున.
అర్జున బెరడులో కాల్షియం, అధికంగా ఉంటుంది. అల్యూమినియం, మెగ్నీషియం కూడా ఉంటాయి.
అర్జునిన్, లాక్టోజ్, అర్జునెంటిన్
దీని బెరడు అధిక రక్తపోటు, గుండె నొప్పి మొదలైన వివిధ రకాలైన గుండె జబ్బులలో చాలా ఉపయోగపడుతుందని పరిశోధనలు నిరూపించాయి.ఆధునిక పరిశోధనలలో కూడా ఇది :కార్డియాక్ టానిక్" గా ఉపయోగపడుతున్నట్లు కనుగొన్నారు. ఇది ఇతర రకాలైన నొప్పులలో ఉపయోగపడుతుంది. తెల్ల మద్ది రక్తంలో కొలెస్టిరాల్ అధికంగా ఉన్నవారికి ఉపయోగపడుతుంది.[1]. ఈ ప్రయోజనాలు ఏంటీ ఆక్సిడెంటు లక్షణాలు కలిగిన ఫ్లేవనాయిడ్ల వలన అని తెలుస్తున్నది. ఇదే కాకుండా నొప్పి మందుల వలన కడుపులో పుండు నుండి రక్షిస్తుంది.[2].
ఈ పత్రి సుగంధభరితంగా ఉంటుంది.
ఈ పత్రితో ఉన్న ఇతర ఉపయోగాలు : ముఖంపై మొటిమలు ఉన్న అమ్మాయిలు మద్ది చెట్టు బెరడు నుంచి చేసిన చూర్ణాన్ని తేనెలో కలిపి ముఖంపై మొటిమలు వచ్చే చోట రాసుకుంటే త్వరగా తగ్గుతాయి. అర్జున బెరడు కషాయంతో కాలినగాయాలు, పుళ్లు తగ్గుతాయి. అర్జున బెరడు చూర్ణాన్ని పాలతో కలిపి తీసుకుంటే వీర్యవర్థకం.
అర్జునావిష్ట, అర్జునఘృతం. ఈ పత్రి ఉల్లేఖన ఆయుర్వేదంలో ఉంది. ఇది కాలినగాయాలు, పుళ్లు, ఆస్టియో ప్లోరోసిస్ రోగాల నివారణకు ఉపయోగపడుతుంది.
తెల్ల మద్ది (లాటిన్ Terminalia arjuna) భారతదేశంలో పెరిగే కలప చెట్టు. ఇది ఆయుర్వేదంలో ఔషధంగా విస్తృతంగా ఉపయోగపడుతుంది.దీనిని అర్జున పత్రి అని కూడా అంటారు. దీనిని ‘మద్ది’ అని కూడా అంటారు. ఇది తెలుపు, ఎరుపు రంగుల్లో లభిస్తుంది. వీటితో ఏదెైనా ఒకదాని బెరడు నూరి ఆ మూలకమును వ్రణమున్న చోట కడితే ఎలాంటి వ్రణములెైనా తగ్గిపోతాయి. ఈ పత్రి ఈ వృక్షానికి చెందినది. వినాయక చవితి రోజు చేసుకునే వరసిద్ధివినాయక ఏకవింశతి పత్రి పూజా క్రమములో ఈ ఆకు 19వ వది. ఈ పత్రి చెట్టు యొక్క శాస్త్రీయ నామం టెర్మినలియ అర్జున.
