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Muntiacus muntjak ( Occitano (desde 1500) )

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भेकर ( Marathi )

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भेकर हरीणांच्या सारंग कुळातील हरीण आहे. याचे वैशिठ्य म्हणजे इतर सारंग कुळातील हरणांसारखे याला शिंगे नसतात. परंतु शरीरातील इतर वैशिठ्ये ही सारंग कुळातील हरीण असल्याची साक्ष देतात. याचे नाव भेकर हे त्याच्या आवाजावरुन पडले आहे. याला भुंकणारे हरीण असेही म्हणतात. जंगलातील शांततेत याच्या भुंकण्याचा आवाज चांगलाच घुमतो व दुरवर ऐकू येतो.

याचा वावर पूर्व भारतात जास्त आहे. महाराष्ट्रातही याचा वावर बहुतेक जंगलात आहे. परंतु कोकणात याची नोंद विरळपणेच झालेली आहे. सह्याद्रीतील जंगलात बरेचदा हे हरीण दृष्टीस पडते.

संदर्भ

  1. ^ Timmins, R.J., Duckworth, J.W., Hedges, S., Pattanavibool, A., Steinmetz, R., Semiadi, G., Tyson, M. & Boeadi (2008). Muntiacus muntjak. इ.स. २००६ असुरक्षित प्रजातींची आय.यू.सी.एन. "लाल" यादी. आय.यू.सी.एन. इ.स. २००६. 5 April 2009ला बघितले.Database entry includes a brief justification of why this species is of least concern.

भेकरास लहान शाखाविरहित शिंगे असून ती 15 सेमी पर्यंत वाढतात. शिंगांची वाढ डोकयावरील अस्थीमधून दरवर्षी होते. नर आपले वसतिस्थान आक्रमकपणे टिकवून ठेवतात. आपल्या परिसरात असलेला दुस-या नराचे वास्तव्य त्याना सहन होत नाही. आपल्या शिंगानी व वरील जबड्यातील सुळ्यांच्या सहाय्याने परक्या नराशी संघर्ष करतात. कुत्र्याचा प्रतिकार करताना शिंगे व सुळ्यांचा वापर करतात. भेकराच्या शरीरावर आखूड, मऊ, दाट केस असतात. शीत प्रदेशातील भेकराचे केस अधिक दाट असतात. ऋतुप्रमाणे केसांचा रंग गडद तपकिरी पासून पिवळट तपकिरीपर्यंत परिसरानुरूप बदलतो. ऊर्ध्व बाजूस असलेले केस सोनेरी गडद रंगाचे व पोटाकडील बाजू पांढरट रंगाची असते. पाय गडद तपकिरी व तांबड्या तपकिरी रंगाचे असतात. चेहरा गडद तपकिरी असतो. कानावरील केस अगदीच आखूड असतात. भारतीय नर भेकराची शिंगे अगदीच लहान म्हणजे 3-4 सेमी लांबीची असून मस्तकातून कशीबशी बाहेर दिसतात. मादीस नरास ज्या ठिकाणी शिंगे असतात त्या ठिकाणी लांब केस असतात. नराचे सुळे किंचित वाकडे 3 सेमी लांबीचे असून वरील ओठामधून जबड्याच्या बाहेर दिसतात. दुस-या नरास किंवा शत्रूस पिटाळून लावताना त्याचा पुरेपूर वापर होतो. नर मादीहून आकाराने मोठा असतो. नराची लांबी 100-110 सेमी असून उंची सु 40- 55 सेमी पर्यंत भरते. विस्तार दक्षिण आशियात भेकर विविध ठिकाणी आढळते. बांगलादेश, दक्षिण चीन, श्री लंका, नेपाळ, पाकिस्तान, कंबोडिया, व्हिएटनाम, मलाया द्वीपकल्प, सुमात्रा, जावा,बाली व बोर्निओ येथे भेकराचा आढळ आहे. भारतीय भेकर उष्ण कटिबंधातील पानगळीची जंगले, गवताळ प्रदेश, व खुरट्या वनस्पति प्रदेशात आढळते. हिमालयाच्या उतारावर भेकर आढळले आहे. समुद्रसपाटीपासून तीनहजार मीटर उंचीपर्यंत यांचा वावर आहे. सहसा पाण्यापासून ते फार दूर जात नाही. नर आपल्या स्थाबद्दल चांगलाच जागरुक असतो. आपल्या परिसरात दुस-या नरास तो येऊ देत नाही पण माद्या अधून मधून दुस-या नराच्या आश्रयस्थानात वावरतात. भारतीय भेकराचे शास्त्रीय नाव Muntiacus muntjak असून याउपखंडात असलेली आणखी एक उपजाती M. m. aureus, या नावाने ओळखली जाते. वर्तन भारतीय भेकर महाराष्ट्रात भुंकणारे हरीण या सामान्य नावाने ओळखतात. संकटाची चाहूल लाहताच ते भुंकते. कधीकधी त्याचे भुंकणे तासभर चालू असते. मीलनकाळ सोडला तर पहिल्या सहा महिन्याच्या काळात पूर्ण वाढ झालेला नर एकांडा असतो. आपला परिसर निश्चित करण्यासाठी चेह-यावर डोळ्याखाली असलेल्या ग्रंथीमध्ये असलेला स्त्राव तो चेह-याच्या उंचीएवढ्या वाढलेल्या गवताच्या काडीवर घासतो. या गंध खुणेमुळे दुस-या नरास परिसरात आणखी एक नर असल्याचे समजते. या गंध खुणेमुळे मादीस नर जवळच असल्याची खात्री होते. मीलनकाळात दुस-या मादीच्या शोधात नर स्वतःचा परिसर सोडून जाणे ही सामान्य बाब आहे. भेकर अत्यंत सावध प्राणी आहे. धोक्याची जाणीव होताच भेकर भुंकते. भेकराचे भुंकणे हे मादीस आकर्षित करण्याची खूण आहे अशी समजूत होती. पण सध्या केलेल्या संशोधनातून भुंकणे हे धोक्याची जाणीव होताच दूर जाण्याचा संकेत आहे असा निष्कर्ष काढण्यात आलेला आहे. परिसर स्पष्ट दिसण्यात अडचण आल्यास कधी कधी भेकराचे भुंकणे तासाभरासाठी चालूच राहते.

