L'Indiana volfo (ciencale: Canis lupus pallipes) esas sub-speco dil griza volfo qua vivas de Israel ad India. Ol es plu mikra kam la Euraziala volfo.
Ol vivas en volfari di 6 til 8 volfi. Rare ululas.
Ο ινδικός λύκος (Canis lupus pallipes) είναι υποείδος του γκρίζου λύκου, που ανήκει στην μεγάλη οικογένεια των Κυνιδών και στο γένος Κύων. Το είδος αυτό ζει σε μία μεγάλη περιοχή μεταξύ του Ισραήλ και της Ινδίας. Το μέγεθός του είναι μικρότερο από αυτό του Θιβετιανού λύκου και του Αραβικού λύκου και δεν διαθέτει πλούσιο τρίχωμα, αφού ζει σε θερμές περιοχές.
Ο Ινδικός λύκος έχει ένα ελαφρύ, κοντό τρίχωμα. Φτάνει σε ύψος τα 60 - 95 cm ύψος και ζυγίζει από 18 έως 27 kg. Όσον αφορά τη δομή του, μοιάζει αρκετά με τον Ευρασιατικό λύκο. Η γούνα του, έχει χρώμα γκρίζο - κόκκινο ή κόκκινο - άσπρο. Το τρίχωμα της πλάτης έχει χρώμα μαύρο - γκρίζο και σχηματίζει ένα χαρακτηριστικό σχήμα V στους ώμους του. Τα άκρα του έχουν λευκό χρώμα. Η περίοδος αναπαραγωγής λαμβάνει χώρα κατά τον Οκτώβριο. Τα κουτάβια γεννιούνται με καφέ χρώμα και ένα λευκό, γαλάζιο σημάδι στο στήθος τους, το οποίο εξαφανίζεται καθώς μεγαλώνουν.
Οι συνήθειές του είναι παρόμοιες με αυτές των άλλων υποειδών του Γκρίζου λύκου, αν και ο Ινδικός λύκος, ζει σε μικρές αγέλες που σπάνια ξεπερνούν τα 6 με 8 άτομα και είναι γνωστό ότι σπάνια ουρλιάζουν. Τα κύρια θηράματα του, είναι οι αντιλόπες, τρωκτικά και λαγοί. Στην περιοχή κατανομής τους ζουν και άλλοι θηρευτές όπως το Χρυσό τσακάλι, οι αρκούδες, η λεοπάρδαλη και η τίγρη.
Ο Ινδικός λύκος είναι προσαρμοσμένος να ζει σε ημιάνυδρες και ξηρές περιοχές και αποτελεί παράδειγμα προσαρμοστικότητας των σαρκοφάγων. Παρά το γεγονός ότι θεωρείται εχθρός με το Ασιατικό αγριόσκυλο, οι έρευνες έχουν δείξει ότι δεν υπάρχει ιδιαίτερος ανταγωνισμός μεταξύ τους και μοιράζονται το ίδιο έδαφος.
Ο ινδικός λύκος είναι το μόνο Κυνοειδές που ζει στην Δυτική Ινδία. Στην Ινδία απαντάται στις επαρχίες Γκουτζαράτ, Ρατζαστάν, Χιριάνα, Ουτάρ Πραντές, Μάντια Πραντές, Μαχαράστα, Καρνατάκα και Άντρα Πραντές. Εμφανίζεται επίσης στην Τουρκία, στο Ιράκ, στο Ιράν, το Πακιστάν, τη Συρία, τον Λίβανο και το Ισραήλ. Σύμφωνα με μελέτες, ο πληθυσμός του είδους υπολογίζεται στα 2000 - 3000 άτομα. Ο ινδικός λύκος έχει χαρακτηριστεί ως «Απειλούμενο» σύμφωνα με το άρθρο 1 του Ινδικού νόμου άγριας ζωής.
Οι λύκοι αναφέρονται συχνά στην ινδουιστική μυθολογία και έχουν αμφίσημη φήμη στην Ιρανική μυθολογία. Εμφανίζονται επίσης σε αρκετά διάσημα μυθιστορήματα. Σύμφωνα με το βιβλίο του Ράντγιαρντ Κίπλινγκ Το Βιβλίο της Ζούγκλας, ο κύριος πρωταγωνιστής, Μόγλης, καταδιώκεται από μια αγέλη ινδικών λύκων.
Ο ινδικός λύκος (Canis lupus pallipes) είναι υποείδος του γκρίζου λύκου, που ανήκει στην μεγάλη οικογένεια των Κυνιδών και στο γένος Κύων. Το είδος αυτό ζει σε μία μεγάλη περιοχή μεταξύ του Ισραήλ και της Ινδίας. Το μέγεθός του είναι μικρότερο από αυτό του Θιβετιανού λύκου και του Αραβικού λύκου και δεν διαθέτει πλούσιο τρίχωμα, αφού ζει σε θερμές περιοχές.