ಮತ್ತಿ (ಅರ್ಜುನ) (ಔಷಧೀಯ ಸಸ್ಯ) ಇದು ಆಯುರ್ವೇದ ಔಷಧ ಪದ್ಧತಿಯಲ್ಲಿ ಬಳಕೆಯಲ್ಲಿರುವ ಒಂದು ಸಸ್ಯ. ಅರ್ಜುನ ಮರವು ಟರ್ಮಿನಲಿಯಾ ಕುಟುಂಬಕ್ಕೆ ಸೇರಿದೆ. ಇದನ್ನು ಸಾಮಾನ್ಯವಾಗಿ ಅರ್ಜುನ್ ಮರ, ಥಲ್ಲಾ ಮಡ್ಡಿ, ಕುಂಬಕ್, ಮಧು ಮರಣ ಮತ್ತು ನೀರೂ ಮಾರುತು ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ.[೧][೨]
ಇತರೆ ಹೆಸರು: ಥಲ್ಲಾ ಮಡ್ಡಿ (ತೆಲುಗು), ಕುಂಬಕ್ (ಸಿಂಹಳ), ಹೋಲ್ ಮ್ಯಾಥಿ, ಅರ್ಜುನ ಮರ
ಅರ್ಜುನ ಮರವು ೨೦-೨೫ಮೀ ಎತ್ತರವಿರುತ್ತದೆ. ಸಾಮಾನ್ಯವಾಗಿ ಬಟ್ರೆಸ್ಟೆಡ್ ಕಾಂಡವನ್ನು ಹೊಂದಿರುತ್ತದೆ. ಶಂಕುವಿನಾಕಾರದ ಎಲೆಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿದೆ. ಇದರ ಎಲೆಗಳು ಹಸಿರು ಬಣ್ಣದಲ್ಲಿರುತ್ತದೆ. ಎಲೆಯ ಕೆಳಭಾಗವು ಕಂದು ಬಣ್ಣದಲ್ಲಿರುತ್ತದೆ. ನಯವಾದ ಬೂದು ತೊಗಟೆಯನ್ನು ಹೊಂದಿದೆ. ಇದು ಮಾರ್ಚ್ ಮತ್ತು ಜೂನ್ ನಡುವೆ ಕಾಣುವ ಹಳದಿ ಬಣ್ಣದ ಹೂವುಗಳು ಬೆಳೆಯುತ್ತವೆ.[೩]
ಅರ್ಜುನ ಮರ ಬಾಂಗ್ಲಾದೇಶ, ಉತ್ತರಪ್ರದೇಶ, ಮಧ್ಯ ಪ್ರದೇಶ, ಪಶ್ಚಿಮ ಬಂಗಾಳ ಮತ್ತು ದಕ್ಷಿಣ ಮತ್ತು ಮಧ್ಯ ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಸಾಮಾನ್ಯವಾಗಿ ನದಿಯ ದಡಗಳಲ್ಲಿ ಅಥವಾ ಶುಷ್ಕ ನದಿ ಹಾಸಿಗೆಗಳ ಬಳಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತದೆ. ಇದನ್ನು ತಮಿಳು ಭಾಷೆಯಲ್ಲಿ ಮಠಿಮಾರಾ, ಮಲಯಾಳಂನಲ್ಲಿ 'ಮಾರುತ ಮಾರಮ್' (ಮಾರುತಮ್ ಪ್ಯಾಟೈ), ತಮಿಳಿನಲ್ಲಿ ತೆಲ್ಲಾ ಮಡ್ಡಿ (ತೆಳು ಮಡಿ) ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ.[೪][೫]
ಅರ್ಜುನವು ಆಂಥೆರಿಯಾ ಪ್ಯಾಫಿಯಾ ಪತಂಗವುಳ್ಳ ಎಲೆಗಳನ್ನು ಕೊಡುವ ಜಾತಿಗಳಲ್ಲಿ ಒಂದಾಗಿದೆ. ಇದು ಟಸ್ಸರ್ ರೇಷ್ಮೆಯನ್ನು ಉತ್ಪಾದಿಸುತ್ತದೆ. ಇದೊಂದು ವಾಣಿಜ್ಯ ಪ್ರಾಮುಖ್ಯತೆಯ ಒಂದು ಕಾಡು ರೇಷ್ಮೆ.