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भेकर: Brief Summary ( Marathi )

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भेकर हरीणांच्या सारंग कुळातील हरीण आहे. याचे वैशिठ्य म्हणजे इतर सारंग कुळातील हरणांसारखे याला शिंगे नसतात. परंतु शरीरातील इतर वैशिठ्ये ही सारंग कुळातील हरीण असल्याची साक्ष देतात. याचे नाव भेकर हे त्याच्या आवाजावरुन पडले आहे. याला भुंकणारे हरीण असेही म्हणतात. जंगलातील शांततेत याच्या भुंकण्याचा आवाज चांगलाच घुमतो व दुरवर ऐकू येतो.

याचा वावर पूर्व भारतात जास्त आहे. महाराष्ट्रातही याचा वावर बहुतेक जंगलात आहे. परंतु कोकणात याची नोंद विरळपणेच झालेली आहे. सह्याद्रीतील जंगलात बरेचदा हे हरीण दृष्टीस पडते.

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ছাগলী পহু ( Assamesa )

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ছাগলী পহু (ইংৰাজী: Indian Muntjac or Barking Deer) এবিধ পহুৰ প্ৰজাতি৷ ইয়াৰ দেহ চুটি, মটীয়া ৰঙৰ নোমেৰে আৱৰা৷ ই সৰ্বভক্ষী, ফল-মূল, গছৰ গুটি, কাণ্ডকে আদি কৰি চৰাইৰ কণী, সৰু প্ৰাণী পৰ্য্যন্ত আহাৰ হিচাপে গ্ৰহণ কৰে৷ ইয়াৰ মূৰত সৰু শিং থাকে৷