भारतीय ब्वाँसो खैरो ब्वाँसो प्रजातिको उपप्रजातिको वर्णमा पर्ने एक प्रकारको ब्वाँसो हो जसको बासस्थान दायरा दक्षिणपश्चिम एसिया देखि भारती उपमहादेश सम्म फैलिएको छ। यो तिब्बती र अरबी ब्वाँसको बीच आकारको एक मध्यवर्ती ब्वाँसो हो भने यो जीव प्रायः गर्मी क्षेत्रमा बस्ने भएकाले यसको शरीरमा बाक्लो भुत्लाहरू हुँदैनन्। भारतीय ब्वाँसो भारत र अन्य अरब देशहरू जस्तै पाकिस्तान, इराक, इरान र संयुक्त अरब इमिरेट्समा भेटिन्छन्। यस प्रजातिको ब्वाँसोको मुख्यतया हल्का खैरो र हल्का रातो रङ्गको शरीर हुन्छ जसकारण यो जनावरलाई स्याल भनि भ्रममा पर्ने सम्भावना उच्च छ। यो ब्वाँसो सामान्यतया सानो हुन्छ जसको कुल लम्बाई ३ फिट हुन्छ भने यसको शरीरमा कम बाक्लो भुत्ला हुन्छ। यस प्रजातिका ब्वाँसोहरू सामान्यया न्यानो ठाउँमा बसोबास गर्छन्। भारतीय ब्वाँसोलाई सर्वप्रथम सन् १८३१ मा बेलायती प्रकृतिविद् हेनरी साइक्सले वर्णन गरेका थिए भने सन् १९४१ मा यसलाई अर्का प्रकृतिविद् रिगानर्ड पोककले अर्को प्रजातिमा वर्गीकरण गरेका थिए।
भारतीय ब्वाँसोको शारीरिक बनावटको संरचना युरोपेली ब्वाँसोको जस्तै हुन्छ तर यसको उचाइ तथा आकार युरोपेली ब्वाँसोको भन्दा हल्का सानो र शरीर भुत्ला पनि कम हुन्छ।[१] अरबी ब्वाँसोको जस्तै यी ब्वाँसोको पनि छोटो भुत्ला हुन्छ। भारतीय ब्वाँसो अन्य ब्वाँसो प्रजातिको जस्तै भुक्ने तथा कराउने गर्दछ, यद्यपि यसले विरलै यस्तो आवाज निकाल्छ। यस प्रजातिका ब्वाँसोहरू मरुभूमि जस्तो सुख्खा क्षेत्रमा पनि बाँच्न सक्दछन् भने यीनिहरू भारतमा सुख्खा क्षेत्रमा देखा पर्दछन्।[२][३][४] यस प्रजातिका ब्वाँसोहरू मुख्यतया खुला भूमिमा घुम्ने गर्दछन्। भारतीय ब्वाँसोहरू गुजरातमा पनि पाइन्छन्। यस प्रजातिको ब्वाँसोले सामान्यतया मध्य अक्टुबरदेखि डिसेम्बरको अन्तसम्म प्रजनन गर्ने गर्दछ। यस जनावरले हरिन, खरायो आदिको सिकार गर्दछ। सिकार गर्ने क्रममा मृगलाई भ्रममा पार्नका लागि यसले समूहमा सिकार गर्ने गर्दछ। जबसम्म साना बच्चाहरू सिकार गर्ने परिपक्व हुदैनन् ती साना बच्चालाई पुरै समूहले हेरचाह गर्न मद्दत गर्दछ भने माउ ब्वाँसो बच्चाका लागि खाना खोज्न जाने गर्दछ।[५] सिकार गर्ने क्रममा एक ब्वाँसोले निरिक्षणको रूपमा काम गर्छ भने अर्कोले पछिल्तिरबाट आक्रमण गर्दछ। भारतीय ब्वाँसोको सुनौलो स्याल, स्लोथ भालु, चितुवा, खैरो भालु, सिंह र बाघको बासस्थान दायरा भित्र पर्दछ।
यस प्रजातिको ब्वाँसोको सङ्ख्या ३,००० रहेको अनुमान गरिएको छ। यस प्रजातिको ब्वाँसोलाई जय समन्द आरक्ष केन्द्रमा सुरक्षा दिइएको छ।[६] मुख्यतया भारतीय ब्वाँसाहरूको खराब प्रतिष्ठा र बासस्थान दायराको खराब अवस्थाका कारण संरक्षण प्रयासहरू प्रभावकारी हुन गाह्रो भैरहेको छ। भारतीय ब्वाँसोको बासस्थान दायरा भित्र पर्ने क्षेत्रमा बस्ने बासिन्दाहरूसँग लामो समयदेखि द्वन्द्वमा चलिरहेको छ। भारतीय ब्वाँसोले घरपालुवा जनावर सिकार गर्ने भएकाले यसलाई कहीँकतै स्थानीय मानिसहरूले मार्ने गरेका छन्।[७] यस प्रजातिको ब्वाँसोले मानिसको बासस्थान क्षेत्रमा प्रवेशगरि बालबालिकालाई मार्ने गरेको देखिएको छ विज्ञहरूले यसलाई तिनीहरूको प्राकृतिक वासस्थान र सामान्य वातावरणमा खानाको अभावको लागि श्रेय दिएका छन्।
