स्पाइरोगाइरा एक शैवाल है। इसमे क्लोरोफिल पाया जाता है अतः यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वय बनाता है। यह पौधा एक सिल्क के धागे की तरह हरे रंग का दिखाई देता है जो जल की उपरी सतह पर तैरता रहता है। दुनिया में इस पौधे की ४०० से अधिक जातियाँ हैं।[1] इसे पाण्सिल्क भी कहा जाता है क्योंकि यह तालाब में अक्सर देखा जाता है। यह बहुत तेजी से विकसित होता है अतः कुछ ही समय में पूरे तालाब में इस तरह फैल जाता है कि तालाब का पानी हरा दिखाई पड़ता है।
स्पाइरोगाइरा एक शैवाल है। इसमे क्लोरोफिल पाया जाता है अतः यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वय बनाता है। यह पौधा एक सिल्क के धागे की तरह हरे रंग का दिखाई देता है जो जल की उपरी सतह पर तैरता रहता है। दुनिया में इस पौधे की ४०० से अधिक जातियाँ हैं। इसे पाण्सिल्क भी कहा जाता है क्योंकि यह तालाब में अक्सर देखा जाता है। यह बहुत तेजी से विकसित होता है अतः कुछ ही समय में पूरे तालाब में इस तरह फैल जाता है कि तालाब का पानी हरा दिखाई पड़ता है।