শ্ৰেণীবিভাজন

ছাগলী পহুৰ ১৫ বিধ উপ-প্ৰজাতি পোৱা যায়-

বিৱৰণ

 src=
শ্ৰীলংকাৰ মাইকী ছাগলী পহু
 src=
শ্ৰীলংকাৰ মতা ছাগলী পহু

ছাগ৷লী পহুৰ দেহৰ নোমবোৰ ডাঠ, চুটি আৰু কোমল৷ ঋতু বিশেষে ইয়াৰ দেহৰ বৰণ ডাঠ মটিয়াৰ পৰা হালধীয়া-মটীয়া হ’ব পাৰে৷ ইয়াৰ মুখখন গাঢ় মটীয়া বৰণৰ৷ কাণৰ কাষত নোম তেনেই কম৷ মতা প্ৰাণীবোৰ মাইকীত কৈ আকাৰত ডাঙৰ হয়৷ মতা ছাগ৷লী পহুৰ মূৰত চুটি শিং থাকে৷ দেহৰ ওজন ১৪-২৮ কি: গ্ৰা৷ আৰু দৈৰ্ঘ্য ৫০-৭৫ ছে: মি:৷

বসতিস্থল

ছাগ৷লী পহু দক্ষিণ এছিয়াৰ বহুল ভাবে বিস্তৃত অথচ সীমিত তথ্য থকা প্ৰাণী সমূহৰ ভিতৰত অন্যতম৷ এই প্ৰজাতিটো ভাৰত, বাংলাদেশ, শ্ৰীলংকা, নেপাল,পাকিস্তান, দক্ষিণ চীন, ভিয়েটনাম,জাভা, সুমাত্ৰা, বালি, কম্বোডিয়া, আৰু বৰ্ণিয়’ আদি দেশত পোৱা যায়৷ ই প্ৰধানকৈ ঘাঁহনি, চাভানা অঞ্চল, পৰ্ণপাতী আৰু কাইটীয়া অৰণ্যত থাকে৷

আচৰণ

ছাগ৷লী পহুক সৰ্বভক্ষী বুলি গণ্য কৰা হয়৷ ঘাঁহ-বন, গছৰ পাত, ডাল, কাণ্ড, ফল-মূল, চৰাইৰ কণী আৰু অন্যান্য ক্ষুদ্ৰাকৃতিৰ প্ৰাণী ইহঁতৰ প্ৰধান খাদ্য৷ ছাগ৷লী পহু মাজত বহুপ্ৰজনন (polygamy) দেখা যায়৷ মাইকী প্ৰাণী প্ৰথম বা দ্বিতীয় বছৰ বয়সত প্ৰজননক্ষম হৈ উঠে৷ গৰ্ভধাৰণৰ সময় ৬-৭ মাহ৷ সাধাৰণতে এবাৰত এটাকৈ পোৱালিৰ জন্ম দিয়ে৷

মাক-পোৱালিৰ বাহিৰে ছাগলী পহুক সাধাৰণতে অকলশৰীয়া কৈ থকা দেখা যায়৷

ই দিন আৰু ৰাতি দুয়ো সময়তে চৰে৷

স্থিতি তথা সংৰক্ষণ

তথ্যসূত্ৰ

  • Hutchins, Michael, ed. "Muntjacs." Grzimek's Animal Life Encyclopedia. 2nd ed. 15 vols. Detroit: The Gale Group Inc, 2004.
  • Kurt, Fred. "Muntjac Deer." Grzimek's Encyclopedia of Mammals. 1st ed. 5 vols. St. Louis: McGraw-Hill, 1990.
  • Nowak, Ronald M. "Muntjacs, or Barking Deer." Walker's Mammals of the World. 6th ed. 2 vols. Baltimore: The Johns Hopkins UP, 1999.
  1. Timmins, R.J., Duckworth, J.W., Hedges, S., Pattanavibool, A., Steinmetz, R., Semiadi, G., Tyson, M. & Boeadi (2008). Muntiacus muntjak. In: IUCN 2008. IUCN Red List of Threatened Species. Downloaded on 5 April 2009. Database entry includes a brief justification of why this species is of least concern.
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ছাগলী পহু: Brief Summary ( Assamesa )