सन् १८७८ मा भारतीय ब्वाँसोले भारतको उत्तर प्रदेशमा ६२४ मानिसहरूको सिकार गरेका थिए भने सोही वर्ग बङ्गालमा पनि १४ मानिसहरूको भारती ब्वाँसोको आक्रमण द्वारा मृत्यु भएको थियो। सन् १९९० मा भारतीय ब्वाँसोको आक्रमणमा परि मध्य प्रदेशमा २८५ स्थानीय मानिसहरूको मृत्यु भएको थियो।[८] सन् १९१० देखि १९१५ को बीचमा ११५ बालबालिकाहरू हजारीबाघमा भारतीय ब्वाँसोको सिकार बनेका थिए भने सोही क्षेत्रमा सन् १९८० देखि १९८६ मा १२२ बालबालिकाहरू ब्वाँसोको सिकार बनेका थिए। मार्च २७, १९६६ देखि १ जुलाई १९९६ सम्म भारतको उत्तर प्रदेश स्थित जानुपुर, प्रतापगढ र सुल्तानपुर भारतीय ब्वाँसोको आक्रमणमा परि २१ बालबालिकाको मृत्यु भएको थियो भने १६ गम्भीर घाइते भएका थिए।
भारतीय ब्वाँसो खैरो ब्वाँसो प्रजातिको उपप्रजातिको वर्णमा पर्ने एक प्रकारको ब्वाँसो हो जसको बासस्थान दायरा दक्षिणपश्चिम एसिया देखि भारती उपमहादेश सम्म फैलिएको छ। यो तिब्बती र अरबी ब्वाँसको बीच आकारको एक मध्यवर्ती ब्वाँसो हो भने यो जीव प्रायः गर्मी क्षेत्रमा बस्ने भएकाले यसको शरीरमा बाक्लो भुत्लाहरू हुँदैनन्। भारतीय ब्वाँसो भारत र अन्य अरब देशहरू जस्तै पाकिस्तान, इराक, इरान र संयुक्त अरब इमिरेट्समा भेटिन्छन्। यस प्रजातिको ब्वाँसोको मुख्यतया हल्का खैरो र हल्का रातो रङ्गको शरीर हुन्छ जसकारण यो जनावरलाई स्याल भनि भ्रममा पर्ने सम्भावना उच्च छ। यो ब्वाँसो सामान्यतया सानो हुन्छ जसको कुल लम्बाई ३ फिट हुन्छ भने यसको शरीरमा कम बाक्लो भुत्ला हुन्छ। यस प्रजातिका ब्वाँसोहरू सामान्यया न्यानो ठाउँमा बसोबास गर्छन्। भारतीय ब्वाँसोलाई सर्वप्रथम सन् १८३१ मा बेलायती प्रकृतिविद् हेनरी साइक्सले वर्णन गरेका थिए भने सन् १९४१ मा यसलाई अर्का प्रकृतिविद् रिगानर्ड पोककले अर्को प्रजातिमा वर्गीकरण गरेका थिए।
இந்திய ஓநாய் (ஆங்கிலப் பெயர்: Indian wolf, உயிரியல் பெயர்: Canis lupus pallipes) என்பது ஓநாயின் ஒரு துணையினம் ஆகும். இது தென்மேற்கு ஆசியாவில் இருந்து இந்தியத் துணைக்கண்டம் வரை காணப்படுகிறது. இது திபெத்திய மற்றும் அரேபிய ஓநாய்களுக்கு இடைப்பட்ட அளவில் காணப்படுகிறது. இதற்குத் திபெத்திய ஓநாயைப் போல் குளிர்கால உரோமம் கிடையது. ஏனெனில் இது வெப்பமான பகுதியில் வசிக்கிறது.
பிரிந்த காலம்
தங்க ஜாகால் 19 இலட்சம் YBP[2]
கயோட்டி கோநாய் 11 இலட்சம் YBP[2]
இமாலய ஓநாய் 630,000 YBP[3]
இந்தியச் சாம்பல் ஓநாய் 270,000 YBP[3]
ஹோலார்க்டிக் சாம்பல் ஓநாய் 80,000 YBP[4]
2004ம் ஆண்டின் கணக்கெடுப்பின் படி இந்தியா முழுவதும் சுமார் 2000-3000 ஓநாய்கள் இருப்பதாகக் கருதப்படுகிறது.
2004ம் ஆண்டின் கணக்கெடுப்பின் படி இந்தியா முழுவதும் சுமார் 2000-3000 ஓநாய்கள் இருப்பதாகக் கருதப்படுகிறது.