ಥೇರವಾಡದ ಬೌದ್ಧ ಧರ್ಮದಲ್ಲಿ ಅರ್ಜುನ ಮರದ ಉಲ್ಲೇಖವಿದೆ[೬]
ವಗುಭಟ ಕ್ರಿ.ಶ. ೭ನೇ ಶತಮಾನಲ್ಲಿ ಹೃದಯ ರೋಗದ ಚಿಕಿತ್ಸೆಗಾಗಿ ಅರ್ಜುನವನ್ನು ಆಯುರ್ವೇದದಲ್ಲಿ ಪರಿಚಯಿಸಲಾಯಿತು. ಇದನ್ನು ಸಾಂಪ್ರದಾಯಿಕವಾಗಿ ಹಾಲಿನ ಕಷಾಯದಂತೆ ತಯಾರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ. ಪ್ರಾಚೀನ ಭಾರತೀಯ ವೇದಗಳಲ್ಲಿ ಇದರ ಉಲ್ಲೇಖವಿದೆ. ಗಾಯಗಳು, ರಕ್ತಸ್ರಾವ ಮತ್ತು ಹುಣ್ಣುಗಳ ಚಿಕಿತ್ಸೆಯಲ್ಲಿ ಅರ್ಜುನ ಮರವನ್ನು ಬಳಸುತ್ತಾರೆ.[೭]http://www.planetayurveda.com/library/arjuna-terminalia-arjuna
ಮತ್ತಿ (ಅರ್ಜುನ) (ಔಷಧೀಯ ಸಸ್ಯ) ಇದು ಆಯುರ್ವೇದ ಔಷಧ ಪದ್ಧತಿಯಲ್ಲಿ ಬಳಕೆಯಲ್ಲಿರುವ ಒಂದು ಸಸ್ಯ. ಅರ್ಜುನ ಮರವು ಟರ್ಮಿನಲಿಯಾ ಕುಟುಂಬಕ್ಕೆ ಸೇರಿದೆ. ಇದನ್ನು ಸಾಮಾನ್ಯವಾಗಿ ಅರ್ಜುನ್ ಮರ, ಥಲ್ಲಾ ಮಡ್ಡಿ, ಕುಂಬಕ್, ಮಧು ಮರಣ ಮತ್ತು ನೀರೂ ಮಾರುತು ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ.
ಇತರೆ ಹೆಸರು: ಥಲ್ಲಾ ಮಡ್ಡಿ (ತೆಲುಗು), ಕುಂಬಕ್ (ಸಿಂಹಳ), ಹೋಲ್ ಮ್ಯಾಥಿ, ಅರ್ಜುನ ಮರ
अर्जुनवृक्षः भारतदेशस्य कश्चित् औषधीयवृक्षः अस्ति । अस्य धवलः, ककुभः, नदीसर्जः इति नामान्तरम् अस्ति । सामान्यतः अस्य औन्नत्यं ६०-८०पादपरिमितं भवति । हिमालयस्य सानुप्रदेशे, शुष्कगिरिप्रदेशेषु नदीनां तटेषु च अर्जुनवृक्षं दृष्टुं शक्यते । भारतदेशे बिहारे, मध्यप्रदेशे अधिकतया प्ररोहति । अस्य वृक्षस्य चर्म निष्कासितं चेदपि पुनः संवर्धते । अर्जुनवृक्षस्य ४मि.मी.स्फीता त्वक् संवत्सरे एकवारं स्वयं निपतति । अस्य वृक्षस्य पत्राणि बीजपूरस्य पत्राणि इव ७तः१८से.मी.पर्यन्तं दीर्घाणि भवन्ति । पत्रस्य अञ्चले तत्र तत्र लघुलघुदन्तानि भवन्ति । अर्जुनवृक्षः वसन्तकाले नूतनानि पत्राणि प्राप्य तदन्ते फलानि उत्पादयन्ति । अयम् अर्जुनवृक्षः भारते वर्धमानः कश्चन वृक्षविशेषः । अयं ६० – ८० पादमितः उन्नतः वृक्षः । अयं वृक्षः विशेषतया भारतस्य हिमालयप्रदेशे, बङ्गाले, बिहारे, मध्यप्रदेशे च वर्धन्ते । नदीतीरेषु अपि वर्धते । अस्य त्वचः बहिर्भागः श्वेतवर्णीयः, अन्तर्भागः रक्तवर्णीयः सुकोमलः च भवति । अस्य् पर्णानि आम्रपर्णानाम् आकारकाणि । तानि ४ – ६ अङ्गुलं यावत् दीर्घाणि, १ – ६ अङ्गुलं यावत् विशालानि च भवन्ति । अस्य पुष्पाणि गुच्छाकाराणि श्वेतवर्णीयानि अथवा मन्दपीतवर्णीयानि भवन्ति । अस्य फलानि धाराम्लस्य फलानि इव पक्षयुक्तानि भवन्ति । तानि लघ्वाकारकाणि, १ – १.५ अङ्गुलं यावत् दीर्घाणि, ५ – ६ पक्षयुक्तानि च भवन्ति ।
अयम् अर्जुनवृक्षः आङ्ग्लभाषया Terminala Arjuna इति उच्यते । हिन्दीभाषया अपि “अर्जुन” इति, तेलुगुभाषया “तेल्लमत्ति” इति, तमिळभाषया “बेल्म” इति, कन्नडाभाषया “मत्तिमर” इति च उच्यते ।
अस्य अर्जुनवृक्षस्य त्वचः रसः कषायः । अयं रूक्षः लघुः च । अस्मिन् त्वचि सिटोस्टिराल्, अर्जुनेटन्, पेड्रिलीन् इत्यादयः अंशाः सन्ति । २० – २५ % यावत् डयानिन्, ०.३३ % यावत् क्याल्सियं, ०.०७६ % यावत् मेग्नेषियं, ०.०७६ % यावत् अल्युमिनियं च अस्ति । अस्य वृक्षस्य त्वक् एव औषधत्वेन उपयुज्यते ।