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ছাগলী পহু (ইংৰাজী: Indian Muntjac or Barking Deer) এবিধ পহুৰ প্ৰজাতি৷ ইয়াৰ দেহ চুটি, মটীয়া ৰঙৰ নোমেৰে আৱৰা৷ ই সৰ্বভক্ষী, ফল-মূল, গছৰ গুটি, কাণ্ডকে আদি কৰি চৰাইৰ কণী, সৰু প্ৰাণী পৰ্য্যন্ত আহাৰ হিচাপে গ্ৰহণ কৰে৷ ইয়াৰ মূৰত সৰু শিং থাকে৷

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କୁଟୁରା ( Oriá )

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କୁଟୁରା, କୁଟ୍ରା, ଭାରତୀୟ କୁଟୁରା (ଈଂରାଜୀରେ Indian muntjac ବା red muntjac ବା barking deer ଭାବେ ପରିଚିତ, ଜୀବବିଜ୍ଞାନ ନାମ Muntiacus muntjak) ଦକ୍ଷିଣ ଓ ଦକ୍ଷିଣ-ପୂର୍ବ ଏସିଆରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ମଣ୍ଟଜ୍ୟାକ୍ ହରିଣ ପ୍ରଜାତି । IUCN ସଂରକ୍ଷଣ ତାଲିକାରେ ଏହି ହରିଣ Least Concern ବର୍ଗରେ ସ୍ଥାନ ପାଇଛି ।[୧]

କୁଟୁରାର ଲୋମ ଛୋଟ, କୋମଳ ଓ ମାଟିଆ କିମ୍ବା ପାଉଁଶିଆ ରଙ୍ଗର । କିଛି କୁଟୁରାଙ୍କ ଦେହରେ ଏକ ପ୍ରକାରର ଦାଗ ରହିଥାଏ । ଏହି ହରିଣ ପ୍ରଜାତି ସର୍ବଭକ୍ଷୀ । ଘାସ, ଫଳ, କରଡ଼ି, ମଞ୍ଜି, ପକ୍ଷୀଙ୍କ ଅଣ୍ଡା ଓ ଛୋଟ ଛୋଟ ଜୀବମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ କୁଟୁରା ଆହରଣ କରିଥାଏ । ଏପରିକି କୁଟୁରାମାନେ ପଚିସଢ଼ି ଯାଇଥିବା ଶବ ଖାଇବା ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇଛି । କୌଣସି ଶିକାରୀ ଜୀବର ଉପସ୍ଥିତି ଅନୁଭବ କଲେ ଏମାନେ ଭୁକିବା ପରି ସତର୍କ ଡାକ ଦିଅନ୍ତି । ତେଣୁ ଏହାର ଈଂରାଜୀ ନାମ "ବାର୍କିଂଗ୍ ଡିଅର୍" ("barking deer" - "ଭୋକୁଥିବା ହରିଣ") ଦିଆଯାଇଛି । କ୍ଷୁଦ୍ର ଆକାରର ହରିଣ ପ୍ରଜାତିମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କୁଟରା ଅନ୍ୟତମ । ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନଙ୍କର ଦୁଇଟି ଛୋଟ ଛୋଟ ଶିଙ୍ଗ ରହିଥାଏ । ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନଙ୍କର ସ୍ୱାନଦାନ୍ତ ମଧ୍ୟ ରହିଥାଏ ଯାହା ସହଜରେ ଦେଖିହେବ । ନିଜର ଲୁକ୍କାୟିତ ସୁଗନ୍ଧ ଗ୍ରନ୍ଥିର ଉପଯୋଗ କରି ଏମାନେ ନିଜ କ୍ଷେତ୍ର ନିର୍ଦ୍ଧାରଣ ବା ଚିହ୍ନଟ କରନ୍ତି ।[୨] ମୁଣ୍ଡର ଉପରେ ଥିବା ଏକ ହାଡ଼ୁଆ ଖୋପରୁ ବାହାରିଥିବା କୁଟୁରାର ଶିଙ୍ଗ ପ୍ରତିବର୍ଷ ପ୍ରାୟ ୧୫ ସେଣ୍ଟିମିଟର୍ ବଢ଼ିଥାଏ । ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନେ କ୍ଷେତ୍ର ଚିହ୍ନଟ କରି ତାହାର ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିଥାନ୍ତି । ଛୋଟ ଆକାର ସତ୍ତ୍ୱେ କୁଟୁରାମାନେ ଆକ୍ରାମକ ହୋଇଥାନ୍ତି । କ୍ଷେତ୍ର ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ପାଇଁ ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଘୋର ଯୁଦ୍ଧ ହୋଇଥାଏ ଓ ଲଢ଼ିବା ସମୟରେ ଏମାନେ ନିଜର ଶିଙ୍ଗ ଏବଂ ହାତୀଦାନ୍ତ ପରି ବାହାରିଥିବା ସ୍ୱାନଦାନ୍ତର ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି । ବେଳେବେଳେ ଏହି ସବୁର ଉପଯୋଗ କରି ଏମାନେ ମାଂସଭୋଜୀ ଶିକାରୀ ପ୍ରାଣୀଙ୍କଠାରୁ ମଧ୍ୟ ନିଜର ପ୍ରତିରକ୍ଷା କରିପାରନ୍ତି ।

ନାମ

ଗଠନ ଓ ପ୍ରକୃତି

Barkingdeer by N A Nazeer.jpg

ପରିବାସ ଓ ଭୌଗୋଳିକ ବିତରଣ

ଉପ-ପ୍ରଜାତିମାନଙ୍କ ଭୌଗୋଳିକ ବିତରଣ

ପରିସ୍ଥିତିକ ବ୍ୟବହାର

ସତର୍କ ଧ୍ୱନି

ଆହାର

ପ୍ରଜନନ

ବିବର୍ତ୍ତନ

ବିପଦ

ଆଧାର

  1. ୧.୦ ୧.୧ Timmins, R. J.; Duckworth, J. W. & Hedges, S. (2016). "Muntiacus muntjak". The IUCN Red List of Threatened Species. IUCN. 2016: e.T42190A56005589. doi:10.2305/IUCN.UK.2016-1.RLTS.T42190A56005589.en. Retrieved 14 January 2018.
  2. "ADW: Home". animaldiversity.org (in ଇଂରାଜୀ). Retrieved 2017-12-02.

ଆହୁରି ପଢ଼ନ୍ତୁ

  • Hutchins, Michael (ed.) (2004). Muntjacs. Grzimek's Animal Life Encyclopedia. 2nd ed. 15 vols. Detroit: The Gale Group Inc., 2004.
  • Kurt, Fred (1990). Muntjac Deer. Grzimek's Encyclopedia of Mammals. 1st ed. 5 vols. St. Louis: McGraw-Hill.
  • Nowak, Ronald M. (1999). Muntjacs, or Barking Deer. Walker's Mammals of the World. 6th ed. 2 vols. Baltimore: The Johns Hopkins UP.
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କୁଟୁରା: Brief Summary ( Oriá )

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କୁଟୁରା, କୁଟ୍ରା, ଭାରତୀୟ କୁଟୁରା (ଈଂରାଜୀରେ Indian muntjac ବା red muntjac ବା barking deer ଭାବେ ପରିଚିତ, ଜୀବବିଜ୍ଞାନ ନାମ Muntiacus muntjak) ଦକ୍ଷିଣ ଓ ଦକ୍ଷିଣ-ପୂର୍ବ ଏସିଆରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ମଣ୍ଟଜ୍ୟାକ୍ ହରିଣ ପ୍ରଜାତି । IUCN ସଂରକ୍ଷଣ ତାଲିକାରେ ଏହି ହରିଣ Least Concern ବର୍ଗରେ ସ୍ଥାନ ପାଇଛି ।