genus Terminalia इति अस्य सस्यशास्त्रीयं नाम । अर्जुनजातौ १५प्रजातीयाः वृक्षभेदाः भारतदेशे भवन्ति । होमियोपति वैद्यपद्धतौ हृदयसम्बद्धरोगनिवारणस्य औषधनिर्माणे अस्य अवयवानि उपयुज्यन्ते ।
अस्य वृक्षस्य चर्मणः बीटा साय्टोस्टेराँल्, अर्जुनाम्लं च प्राप्येते । अर्जुनिकम् आम्लं तु ग्लूकोस् रसायनिकेन संयुक्तं ग्लूकोसायिड् निर्माति यस्य अर्जुनेटिक् इति कथ्यते । पत्रस्य २०-२५%भागः टैनिन्स् द्वारा निर्मितं भवति । पायरोगेलाल अथवा केटेकॉल प्रकारद्वयस्य टैनिन्स् भवतः । अस्य भस्मनि ३४% केल्शियं कार्बोनेट् भवति । अन्यक्षारेषु सोडियम्, मेग्नेशियं अथवा अल्युमीनियं प्रमुखानि भवन्ति । अस्य केल्शियं सोडियं पक्षस्य प्रचुरतायाः कारणेन हृदयस्य मांसखण्डेषु कार्यं करोति । पुनश्च अस्मिन् वृक्षाङ्गेषु शर्करा, रञ्जकः विविधानि कार्बानिक् अम्लानि च बिभिन्नपदार्थाः अपि भवन्ति ।
Terminalia arjuna is a tree of the genus Terminalia. It is commonly known as arjuna[1] or arjun tree in English.[2]
T. arjuna grows to about 20–25 metres tall; usually has a buttressed trunk, and forms a wide canopy at the crown, from which branches drop downwards. It has oblong, conical leaves which are green on the top and brown below; smooth, grey bark; it has pale yellow flowers which appear between March and June; its glabrous, 2.5 to 5 cm fibrous woody fruit, divided into five wings, appears between September and November.[1][2]
The tree does not suffer from any major diseases or pests, but it is susceptible to Phyllactinia terminale and rot due to polystictus affinis.[3]
The arjuna is seen across the Indian Subcontinent, and usually found growing on river banks or near dry river beds in Uttar Pradesh, Bihar, Maharashtra, Madhya Pradesh, West Bengal, Odisha and south and central India, along with Sri Lanka and Bangladesh.[1][4] It has also been planted in Malaysia, Indonesia and Kenya.[3]
The arjuna is one of the species whose leaves are fed on by the Antheraea paphia moth which produces the tassar silk, a wild silk of commercial importance.[5]
Terminalia arjuna in Bagh-e-Jinnah, Lahore
Terminalia arjuna is a tree of the genus Terminalia. It is commonly known as arjuna or arjun tree in English.
Terminalia arjuna, es una especie de árbol perteneciente a la familia Combretaceae.