କୁଟୁରାର ଲୋମ ଛୋଟ, କୋମଳ ଓ ମାଟିଆ କିମ୍ବା ପାଉଁଶିଆ ରଙ୍ଗର । କିଛି କୁଟୁରାଙ୍କ ଦେହରେ ଏକ ପ୍ରକାରର ଦାଗ ରହିଥାଏ । ଏହି ହରିଣ ପ୍ରଜାତି ସର୍ବଭକ୍ଷୀ । ଘାସ, ଫଳ, କରଡ଼ି, ମଞ୍ଜି, ପକ୍ଷୀଙ୍କ ଅଣ୍ଡା ଓ ଛୋଟ ଛୋଟ ଜୀବମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ କୁଟୁରା ଆହରଣ କରିଥାଏ । ଏପରିକି କୁଟୁରାମାନେ ପଚିସଢ଼ି ଯାଇଥିବା ଶବ ଖାଇବା ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇଛି । କୌଣସି ଶିକାରୀ ଜୀବର ଉପସ୍ଥିତି ଅନୁଭବ କଲେ ଏମାନେ ଭୁକିବା ପରି ସତର୍କ ଡାକ ଦିଅନ୍ତି । ତେଣୁ ଏହାର ଈଂରାଜୀ ନାମ "ବାର୍କିଂଗ୍ ଡିଅର୍" ("barking deer" - "ଭୋକୁଥିବା ହରିଣ") ଦିଆଯାଇଛି । କ୍ଷୁଦ୍ର ଆକାରର ହରିଣ ପ୍ରଜାତିମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କୁଟରା ଅନ୍ୟତମ । ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନଙ୍କର ଦୁଇଟି ଛୋଟ ଛୋଟ ଶିଙ୍ଗ ରହିଥାଏ । ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନଙ୍କର ସ୍ୱାନଦାନ୍ତ ମଧ୍ୟ ରହିଥାଏ ଯାହା ସହଜରେ ଦେଖିହେବ । ନିଜର ଲୁକ୍କାୟିତ ସୁଗନ୍ଧ ଗ୍ରନ୍ଥିର ଉପଯୋଗ କରି ଏମାନେ ନିଜ କ୍ଷେତ୍ର ନିର୍ଦ୍ଧାରଣ ବା ଚିହ୍ନଟ କରନ୍ତି । ମୁଣ୍ଡର ଉପରେ ଥିବା ଏକ ହାଡ଼ୁଆ ଖୋପରୁ ବାହାରିଥିବା କୁଟୁରାର ଶିଙ୍ଗ ପ୍ରତିବର୍ଷ ପ୍ରାୟ ୧୫ ସେଣ୍ଟିମିଟର୍ ବଢ଼ିଥାଏ । ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନେ କ୍ଷେତ୍ର ଚିହ୍ନଟ କରି ତାହାର ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିଥାନ୍ତି । ଛୋଟ ଆକାର ସତ୍ତ୍ୱେ କୁଟୁରାମାନେ ଆକ୍ରାମକ ହୋଇଥାନ୍ତି । କ୍ଷେତ୍ର ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ପାଇଁ ଅଣ୍ଡିରା କୁଟୁରାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଘୋର ଯୁଦ୍ଧ ହୋଇଥାଏ ଓ ଲଢ଼ିବା ସମୟରେ ଏମାନେ ନିଜର ଶିଙ୍ଗ ଏବଂ ହାତୀଦାନ୍ତ ପରି ବାହାରିଥିବା ସ୍ୱାନଦାନ୍ତର ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି । ବେଳେବେଳେ ଏହି ସବୁର ଉପଯୋଗ କରି ଏମାନେ ମାଂସଭୋଜୀ ଶିକାରୀ ପ୍ରାଣୀଙ୍କଠାରୁ ମଧ୍ୟ ନିଜର ପ୍ରତିରକ୍ଷା କରିପାରନ୍ତି ।

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ಕಾಡು ಕುರಿ ( Canarês )

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ಸಂಕ್ಶಿಪ್ತ ವಿವರಣೆ

ಕಾಡು ಕುರಿ (Indian Muntjac/Barking Deer) ಭಾರತದ ಸುಮಾರು ಕಾಡುಗಳಲ್ಲಿ ಕಂಡುಬರುವ ಒಂದು ಸಸ್ತನಿ ಪ್ರಾಣಿ. ಸಸ್ಯಾಹಾರಿ ಪ್ರಭೇದಕ್ಕೆ ಸೇರಿದ ಈ ಪ್ರಾಣಿಯ ಮುಖ್ಯ ಆಹಾರವೆಂದರೆ- ಹುಲ್ಲು, ಎಲೆ, ಸೊಪ್ಪು ಮತ್ತು ಮರದಿಂದ ಉದುರಿದ ಹಣ್ಣು ಹಾಗೂ ಬೀಜಗಳು. ಕಾಡು ಕುರಿಯು ಸುಮಾರು ೧.೩ ಅಡಿಗಳಷ್ಟು ಎತ್ತರ ಮತ್ತು ೩ ಅಡಿಗಳಷ್ಟು ಉದ್ದವಿರುತ್ತದೆ. ಮತ್ತು ಇದರ ತೂಕ ಸುಮಾರು ೧೨ ರಿಂದ ೧೬ ಕೆಜಿ.

ದೈಹಿಕ ಲಕ್ಷಣಗಳು

ಕಾಡು ಕುರಿಗಳನ್ನು ಅದರ ಪುಟ್ಟ ಗಾತ್ರ, ತಲೆಯ ಮೇಲಿನ ಕೊಂಬು ಮತ್ತು ಆನೆ ದಂತದಂತಿರುವ ಪುಟ್ಟ ಕೋರೆ ಹಲ್ಲುಗಳಿಂದ ಗುರುತಿಸಬಹುದು. ಇವುಗಳು ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ ಸಂಜೆ ಮತ್ತು ರಾತ್ರಿಗಳಲ್ಲಿ ಹೆಚ್ಚಾಗಿ ಸಂಚಾರ ಮಾಡುವುದರಿಂದ ಹಗಲಿನಲ್ಲಿ ಇವನ್ನು ಕಾಣುವುದು ಕೊಂಚ ಕಠಿಣ. ಸ್ವಭಾವತ ಸಂಕೋಚದ ಪ್ರಾಣಿಯಾದ ಕಾರಣ ಮಾನವರನ್ನು ಕಂಡ ತಕ್ಷಣ ಇವು ಓಡಿ ಮರೆಯಾಗುವವು. ಗಂಡು ಕುರಿಯು ತಲೆಯ ಮೇಲೆ ಕೊಂಬು ಮತ್ತು ಪುಟ್ಟ ಕೋರೆ ಹಲ್ಲನ್ನು ಹೊಂದಿರುತ್ತದೆ. ಹೆಣ್ಣಿಗೆ ಇವೆರಡು ಇರುವಿದಿಲ್ಲ.

ಕಂಡು ಬರುವ ದೇಶಗಳು

ಕಾಡು ಕುರಿಗಳು ಭಾರತ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೆ- ನೇಪಾಳ, ಮಲೇಷ್ಯ, ದಕ್ಷಿಣ ಚೀನ ಮತ್ತು ತೈವಾನ್ ದೇಶಗಳಲ್ಲು ಸಹ ಕಂಡು ಬರುತ್ತವೆ.

ಕಾಡು ಕುರಿಯ ಪ್ರಾಮುಖ್ಯತೆ

ಕಾಡು ಕುರಿಯ ಒಂದು ಪ್ರಮುಖವಾದ ಗುಣವೆಂದರೆ ಮಾಂಸಾಹಾರಿ ಪ್ರಾಣಿಗಳಾದ ಹುಲಿ, ಸಿಂಹ, ಚಿರತೆ ಇವುಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅತ್ಯಂತ ನಿಖರವಾದ ಮಾಹಿತಿಯನ್ನು ಕಾಡಿನ ಇತರೆ ಪ್ರಾಣಿಗಳಿಗೆ ತಿಳಿಸುವುದು. ಈ ಮಾಂಸಾಹಾರಿ ಪ್ರಾಣಿಗಳನ್ನು ಕಂಡ ಕೂಡಲೆ ಕಾಡು ಕುರಿಯು ಜೋರಾಗಿ ಬೊಗಳಿಕೆಯಂತಹ ಧ್ವನಿಯಲ್ಲಿ ಕೂಗುತ್ತವೆ, ಹಾಗು ಇತರೆ ಪ್ರಾಣಿಗಳಿಗೆ ಎಚ್ಚರಿಕೆಯನ್ನು ನೀಡುತ್ತದೆ. ಕಾಡು ಕುರಿಯ ಬೊಗಳಿಕೆಯು ಕಾಡಿನಲ್ಲಿ ಮಾಂಸಾಹಾರಿ ಪ್ರಾಣಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅತ್ಯಂತ ನಿಖರವಾದ ಮಾಹಿತಿ.

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