Alcanza un tamaño de unos 20 a 25 metros de altura; por lo general tiene un tronco reforzado, y forma un gran dosel en la corona, del que las ramas caen hacia abajo. Tiene hojas cónicas alargadas que son verdes en la parte superior y marrón por debajo; la corteza es lisa, de color gris; tiene flores de color amarillo pálido que aparecen entre marzo y junio; su fruta es glabra, leñosa de 2,5 a 5 cm fibrosa, dividida en cinco alas, aparece entre septiembre y noviembre.[1][2]
La arjuna se encuentra crece generalmente en orillas de ríos o cauces de los ríos secos en Bengala Occidental y el sur y el centro de la India.[1] Se conoce como (ಕಮರಾಕ್ಷಿ) neer maruthu en Malayo y Thella Maddi (తెల్ల మద్ది) en Telugu.
La arjuna es una de las especies cuyas hojas son el alimento de la polilla Antheraea paphia que produce la seda tassar (tussah), una seda salvaje de importancia comercial.[3]
En estudios en ratones, se ha demostrado que sus hojas pueden tener propiedades analgésicas y antiinflamatorias.[1]
La arjuna fue introducida en Ayurveda como tratamiento para las enfermedades cardíacas por Vagbhata (c. siglo séptimo dC).[4] Se prepara tradicionalmente como una decocción de leche.[4] En el Ashtānga Hridayam, Vagbhata menciona la arjuna en el tratamiento de heridas, hemorragias y úlceras, aplicados por vía tópica en forma de polvo.[4]
Terminalia arjuna fue descrita por (Roxb. ex DC.) Wight & Arn. y publicado en Prodromus Florae Peninsulae Indiae Orientalis 34. 1834.[5]
Terminalia: nombre genérico que deriva su nombre del latín terminus, debido a que sus hojas están muy al final de las ramas.
arjuna: epíteto
Terminalia arjuna, es una especie de árbol perteneciente a la familia Combretaceae.
Raíces y tronco Frutos de Arjuna (secos) Árbol joven HojasMigdałecznik arjuna[3] (Terminalia arjuna) – gatunek drzewa z rodziny trudziczkowatych (Combreatceae). Występuje w Indiach, w Mjanmie i na Sri Lance[2]. Roślina wykorzystywana jest przez ajurwedyjskich lekarzy z powodu uzdrawiających właściwości.
Migdałecznik arjuna (Terminalia arjuna) – gatunek drzewa z rodziny trudziczkowatych (Combreatceae). Występuje w Indiach, w Mjanmie i na Sri Lance. Roślina wykorzystywana jest przez ajurwedyjskich lekarzy z powodu uzdrawiających właściwości.
Owoce i liście
Terminalia arjuna là một loài thực vật có hoa trong họ Trâm bầu. Loài này được (Roxb. ex DC.) Wight & Arn. miêu tả khoa học đầu tiên năm 1834.[1]
Terminalia arjuna là một loài thực vật có hoa trong họ Trâm bầu. Loài này được (Roxb. ex DC.) Wight & Arn. miêu tả khoa học đầu tiên năm 1834.
Terminalia arjuna (Roxb.) Wight & Arn.
Кукубха, Арджуна, Терминалия арджуна (лат. Terminalia arjuna) — один из видов терминалии.
В диком виде кукубха встречается на Индийском субконтиненте к югу от Гималаев, от границ с Пакистаном на западе до Бангладеш на востоке, также произрастает на Шри-Ланке. Наиболее распространена кукубха в Бенгалии и центральной Индии.
Арджуна — дерево, достигающее высоты 20—25 м, с толстой, светло-серой корой, выделяющей млечный сок. Цветёт кукубха в зависимости от региона в марте-июне или в августе-сентябре, а плодоносит в сентябре или в ноябре-декабре. Плод деревянистый, длиной 2,5-5 см. Листья бледно-зелёные.[2]
Арджуна широко используется в народной медицине, упоминается ещё в Аюрведе: «Мы нашли растение, которое творит такие чудеса, что трудно себе представить, что оно существует в реальности».[3]
Для медицинских целей используют кору, листья и плоды. В коре содержатся танины, сапонин, кальций, магний, цинк, медь. Листья оказывают тонизирующее воздействие[4].
В буддизме тхеравады кукубха считается деревом просветления десятого будды прошлого Аномадасси (англ.)русск.[5].
Кукубха, Арджуна, Терминалия арджуна (лат. Terminalia arjuna) — один из видов терминалии.